Atmadharma magazine - Ank 019
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र २ : २००१ आत्मधर्म : १०१ :
परंतु आत्मा शुं अने शरीर शुं एना जाुदापणाना भान वगर आत्मा शुं करे छे तेनी
अज्ञानीने खबर शुं पडे?
एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई न करी शके ते श्री समयसारजीना कर्ताकर्म अधिकारमां अत्यंत स्पष्टपणे समजाववामां
आव्युं छे तेथी ते अधिकारनी ९९ मी गाथा अने ते उपर परम पूज्य सद्गुरुदेवनुं व्याख्यान अत्रे आपवामां आवे छे. (ता.
१९–३–४५)
पर द्रव्योने आत्मा करे छे एवी व्यवहारी लोकोनी मान्यता सत्यार्थ नथी–एम हवे कहे छे:–
जदि सो परदव्वाणि य करिज्ज
णियमेण तम्मजो होज्ज।
जह्मा ण तम्मओ तेण सो ण
तेसिं हवदि कत्ता।।९९।।
–:हरिगीत:–
परद्रव्यने जीव जो करे तो
जरूर तन्मय ते बने,
पण ते नथी तन्मय अरे!
तेथी नहि कर्ता ठरे. ९९.
अन्वयार्थ:– जो आत्मा परद्रव्योने करे तो ते नियमथी तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय थई जाय; परंतु
तन्मय नथी तेथी ते तेमनो कर्ता नथी.
टीका:–जो निश्चयथी आ आत्मा परद्रव्य स्वरूप कर्मने करे तो, परिणाम परिणामीपणुं बीजी कोई रीते
बनी शकतुं नहि होवाथी, ते (आत्मा) नियमथी तन्मय (पर द्रव्यमय) थई जाय; परंतु ते तन्मय तो नथी,
कारण के कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय थई जाय तो ते द्रव्यना नाशनी आपत्ति (दोष) आवे. माटे आत्मा व्याप्य
व्यापकभावथी परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता नथी.
भावार्थ:– एक द्रव्यनो कर्ता अन्य द्रव्य थाय तो बन्ने द्रव्यो एक थई जाय, कारण के कर्ता–कर्मपणुं
अथवा परिणाम–परिणामीपणुं एक द्रव्यमां ज होई शके. आ रीते जो एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप थई जाय तो ते
द्रव्यनो ज नाश थाय ए मोटो दोष आवे, माटे एक द्रव्यने अन्य द्रव्यनो कर्ता कहेवो उचित्त नथी. [जुओ
गुजराती समयसार–पानुं–१४४]
आ आत्मा परद्रव्यनुं किंचित् पण करी शकतो नथी. जो आत्मा परद्रव्यनुं कांई पण करे तो ते बन्ने
द्रव्यो नियमथी एक थई जाय. पण एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शकतुं नथी, केमके दरेक द्रव्य त्रिकाळ जुदां
छे.
एक आत्मा जो परनुं कांई करे तो ते पर द्रव्य अने आत्मा बन्ने एक द्रव्य थई जाय. केमके जे समये
आत्माए परद्रव्यनुं कांई पण कर्युं ते समये सामा द्रव्यनी स्वतंत्र अवस्था रही नहि एटले अवस्थानो लोप
थतां ते द्रव्यनो पण लोप थयो, केमके अवस्था वगर कोई द्रव्य होय नहि. आ रीते जीव जो परवस्तुनी अवस्था
करे तो ते परद्रव्य साथे एक थई जाय, अने द्रव्यना लोपनो प्रसंग आवे, पण एम त्रणकाळमां बनतुं नथी.
दरेके दरेक आत्मा अने दरेके दरेक रजकण जुदां स्वतंत्र पदार्थ छे. आत्मानी अवस्था आत्माथी थाय
अने जडनी अवस्था जडथी थाय–एम मानवुं ते ज पहेलो धर्म छे.
आत्मा कोई परवस्तुमां पेसी जतो नथी. शरीरमां पण आत्मा पेसी गयो नथी; शरीर जड छे अने
आत्मा चेतन छे; शरीर अने आत्मा ए त्रिकाळ भिन्न पदार्थो छे. शरीरनी अवस्था रूप, रस, गंध,
स्पर्शसहित जडरूप थाय छे अने आत्मानी अवस्था ज्ञानरूप थाय छे–बंने द्रव्यो तथा तेनी अवस्था जुदी ज छे.
प्रश्न:–जो आत्मा परनुं करी शके छे एम मानववामां आवे तो शुं वांधो छे?
उत्तर:–एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई पण करी शके एम मानवामां आवे तो द्रव्यना नाशनो प्रसंग आवे
छे–ते महान दोष आवी पडे छे. जगतमां अनंत पदार्थो छे, जेम आ आत्मा वस्तु छे तेम सामुं द्रव्य पण वस्तु
छे. वस्तु होय ते समये समये पोतानी अवस्थानुं कार्य करे छे. हवे जो आत्माए ते द्रव्यनुं कांई कर्युं एम
मानवामां आवे तो ते वखते सामा द्रव्ये तेनी पोतानी अवस्थामां शुं कर्युं? केमके सामुं द्रव्य सामान्य स्वरूप छे
तेनुं विशेष पण दरेक समये होवुं ज जोईए. हवे जो आत्मा ते द्रव्यनी अवस्था करे तो ते वखते सामा द्रव्यनी
पोताथी शुं अवस्था थई? अवस्था वगर तो द्रव्य ज होई शके नहि, माटे आत्माए ते द्रव्यनी अवस्थामां कांई
पण कर्युं नथी. दरेक द्रव्य पोताना स्वरूपे कायम टकीने क्षणे क्षणे पोतानी अवस्था पोताथी बदलावे छे, तेमां
बीजुं द्रव्य किंचित मात्र पण करी शकतुं नथी. जो एक द्रव्यनी अवस्था बीजुं द्रव्य करे एम मानवामां आवे तो
ते वखते ते द्रव्यनी विशेष अवस्था रहेती नथी