अने ज्यारे स्व तरफ लक्ष करीने स्वमां द्रढता करे त्यारे मुक्ति छे. कां तो
स्व तरफनो उपयोग अने द्रढता, अथवा तो पर तरफनो उपयोग अने
द्रढता ए सिवाय बीजुं कांई पण अनादिथी कोई जीव करी शक्यो नथी
अने अनंत काळमां कदी पण करी शकशे नहि.
द्रढता करवी. ए रीते उपयोग फेरववानी वात छे–अने ते वातने
शास्त्रोमां अनेक पडखेथी समजाववामां आवे छे.
सिवाय बीजुं कांई कोई जीव करी शकतो नथी. फेर एटलो छे के–निगोद
वगेरे संसारी जीवो पोतानो उपयोग पर तरफ करीने पर भावमां एकाग्र
थाय छे–ज्यारे सिद्ध भगवान वगेरे पोताना शुद्धस्वभावमां उपयोग
ढाळीने स्वभावमां एकाग्र थाय छे. परंतु सिद्ध के निगोद कोई पण जीव
उपयोग सिवाय परनुं कांई पण करी शकतो नथी. स्त्री–कुटुंब–लक्ष्मी के
देव–गुरु–शास्त्र वगेरे बधा पर छे–तेनुं आत्मा कांई करी शके नहि.
आत्मा मात्र ते तरफनो शुभ के अशुभ उपयोग करे. परंतु शुभ के
अशुभ ए बंने उपयोग पर तरफना होवाथी तेने ‘अशुध्ध उपयोग’
अने स्वतरफनो उपयोग ते ‘शुद्ध उपयोग’ कहेवाय छे. आ संबंधमां
एवो सिद्धांत छे के–पर लक्षे बंधन अने स्वलक्षे मुक्ति. ज्यां परलक्ष थयुं
त्यां शुभभाव होय तोपण ते अशुद्ध उपयोग ज छे अने ते संसारनुं
कारण छे, अने स्वलक्ष होय त्यां शुद्धोपयोग ज छे अने ते मुक्तिनुं कारण
छे.