आ प्रमाणे १–जीव पर्याप्त, २–जीव अपर्याप्त, ३–जीव सूक्ष्म ४–जीव बादर अने प–जीव एकेन्द्रिय वगेरे व्यवहार
कथनना अर्थ उपर मुजब १–जीव चेतनमय छे, पर्याप्त नथी, २–जीव चेतनमय छे, अपर्याप्त नथी, ३–जीव चेतनमय छे, बादर
नथी, ४–जीव चेतनमय छे, सूक्ष्म नथी, अने प–जीव चेतनमय छे, एकेन्द्रियादिमय नथी–एम समजवुं. तथा बीजी हकीकतो
पण उपर मुजब समजी लेवी.
आ प्रकारे लोकमां व्यवहार कथनना जे अर्थ थाय छे–ते घीना घडाना द्रष्टांतथी शरू करीने अत्यार सुधीना द्रष्टांतोमां
विगत पाडी समजाव्या, अने तेवा ज अर्थो शास्त्रमां थाय छे ते पण शरूआतमां निश्चय व्यवहारना कथनना छ बोलोमां जणाव्युं छे.
आ उपरथी निश्चयनय शुं कहे छे तथा व्यवहारनय शुं कहे छे, तथा निश्चयनय व्यवहारनयने निषेधे छे–छतां ते
बन्नेमां संधि (अविरोधपणुं) केवी रीते छे, ते उपर कह्युं, तेथी निश्चयनय व्यवहारनो निषेध करे छे ते सिद्धांतनो दाखलाओ
आपी समजाव्यो छे. रा. मा. दोशी
[उपर प्रमाणे निश्चय–व्यवहारनुं स्वरूप जाणीने निश्चय शुं छे ते समजवुं; अने व्यवहारना कथनने निश्चयना अर्थमां
फेरवीने समजवुं ते ज व्यवहारनुं स्थापन छे, अने तेमां ज व्यवहारनो स्वीकार छे. पण जो व्यवहार कथन प्रमाणे ज निश्चय
स्वरूप मानी लेवामां आवे तो व्यवहार पोते ज निश्चय थई जाय एटले के व्यवहारनो लोप थाय–ते ज व्यवहारनुं उथापन छे.
माटे उपर बताव्या प्रमाणे व्यवहारना अर्थ समजवा ते ज बन्ने नयोनी संधि छे.] सं.
: १२२ : आत्मधर्म वैशाख : २००१
श्री सर्वज्ञाय नम: ।। “।। श्री वीतरागाय नम:
सत्श्रुत प्रभावना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट द्वारा सं. २००० ना चैत्र सुद १३ थी सं. २००१ ना चैत्र सुद १३ सुधीमां
नीचेना १३ सत्शास्त्रो प्रसिद्ध थयां छे.
सतशास्त्रोनी विगत
नं. सत्शास्त्रनुं नाम किंमत प्रसिद्धिनी मिति छपायेल प्रत वेचायेल प्रत
१ सत्तास्वरूप ०–९–० चैत्र सुद १३ एक हजार ८६०
२ द्रव्य–संग्रह ०–७–० जेठ सुद ५ एक हजार ७००
३ अपूर्व अवसर पर प्रवचनो ०–८–० अषाड वद १ बे हजार १०००
४ आत्मसिद्धि शास्त्र पर प्रवचनो ३–८–० आसो सुद प एक हजार ४५०
(आवृत्ति बीजी)
५ मोक्षमार्ग प्रकाशक ३–०–० आसो सुद १५ एक हजार ३००
(गुजराती बीजी आवृत्ति)
६ जैन सिद्धांत प्रवेशिका ०–८–० आसो वद २ एक हजार ५००
(गुजराती आवृत्ति बीजी)
७ संजीवनी (आवृत्ति बीजी) श्रावण वद १३ एक हजार १०००
[समयसार गाथा ११ पर प्रवचनो] पादरावाळा वकील वलमजी रामजीना सुपुत्रो मारफत भेट–
८ पद्मनंदी–आलोचना ०–२–० श्रावण वद १३
जैन अतिथि सेवा समितिना सभ्योने पोरबंदरवाळा प्राणलाल हरजीवन तरफथी भेट
९ सर्व सामान्य प्रतिक्रमण ०–८–० श्रावण वद १३ एक हजार ४००
(बीजी आवृत्ति)
१० अमृतवाणी ०–६–० कारतक सुद १५ बे हजार १५००
(समयसार गाथा १४ पर प्रवचनो) आत्मधर्मना ग्राहकोने भेट
११ समयसार प्रवचनो ३–०–० फागण सुद २ बे हजार १०००
१२ मोक्षनी क्रिया ०–१०–० फागण सुद २ एक हजार ६५०
१३ छ ढाळा ०–१२–० चैत्र सुद १३ एक हजार २००
उपरनी विगतथी मालुम पडशे के आ संस्था तरफथी प्रसिद्ध थता सत्शास्त्रो तरफ समाजनी रुचि वधती जाय छे, अने
तेनी मांग सतत् चालु रहे छे; तेथी आ सत्शास्त्रोमां शुं शुं विषयो आवे छे ते टुंकमां जणाववानी जरूर छे के जेथी
जिज्ञासुओनुं ते तरफ वलण वधे.
१–सत्तास्वरूप
निर्णय वगर अने अरिहंत स्वरूप समज्या विना देवदर्शन, पुजा, स्तोत्र, व्रत, तप, प्रत्याख्यानादि सर्वे मिथ्या छे केमके जेना
दर्शनादि करवां छे तेना स्वरूपना निर्णय वगर ते साचां दर्शनादि शी रीते करी शके?
माटे–दरेक मनुष्ये तत्त्वनिर्णय प्रथम करवानी जरूर छे; अने ते बाळक–वृद्ध, रोगी–निरोगी, तवंगर गरीब सुक्षेत्री–
कुक्षेत्री तमाम आ काळे पण तत्त्व निर्णय