वैशाख : २००१ आत्मधर्म : १२३ :
करी शके छे. प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोनुं श्रद्धान करवा योग्य क्षयोपशम सर्वे मनवाळा पंचेन्द्रिय जीवोने होय
छे; माटे जीवनुं प्रथम कर्तव्य तत्त्वनिर्णय करवो ते छे एम आ शास्त्र भार मूकीने जणावे छे.
गृहीत मिथ्यात्व जीव शी रीते टाळी शके ते पण आ शास्त्रमां बहु सुंदर रीते समजाववामां आवेल छे.
आ शास्त्रना बीजा भागमां श्री सर्वज्ञनी सिद्धि अकाटय युक्तिथी करवामां आवी छे. जीव आ स्वरूप न
समजे त्यांसुधी ‘पोतानुं स्वरूप द्रव्यद्रष्टिए सर्वज्ञ छे’ एम नक्की करी शके नहि, अने ए नक्की करे नहि
त्यांसुधी तेने धर्म कदी थाय नहि. मूळ शास्त्र हिंदीमां छे तेनो आ गुजराती अनुवाद छे.
२–द्रव्य संग्रह
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नव पदार्थ, ध्यान वगेरेनुं स्वरूप निश्नय अने व्यवहारनये सिद्धांत चक्रवर्ती भगवान श्री नेमिचंद्र आचार्ये
समजाव्युं छे. आ शास्त्र दरेक जिज्ञासुए वांची समजवानी जरूरियात छे.
३–अपूर्व अवसर–पर–प्रवचनो
“अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे” ए नामे श्रीमद्राजचंद्रे बनावेलुं घणुं गंभीर काव्य छे, तेना
अर्थो सां–१९९५ मां राजकोट मुकामे पू. सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीए व्याख्यान द्वारा सहेली, सरळ अने
सचोट भाषामां–बाळक पण समजी शके तेवी रीते समजाव्या छे माटे ते दरेक जिज्ञासुओए अभ्यास करी तेनो
भाव समजवानी जरूर छे.
आ शास्त्रमां गुणस्थानक्रम बहु सुंदर रीते समजाववामां आव्यो छे.
४–आत्मसिद्धि शास्त्र पर प्रवचनो
आत्मसिद्धि शास्त्रना अर्थो सां–१९९५मां राजकोट मुकामे व्याख्यान द्वारा सद्गुरुदेव श्री कानजी
स्वामीए समजावेला ते आ शास्त्रमां प्रसिद्ध करवामां आव्या छे. वस्तु स्वरूपने एटले जैनधर्मने लगता तमाम
सिद्धांतो घणीज सहेली भाषामां आ शास्त्रमां समजाववामां आव्या छे.
प–मोक्षमार्ग प्रकाशक
आ ग्रंथ पंडित टोडरमलजीए बनावेल हिंदी शास्त्रनो गुजराती अनुवाद छे. वस्तुस्वरूप समजावता
अने जिज्ञासु जीवोनी शुं शुं भूलो थाय छे अने ते केवी रीते टाळवी तेने लगता हजारो बोलोनो निकाल आ
शास्त्रमां घणी असरकारक रीते करवामां आव्यो छे.
आ शास्त्र दरेक जिज्ञासुओए वांची तेना भाव समजवानी जरूर छे, अने तेमां सातमो अध्याय जे
सूक्ष्ममिथ्यात्वने लगतो छे अने नवमो अध्याय जे सम्यग्दर्शनने लगतो छे ते घणा ज सुंदर छे. आ शास्त्रमां
अन्यमतोनी समीक्षा करवामां आवी छे अने जीवो कुदेव, कुगुरु अने कुशास्त्रोमां फसाई जाय छे माटे ते संबंधी
भूल समजाववा माटे घणी स्पष्ट चोखवट करवामां आवी छे. श्रीमद्राजचंद्रे पण तेने सत् श्रुत तरीके स्वीकारी
तेनो अभ्यास करवानी भलामण करी छे.
६–जैन सिद्धांत प्रवेशिका
आ शास्त्र प्रश्नोत्तररूपे छे तेमां जैनपरिभाषाना अनेक शब्दोना अर्थो आप्या छे. दरेक अभ्यासीए
तेनो अभ्यास करवानी जरूर छे.
७–संजीवनी
श्री समयसारनी ११ मी गाथा उपरना पु. सद्गुरुदेवना सां १९९९ मां राजकोट मुकामे थयेला
प्रवचनोनी आ पुस्तिका छे. जैनधर्मनुं रहस्य जीव तुरत ज समजी शके तेवी सरळ अने घरगथ्थु भाषामां आ
व्याख्यानो थएलां छे, तेथी दरेक जिज्ञासुने तेनो अभ्यास करवानी खास जरूर छे.
निश्चयनय अने व्यवहारनयनुं स्वरूप तेमां सुंदर रीते बताववामां आव्युं छे. निश्चयनयने आश्रये
सम्यग्दर्शन प्रगटे छे ए पण तेमां समजाववामां आव्युं छे.
८–पद्मनंदी–आलोचना
भगवान श्री पद्मनंदी आचार्य कृत पद्मनंदी पंचवीशीमां एक अलोचना अधिकार छे, तेनो आ गुजराती
अनुवाद छे, ते तत्त्वज्ञानथी भरपुर छे. पर्युषणमां संवत्सरीने दिवसे ‘आलोचना’ करवामां आ शास्त्रनो खास
उपयोग करवानी जरूर छे. ते गुजराती भाषामां होवाथी आलोचननानुं स्वरूप समजी शकाय छे अने तेथी
पर्वना दिवसनो ते प्रकारे लाभ लई शकाय तेवुं छे.
९–सर्व सामान्य प्रतिक्रमण
रूढीगत जे प्रतिक्रमण करवामां आवे छे ते सम्यग्दर्शन प्रगट थया पछी पांचमुं गुणस्थान प्रगट कर्युं होय
तेने लागु पडी शके छे; समाजना मोटा भागने