Atmadharma magazine - Ank 019
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र २ : २००१ आत्मधर्म : ९९ :
श्व र् र् ि
वर्ष २ अंक ७ : द्वितिय चैत्र २०१
आत्मधर्म
आत्मानी क्रिया
प्रश्न:–आत्मा शुं करी शके?
उत्तर:–आत्मा चैतन्य स्वरूप छे ते चैतन्यना उपयोग सिवाय बीजुं कांई
पण करी शके नहीं.
प्रश्न:–जो आत्मा उपयोग सिवाय बीजुं कांई न करी शकतो होय तो आ
संसार–मोक्ष शा माटे?
उत्तर:–उपयोग सिवाय बीजुं तो कांई ज आत्मा करी शकतो नथी.
चैतन्यनो उपयोग पर लक्ष करीने परभावमां द्रढ करे छे ते संसार छे
अने ज्यारे स्व तरफ लक्ष करीने स्वमां द्रढता करे त्यारे मुक्ति छे. कां तो
स्व तरफनो उपयोग अने द्रढता, अथवा तो पर तरफनो उपयोग अने
द्रढता ए सिवाय बीजुं कांई पण अनादिथी कोई जीव करी शक्यो नथी
अने अनंत काळमां कदी पण करी शकशे नहि.
प्रश्न:–आत्मा जो मात्र उपयोग सिवाय कांई नथी ज करी शकतो तो
शास्त्रो शा माटे छे?
उत्तर:–बार अंग अने चौद पूर्व ए बधानो हेतु मात्र एक ज छे के
चैतन्यनो उपयोग जे पर तरफ ढळ्‌यो छे तेने स्व तरफ वाळीने स्वमां
द्रढता करवी. ए रीते उपयोग फेरववानी वात छे–अने ते वातने
शास्त्रोमां अनेक पडखेथी समजाववामां आवे छे.
प्रश्न:–संसारीनी अने सिद्धनी क्रियामां शुं फेर?
उत्तर:–चैतन्यनो उपयोग ते ज आत्मानी क्रिया छे. निगोदथी मांडीने
सिद्ध भगवान सुधीना बधा जीवो उपयोग ज करी शके छे–उपयोग
सिवाय बीजुं कांई कोई जीव करी शकतो नथी. फेर एटलो छे के–निगोद
वगेरे संसारी जीवो पोतानो उपयोग पर तरफ करीने पर भावमां एकाग्र
थाय छे–ज्यारे सिद्ध भगवान वगेरे पोताना शुद्धस्वभावमां उपयोग
ढाळीने स्वभावमां एकाग्र थाय छे. परंतु सिद्ध के निगोद कोई पण जीव
उपयोग सिवाय परनुं कांई पण करी शकतो नथी. स्त्री–कुटुंब–लक्ष्मी के
देव–गुरु–शास्त्र वगेरे बधा पर छे–तेनुं आत्मा कांई करी शके नहि.
आत्मा मात्र ते तरफनो शुभ के अशुभ उपयोग करे. परंतु शुभ के
अशुभ ए बंने उपयोग पर तरफना होवाथी तेने ‘अशुध्ध उपयोग’
अने स्वतरफनो उपयोग ते ‘शुद्ध उपयोग’ कहेवाय छे. आ संबंधमां
एवो सिद्धांत छे के–पर लक्षे बंधन अने स्वलक्षे मुक्ति. ज्यां परलक्ष थयुं
त्यां शुभभाव होय तोपण ते अशुद्ध उपयोग ज छे अने ते संसारनुं
कारण छे, अने स्वलक्ष होय त्यां शुद्धोपयोग ज छे अने ते मुक्तिनुं कारण
छे.
[ता. २५–१२–४४ नी चर्चा]