तत्त्व स्वरूप समजावती चाै भंगी
ठीक शुं अने अठीक शुं तेना नीचे प्रमाणे चार भंग छे.
१–पर वस्तुने ठीक के अठीक माने ते अज्ञानी–मिथ्याद्रष्टि छे; केमके पर कोई पदार्थ ईष्ट के अनिष्ट छे ज
नहि. जे परमां ठीक–अठीकपणुं मानतो होय ते, जे परने ठीक माने तेने ग्रहण करवा मागे अने जे परने अठीक
माने तेने त्यागवा मागे, परंतु पर पदार्थनी क्रिया तो स्वतंत्र छे, आत्मा तेने ग्रहण के त्याग करी शकतो ज
नथी. जे पदार्थनी क्रिया पोताने आधीन नथी तेमां ठीक–अठीकपणुं मानवुं अने तेना ग्रहण के त्यागनी ईच्छा
करवी ते मिथ्याद्रष्टिपणुं छे. कोईपण पर पदार्थ ईष्ट के अनिष्ट नथी.
२–हुं आत्मा ठीक अने पर पदार्थ अठीक–एम मानवुं ते पण अज्ञान छे; केमके एम माननार जीव परने
अठीक मानतो होवाथी ते परने छोडवा मागे छे, परंतु परनुं ग्रहण के त्याग आत्मा करी ज शकतो नथी, ग्रहण
के त्याग पोताना भावमां थई शके छे. जे परने अठीक माने छे अने हुं परने छोडी शकुं के ग्रही शकुं एम माने
छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
उपरना बे भेद ऊंधी मान्यताना छे, हवे सवळी मान्यतामां पण बे भेद नीचे प्रमाणे छे:–
३–मारो पूर्णानंद स्वभाव ठीक अने आ विकारी भाव अठीक एम माने छे–त्यां द्रष्टि तो साची छे–परंतु
चारित्रनी अस्थिरता छे. विकारी भावने अठीक माने छे त्यां विकारी भाव छोडी शके छे अने शुद्धता पूर्णानंद
प्रगटावी शके छे–तेथी तेनी द्रष्टि साची छे. जेने ठीक–अठीक माने छे तेमां ठीकनुं ग्रहण अने अठीकनो त्याग करी
शके छे तेथी द्रष्टि साची छे, छतां पण त्यां ठीकनुं ग्रहण करवानो अने अठीकनुं त्याग करवानो विकल्प वर्ते छे–
तेथी त्यां राग–द्वेषनो अंश छे माटे त्यां चारित्रनी अस्थिरता छे. छतां त्यां मान्यतानो दोष नथी.
४–मारो स्वभाव ठीक अने विकारी अवस्था अठीक एवा विकल्प पण छूटीने ज्ञायक स्वभावमां स्थिर
थई जाय, वीतराग थई जाय–त्यां द्रष्टि अने चारित्र बने पूर्ण छे. ग्रहण त्यागनो विकल्प ज छूटी जतां पूर्णानंद
स्वभाव प्रगटी गयो ते ज उत्तम छे.
परद्रव्यमां तो ठीक अठीकपणुं छे ज नहि; अने स्वद्रव्यमां पण ठीक अठीक पणानी अपेक्षा नथी. द्रव्य
ठीक–अठीकपणानी अपेक्षाओथी अतिक्रांत छे. ठीक अठीकना विकल्प द्वारा द्रव्य लक्षमां आवी शकतुं नथी.
उपरनी ज चौभंगी पू. गुरुदेवश्रीए ता. १६–२–४५ ना रोज कहेल ते नीचे प्रमाणे
१–पर वस्तु जीवने ईष्ट के अनिष्ट छे एम मानवुं ते मिथ्याभाव छे महाभूल छे–महापाप छे. तेनो
खुलासो
परवस्तु आ जीवने आधीन नथी. तेने जीव मेळवी शकतो नथी, तेनुं ते कांई करी शकतो नथी, ते
परवस्तु जीवनुं कांई करी शकती नथी छतां जे बनी शके नहि तेमां ईष्ट अनिष्टपणुं मानवुं ते अनंत दुःखनुं
कारण छे, ते मिथ्याभाव छे केमके तेमां ईष्ट अनिष्टपणुं मानवानुं प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी...अर्थात् ईष्टनुं ग्रहण
अने अनिष्टनो त्याग जीव करी शकतो नथी.
२–जीव पोते ईष्ट अने परवस्तु अनिष्ट एम मानवुं ते मिथ्याभाव महाभूल–महापाप छे. तेनो खूलासो
पर वस्तु जीवनुं कांई बगाडी शकती नथी छतां तेने अनिष्ट मानवी ते अनंत दुःखनुं कारण छे; केमके
परवस्तुने अनिष्ट मानवानुं प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी–अर्थात् जीव परवस्तुनो त्याग करी शकतो नथी.
आ बन्ने मान्यताओ मिथ्या छे. हिंसादि पाप करतां आ पाप अनंतगणुं छे तेथी तेने महापाप
कहेवामां आवे छे; अज्ञानी जीवने थता बधा विकार भावोनुं मूळ आ ऊंधी मान्यता छे. ज्ञानीनी मान्यता
संबंधी बे भंग नीचे प्रमाणे छे.
३– पोतानो शुद्ध स्वभाव ईष्ट अने विकारी अवस्था अनिष्ठ एम मानवुं–जाणवुं ते साधक दशा छे,
तेनो खुलासो.
पोतामां थता विकारी भावो अनिष्ट अने त्रिकाळ शुद्ध चैतन्य स्वभाव तथा तेने आश्रये प्रगटती शुद्ध
दशा ते ईष्ट छे एम मानवुं जाणवुं ते यथार्थ छे. जीव पोतानुं स्वरूप यथार्थ जाणे अने पोते ग्रहण त्याग कोनुं
करी शके छे ए जाणे तो ज दोष टाळी शके छे, माटे आ त्रीजो भंग ते साची मान्यता छे पण तेमां ग्रहण–
त्यागनो विकल्प होवाथी राग छे–अस्थिरता छे.
४–पोतानो शुध्ध स्वभाव ईष्ट अने विकारी अवस्था अनिष्ट एवा विकल्प टाळी स्वरूपमां स्थिर थवुं ते
वीतरागभाव छे तेनो खुलासो–
त्रीजा भंगमां कहेली साची मान्यता कर्या पछी, विकल्प टाळी स्वरूपमां स्थिर थवुं ते वीतराग दशा छे.
ते उत्तम छे.
उपर्युक्त ग्रहण–त्यागनुं स्वरूप समजावती चौभंगीनुं स्वरूप खास मनन करवा योग्य छे.[रात्रि चर्चा]