(४) एक पुद्गल आत्मानुं कांई करी शके एम मानवुं ते महान हिंसा छे, तेना जेवुं महान पाप
परद्रव्यनुं करी शके छे तेम परद्रव्य पोतानुं करी शके एम पण ते ऊंधी मान्यतामां आव्युं एटले पोताने नमालो
परद्रव्यने आधीन मान्यो, आ रीते बन्ने तत्त्वोने पराधीन मान्या छे ते ज तत्त्वनी हिंसा छे. एक द्रव्य बीजा
द्रव्यने कांई करी शके एम मानवुं तेमां पोताना ज स्वाधीन स्वरूपनी हिंसा छे, अने पराधीनपणानी ऊंधी
मान्यतानुं त्रिकाळी पाप ते एक समयनी मान्यतामां छे; तथा “परद्रव्यनुं हुं कांई ज न करी शकुं, परद्रव्य मारूं
कांई न करी शके, दरेक तत्त्वो स्वतंत्र स्वाधीन परीपूर्ण छे, सत् स्वरूप छे, कोई तत्त्वने कोई तत्त्वनो आधार
नथी” एम दरेक पदार्थोनी स्वतंत्रता मानवी तेमां त्रिकाळी सत्नो स्वीकार छे. स्वतंत्र सत् स्वरूपनो आदर छे
ए ज धर्म छे.
शक्ति तेनामां छे, परंतु ते शक्तिथी आत्मा परनुं कांई करी शकतो नथी. परनुं कांई करवा माटे तो आत्मा
तद्न शक्ति रहित छे अर्थात् आत्मानी परद्रव्यपणे नास्ति छे तेथी ते परमां कांई करी शके ज नहि. परद्रव्य
स्वतंत्र छे, तेमां आत्मानी शक्ति जई के चाली शके नहीं; आत्मानी अनंत शक्ति आत्मामां चाले छे. आत्मानी
पोता माटे एवी अनंत शक्ति छे के पोताना सवळा भावे क्षणमां केवळज्ञान ल्ये अने पोताना ऊंधा भावे
क्षणमां सातमी नरके जाय, एवी आत्मानी अनंत शक्ति आत्मामां कार्य करी शके छे, परमां किंचित् पण कार्य
करी शके नहीं.
वस्तुनी अवस्था ए बन्ने जुदां होय नहि–एवुं वस्तुस्वरूप छे; छतां जे जीव परद्रव्यनां परिणाम हुं करी शकुं
एम माने छे ते वस्तु स्वरूपनुं–विश्वधर्मनुं खून करे छे. (वस्तुस्वरूप तो जेम छे तेम ज छे, वस्तु स्वरूप
अन्यथा थतुं नथी, मात्र अज्ञानी पोताना भावमां ऊंधु माने छे, ए ऊंधी मान्यता ज संसारनुं कारण छे.)
शकतां नथी. जीवने दानादिना शुभभाव थाय तेने लईने बीजानुं हित थई जाय अगर हिंसादिना अशुभभाव
आवे तेने लईने बीजानुं अहित थई जाय–एम नथी, केमके जीवना परिणामनुं फळ तेनामां ज छे, परमां नथी,
अने परद्रव्यनी अवस्था तेनामां छे–आम होवाथी हुं मारी अवस्था करूं, परद्रव्य तेनी अवस्था करे, हुं परनुं न
करूं, पर मारूं न करे एवी प्रथम मान्यता करे तो जीवनी अनंती शांति प्रगटे अने अनंता राग–द्वेष टळी जाय.
आ मान्यता ए ज सौथी प्रथम धर्म छे. आ मान्यता करवामां अनंता पर पदार्थनो अहंकार टाळवानो अनंत
पुरुषार्थ आवे छे. “हुं शुद्धज्ञायक स्वरूपी आत्मा छुं, ज्ञान सिवाय परद्रव्यनुं किंचित् हुं न करी शकुं–” एम ज्यां
सुधी सम्यक् मान्यता न थाय त्यांसुधी आत्मानी सम्यग्ज्ञानरूपी कळा उघडे नहि. सम्यग्ज्ञान कळा ते ज धर्म छे.
“हुं परद्रव्यना कतृत्व रहित, परथी भिन्न ज्ञानस्वरूप स्वतंत्र द्रव्य छुं’ एम जेने पोतानी स्वतंत्रता बेसती
नथी ते बीजा द्रव्योने पण स्वतंत्र मानतो नथी, अने ज्यां द्रव्यने स्वतंत्र मानतो नथी तेथी परद्रव्यनुं हुं करूं
अने परद्रव्य मारूं करे एम ते द्रव्योने पराधीन माने छे, अने जे जीवने पोतानी स्वतंत्रता बेसी छे ते अन्य
द्रव्योने पण स्वतंत्र जाणे छे. तेथी ते पोताने परनो कर्ता मानतो नथी. एटले अनंता परपदार्थनो अहंकार टळी
जतां पोताना स्वभावनी अनंती द्रढता थई–एज धर्म छे, अने ए ज स्वाधीनतानो पंथ छे.