Atmadharma magazine - Ank 019
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १०४ : आत्मधर्म : चैत्र २ : २००१
भगवन महवर अन वस्त स्वरूप
: दर्शावनार : रा. मा. दोशी
आ मासमां चैत्र सुद १३ ना रोज शासननायक श्री महावीर भगवंतना जन्म कल्याणकनो मांगलिक
दिवस आवे छे; जन्मकल्याणक दिन वास्तविकपणे तो तेमनाथी ज ऊजवी शकाय के जेओ भगवान महावीर
कोण हता, तेओ शा माटे पूजनिक छे अने तेमना उपदेशनुं रहस्य शुं छे–ए जाणता होय; जेओ ते न जाणता
होय तेओ वास्तविकपणे तेमनी जयंति ऊजवी न शके.
भगवाननुं पूज्यपणुं मात्र बाह्य संयोगो उपरथी नथी, परंतु अंतरंग गुणोनी परिपूर्णताने कारणे ज
भगवान पूज्य छे. श्री समन्तभद्राचार्य देवागम स्तोत्रमां कहे छे के–
‘देवागमन भोया न चामरादि विभूतयः,
माया विष्वपि द्रश्यंते, नातस्त्वमसि नो महान्.
स्तुतिकार श्री समंतभद्रसूरिने वीतरागदेव जाणे कहेता होय, हे समंतभद्र! आ अमारा अष्टप्रातिहार्य
आदि विभूति तुं जो; अमारूं महत्व जो. त्यारे सिंह गूफामांथी गंभीरपदे बहार नीकळतां त्राड पाडे तेम श्री
समंतभद्रसूरि त्राड पाडता कहे छे:–‘देवताओनुं आववुं, आकाशमां विचरवुं, चामरादि विभूतिनुं भोगववुं,
चामरादि वैभवथी विंझावुं, ए तो मायावी एवा ईन्द्रजाळीआ पण बतावी शके छे. तारा पासे देवोनुं आववुं
थाय छे, वा आकाशमां विचरवुं वा चामर छत्र आदि विभूति भोगवे छे माटे तुं अमारा मनने महान्? ना,
ना. ए माटे तुं अमारा मनने महान नहीं, तेटलाथी तारूं महत्व नहीं. एवुं महत्व तो मायावी ईन्द्रजाळीआ
पण देखाडी शके.’
सत्देवनुं महत्व वास्तविक शुं छे ते तत्त्वार्थसूत्रनी टीकाना मंगळ स्तोत्रमां नीचे प्रमाणे जणाव्युं छे:–
‘मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां;
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तग्दुणलब्धये.’
मोक्षमार्गना नेता, कर्मरूपी पर्वतना भेत्ता–भेदनार, विश्व [समग्र] तत्त्वना ज्ञाता [जाणनार], तेने ते
गुणोनी प्राप्ति अर्थे वदुं छुं.
जैन शिक्षण माटे उत्तम तक
्र ों र् स्त्र िक्ष
अने त्यारपछी पास थतां तेमने जैन पाठशाळा चलावा हरकोई गामे एकवर्ष माटे मोकलवामां आवशे,
अने दर मासे रूा. ३०/ – पगार तथा मोंघवारी भथ्थु रूा. २०/ – मळी कूल रूा. ५०/ – आपवामां आवशे.
अभ्यास दरम्यान रहेवा – जमवानी तथा पुस्तकोनी सगवडता ट्रस्ट तरफथी वगर लवाजमे करी
आपवामां आवशे. उमेदवारोए नीचेना सरनामे अरजीओ मोकलवी..
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ – (काठियावाड)
सारभूत अर्थ:–‘मोक्षमार्गस्य नेतारं’ [मोक्षमार्ग लई जनार नेता] एम कहेवाथी मोक्षनुं ‘अस्तित्व’,
‘मार्ग’, अने ‘लई जनार’ ए त्रण वात स्वीकारी. जो मोक्ष छे तो तेनो मार्ग पण जोईए, अने जो मार्ग छे तो
तेनो द्रष्टा पण जोईए, अने जे द्रष्टा होय ते ज मार्गे लई जई शके, मार्गे लई जवानुं कार्य निराकार न करी
शके, पण साकार करी शके, अर्थात् मोक्षमार्गनो उपदेश साकार उपदेष्टा एटले देहस्थितिए जेणे मोक्ष अनुभव्यो
छे एवा करी शके. ‘भेतारं कर्मभूभृतां’ [कर्मरूप पर्वतने भेदवावाळा] अर्थात कर्मरूपी पर्वतो तोडयाथी मोक्ष
होई शके; एटले जेणे देहस्थितिए कर्मरूपी पर्वतो तोडया छे ते साकार उपदेष्टा छे. तेवा कोण? वर्तमानदेहे जे
जीवन्मुक्त छे ते. माटे केटलाक माने छे तेम, मुक्त थया पछी देह धारण करे एवा जीवन्मुक्त न जोईए. ‘ज्ञातारं
विश्वतत्वनां’ [विश्वतत्त्वना जाणनार] एम कहेवाथी एम दर्शाव्युं के आप्त केवा जोईए, के जे समस्त विश्वना
ज्ञायक होय. ‘वंदे तग्दुणलब्धये’ [तेना गुणनी प्राप्तिने अर्थे तेने वंदना करुं छुं] अर्थात आवा गुणवाळा
पुरुष ते ज आप्त छे अने ते ज वंदन योग्य छे. [श्रीमद् राजचंद्र आवृत्ति पांचमी, पानुं ३३१–३३२ ना
आधारे]
आचार्यदेवे आ स्तोत्रमां कोई खास व्यक्तिनुं नाम लईने वंदन कर्युं नथी, परंतु जेने पोते वंदन करे छे
तेनुं स्वरूप तेमना गुणवडे ओळखीने ते गुणनी प्राप्ति माटे वंदन करेल छे.
“जैनधर्म वीतराग प्रणित छे...तेनुं रहस्य एक शब्दमां कहीए तो ते ‘वीतरागता’ छे; माटे ते गुण
प्रगट कर्या होय ते सुदेव अने सुगुरु थई.