: १२४ : आत्मधर्म वैशाख : २००१
तेना अर्थोनो ख्याल होतो नथी, अने ‘अर्थ समजवामां न आवे तोपण ते शब्दो बोलवा ज जोईए’ एवी
अणसमजणने समाजना गणाता मुख्य माणसो अने कहेवाता उपदेशको पोषे छे; ए रीते धर्मनी क्रियाने नामे
संसार मार्गनुं पोषण थई रह्युं छे. आवी स्थिति चलावी लेवानुं आधूनिक अग्रेसरो योग्य धारे छे ते पण एक
विचित्रता छे. आवी समाजनी स्थिति होवा छतां वीतरागे कहेल खरूं तत्त्व शुं छे अने साचुं प्रतिक्रमण शुं छे ते
समजवा अनेक तत्त्व रसिक जीवो हाल तैयार थया छे; तेथी अनेक सत्शास्त्रोना आधारे गुजराती भाषामां आ
प्रतिक्रमण तैयार करवामां आव्युं छे. माटे तेनो अभ्यास करवानी धर्मी जीवोने विनति करवामां आवे छे.
१०–अमृतवाणी
आमां श्री समयसारनी १४ मी गाथा उपरनां पू. श्री सद्गुरुदेवनां व्याख्यानो छे. निश्चयनये जीवनुं
स्वरूप अबद्ध स्पृष्ट, नियत, अनन्य, अविशेष अने असंयुक्त छे एम ते गाथामां समजाववामां आव्युं छे; ते
पांच भावोनुं स्वरूप आ व्याख्यानोमां घणी सरळ भाषामां आपवामां आव्युं छे. आ स्वरूप समज्या विना
कोई पण जीवने धर्म प्रगटे नहि, माटे आ शास्त्र वांची तेमां कहेला भावो समजवानी खास जरूर छे.
११–श्री समयसार प्रवचनो– (भाग–१)
सां. १९९९मां श्री सद्गुरुदेवे राजकोटमां चातुर्मास करवानी कृपा करी हती, ते वखते परमागम श्री
समयसार उपर जे व्याख्यानो करवामां आवेलां ते घणा अपूर्व हतां; ते व्याख्यानो नोंधी लेवामां आव्या छे,
तेमांथी पहेली तेर गाथाओनां व्याख्यानो आ पुस्तकमां छे. वस्तुनुं साचुं स्वरूप समजवानी जेनी भावना होय
अने अखंड सुख मेळववानी जेनी जिज्ञासा होय तेओए आ प्रवचनोनो अभ्यास करी तेना भाव समजवानी
खास जरूर छे.
१२–मोक्षनी क्रिया
जे जीवो धर्मनी क्रिया शुं कहेवाय ते जाणता नथी तेओ शरीरनी क्रियाथी धर्म थाय, पुण्यनी क्रियाथी धर्म
थाय अगर ते धर्ममां सहायक थाय–वगेरे प्रकारे जोर–शोरथी कह्या करे छे, अने ए रीते तेओ अधर्मने धर्म
मानी मिथ्यात्वने पोषे छे, अने ज्ञान मार्गने निषेधे छे. आवा जीवोत्रणे काळे मोटी संख्यमां होय छे. तेमनी
आ मान्यताने तेमणे मानेला गुरुओ अनेक प्रकारे पोषे छे अने आवी क्रियाओ करतां करतां भविष्यमां कोई
अजाण्या काळे अचानक धर्म प्रगटी जशे ए वगेरे मतलबे घणाओ उपदेशे छे. सूक्ष्म द्रष्टिथी विचार करनार
जीवो धर्मनी क्रिया संबंधी थती आवी गंभीर भूल भरेली मान्यता स्वीकारी शके नहि, तेथी मोक्षनी साची क्रिया
शुं छे ते आ पुस्तकमां समजाववामां आव्युं छे.
१३–छह ढाळा
जे ढाळने धारण करे ते जीव पोताने बचावी शके छे, तेवी रीते जे जीव धर्म संबंधी ढाळ धारण करवा
मांगे छे तेने माटे कविवर दोलतरामजीए बनावेली आ ‘छ ढाळ’ छे; तेमां जीवनी अनादिथी थती सात भूलो,
तेनुं फळ, ते भूलो केम टळे, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र, आत्मानी त्रणदशा, देशव्रत अने महाव्रतरूप शुभभावो
वगेरेनुं स्वरूप–आपेलुं छे. विद्यार्थीओ माटे जैन पाठशाळानुं आ एक पाठय पुस्तक छे. पात्र जीवो पोतानी
भाषामां समजी शके माटे तेनो शब्दार्थ, भावार्थ शब्दना अर्थो वगेरेनुं गुजराती अनुवादन करवामां आव्युं छे,
तेमां अनेक विषयो आपवामां आव्या छे.
अभ्यासीओने विनंति
सत्शास्त्रनो अभ्यास करतां नीचेनी सात बाबतो खास लक्षमां राखवी–
(१) सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
(२) सम्यग्दर्शन पाम्या सिवाय कोई पण जीवने साचां व्रत, सामायिक, प्रतिक्रमण, तप, प्रत्याख्यान
वगेरे होय नहि, केमके ते क्रिया प्रथम पांचमां गुणस्थाने शुभ भावरूपे होय छे.
(३) शुभभाव ज्ञानी अने अज्ञानीने बन्नेने थाय छे, पण अज्ञानी तेनाथी धर्म थशे एम माने छे
अने ज्ञानी (ते हेय बुद्धिए होवाथी) तेनाथी कदी धर्म थाय नहि–एम माने छे.
(४) आ उपरथी शुभभाव करवानी ना पाडवामां आवे छे एम समजवुं नहि पण तेने धर्म मानवो
नहि, के तेथी क्रमे क्रमे धर्म थशे एम मानवुं नहि केमके अनंत वीतरागोए तेने बंधनुं कारण कह्युं छे.
(५) एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहि, परिणमावी शके नहि, प्रेरणा करी शके नहि, असर,
मदद के उपकार करी शके नहि, लाभ–नुकशान करी शके नहि,