Atmadharma magazine - Ank 019
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १०० : आत्मधर्म : चैत्र २ : २००१
दरेके दरेक आत्मा अने दरेके दरेक रजकण तद्न जाुदे जाुदां स्वतंत्र पदार्थ छे एथी आत्मानी
अवस्था आत्माथी अने जडनी अवस्था जडथी ज थाय एम मानवुं तेज पहेलो धर्म छे.
दरेक वस्तुनुं कार्य अंतरंग कारणथी ज थाय छे; बहारना कारणथी कोई कार्य थतुं नथी. जो बहारना
कारणथी कार्य थतुं होय तो चोखाना बीमांथी घऊं अने घऊंना बीमांथी चोखा थवानो प्रसंग आवशे, एम
थतां वस्तुनो कोई नियम रहेतो नथी–माटे कह्युं छे के–
“कहीं पर भी अंतरंग कारणसे
ही कार्यकी उत्पत्ति होती है”
एटले के बधी वस्तुओनां कार्यनी उत्पत्ति अंतरंग कारणथी ज [वस्तुनी पोतानी शक्तिथी ज] थाय
छे–ए नियम छे. आमां अनेक प्रश्नोना समाधान आवी जाय छे.
अंतरंगकारण= द्रव्यनी शक्ति, उपादान कारण.
बहिरंगकारण=पर द्रव्यनी हाजरी निमित्त कारण.
कोई कार्यो बाह्य पदार्थोना कारणथी उत्पन्न थतां नथी ए निश्चय छे. जो बहारना कारणे कार्यनी उत्पत्ति
थती होय तो चोखामांथी घऊं थवा जोईए–पण तेम क्यांय थतुं नथी; माटे कोई द्रव्यनुं कार्य बीजा द्रव्यना
कारणथी उत्पन्न थतुं नथी पण ते द्रव्यनी पोतानी शक्तिथी ज थाय छे.
त्रणकाळ, त्रणलोकमां एवुं द्रव्य नथी के जे द्रव्यनुं कार्य बीजा द्रव्यथी थतुं होय! जो कोईपण द्रव्यनुं कार्य
बीजा द्रव्यथी थतुं होय तो जीवमांथी जड अने जडमांथी जीव थई जवानो प्रसंग आवी पडशे; परंतु कार्य अने
कारण एक ज द्रव्यमां होय ए सिद्धांतथी दरेक द्रव्यनुं कार्य ते द्रव्यना कारणथी ज स्वतंत्रपणे थाय छे, तेथी
उपर्युक्त दोष आवतो नथी. आमां दरेक कार्य थवामां उपादान निमित्तनो खुलासो आवी जाय छे.
हवे उपर प्रमाणे वस्तु स्वरूप होवाथी–आत्मद्रव्यनुं कार्य–अवस्था तो आत्माना ज अंतरंग कारणथी
उत्पन्न थाय छे; अने आत्मद्रव्यमां तो वीतरागभाव ज प्रगटवानी शक्ति छे. वीतरागता–शुध्धतारूपी कार्य
उत्पन्न थाय एवी ज द्रव्यनी अंतरंग शक्ति छे.
प्रश्न:–जो द्रव्यनी अंतरंग शक्ति मां तो वीतरागता अने शुध्धता ज प्रगटवानी शक्ति छे तो पछी
पर्यायरूपी कार्यमां अशुद्धता केम छे?
उत्तर:–पर्यायमां जे अशुध्धता छे ते, ते पर्यायनी वर्तमान योग्यता छे. आत्मा अरूपी ज्ञानघन
स्वभाव–के जे अंतरंग कारण छे–तेमांथी तो, गमे तेवा बहारना निमित्त होय के गमे तेवा संयोग होय तोपण
ज्ञान अने वीतरागता ज आवे छे, छतां पर्यायमां जे विकार–अशुद्धता छे ते पर्यायना अंतरंग कारणे छे.
विकारनुं अंतरंगकारण एक समय पूरती पर्याय छे तेथी विकाररूपी कार्य पण एक ज समय पूरतुं छे. पहेला
समयनो विकार बीजा समये टळी जाय छे. रागादि विकाररूप अशुद्ध अवस्था ते पर्यायना अंतरंग कारणे छे,
रागादिनुं अंतरंग कारण द्रव्य नथी पण अवस्था छे; एटले के द्रव्यना स्वभावमां रागादि नथी, माटे द्रव्य
रागादिनुं कारण पण नथी.
जेम चेतन द्रव्यनी अवस्था चेतनना अंतरंग कारणे थाय छे तेम जड द्रव्यनी अवस्था पण जड द्रव्यना
अंतरंग कारणथी ज थाय छे. शरीरना परमाणुओ भेगा थया छे ते आत्माना कारणे आव्या नथी, पण जे जे
परमाणुओनी अंतरंग शक्ति हती तेज परमाणुओ भेगा थया छे, बीजा बधा परमाणुओ पेशाब, विष्टा वगेरे
मारफत जुदा पडी गया. परमाणुओमां क्रोधकर्मरूप अवस्था थाय छे ते परमाणुनी ते समयनी योग्यता छे–जीवे
ते अवस्था करी नथी. जीवनी क्रोधादि भावरूप अवस्था थाय छे तेमां जीवनी ते समयनी अवस्थानी योग्यता
छे. जीवनी अवस्थामां विकारभाव अने पुद्गलनी अवस्थामां कर्मरूप परिणमन ए बन्ने पोतपोताना अंतरंग
स्वतंत्र कारणे थाय छे, कोई एक–बीजानुं अंतरंग कारण नथी.
समये समये अवस्था थवी ते वस्तुनो स्वभाव छे; वस्तुनी अवस्था वस्तुना कारणे नीकळे छे, बहारना
साधनने कारणे कोई द्रव्यनी अवस्था नीकळती नथी, आम होवाथी पोतानी अवस्थानो सुधार के बगाड द्रव्य
पोते ज करी शके छे. चैतन्यनी पर्याय चैतन्यपणे रहीने बदले छे अने जडनी पर्याय जडपणे रहीने बदले छे.
द्रव्यनी अवस्थानो कर्ता कोई बीजो नथी.
श्री धवलाशास्त्र वोल्युम छठ्ठुं पानुं १६४
पूज्य सद्गुरुदेव पासेना वांचनमांथी
राजकोट