[अनुसंधान पान छेल्लानुं]
णता छे एवा सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र तो क्यांथी प्रगटशे?
अहो! जगतने वस्त्र,
मकान, धन वगेरेमां मोटप लागे
छे पण जेओ जगतनुं कल्यण करी
रह्या छे एवा देव–गुरु–शास्त्रने
माटे भक्ति–अर्पणता आवती
नथी! ते वगर उद्धारना टाणा
क्यां?
प्रश्न:– आत्माना स्वरूपमां
राग नथी छतां देव–गुरु–शास्त्रनो
शुभ राग करवानुं केम कहो छो?
उत्तर:– जेम, कोई म्लेच्छने
मांस छोडाववा माटे तेनी साथे
म्लेच्छ भाषा वापरवी पण पडे
परंतु तेथी कांई ब्राह्मणनुं
ब्राह्मणपणुं चाल्युं जाय नहि तेम
तद्न राग छोडाववा माटे जे तीव्र
अशुभरागमां छे तेने प्रथम तो
रागनी दीशा बदलाववा देव–गुरु–
धर्म प्रत्ये शुभ राग करवानुं
कहेवाय (त्यां राग कराववानो हेतु
नथी पण राग छोडाववानो हेतु छे;
जे राग टळ्यो तेटलुं प्रयोजन छे,
राग रहे ते प्रयोजन नथी) पछी
“देव–गुरु–शास्त्रनो शुभराग पण
मारूं स्वरूप नहि” एम रागनो
नकार करी वीतराग स्वरूपनी श्रद्धा
करे छे.
प्रभु! तारी प्रभुता
प्रगटाववा माटे पहेलांं जेमणे
प्रभुता उघाडी छे एवा देव–गुरुनी
भक्ति, मोटप न आवे अने
जगतनी मोटप आवे त्यां सुधी
तारी प्रभुता उघडशे नहि. देव–
गुरु–शास्त्रनी व्यवहार श्रद्धा तो
जीव अनंतवार करी चूक्यो छे. पण
आ आत्मानी श्रद्धा अनंतकाळथी
करी नथी–परमार्थ समजयो नथी.
शुभ रागमां अटकी गयो.
श्री सुवर्णपुरीमां उजवामां आवता महा मांगलिक
म.ह.त्स.व.द.न
कार्तिक शुदी १ (१) बेसतुं वर्ष
(२) श्री समयसारजीनुं गुजरातीमां प्रागटय.
(सं. १९९७)
मागशर शुदी १० (१) श्री स्वाध्याय मंदिरनुं खात मुहुर्त (सं. १९९४)
(२) श्री देरासरजीना निजमंदिरनुं खात मुहुर्त
(सं. १९९७)
पोष वदी ८ भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवनी आचार्य पदवी.
फागण शुदी २ भगवान श्री सीमंधर स्वामीना जैनमंदिर
(देरासरजी) नो प्रतिष्ठा उत्सव (सं. १९९७)
फागण वद १ श्री स्वाध्याय मंदिरमां “कारनी स्थापना
(सं. १९९५)
फागण वद ३ जगत उद्धारक गुरुदेवश्री कानजी स्वामी श्री सुवर्णपुरी
पधार्या (सं. १९९५)
चैत्र सुद १३ (१) जगत शीरोमणि तीर्थंकर भगवान श्री महावीर
स्वामीनो जन्म कल्याणक
(२) विश्ववंद्य गुरुदेवश्री कानजी स्वामीनो पवित्र
परिवर्तन दिवस (सं. १९९१)
वैशाख सुदी २ विश्व वंदनीय गुरुदेवश्री कानजी स्वामीनो जन्म दिवस
(सं. १९४६ श्री उमराळा)
वैशाख सुदी १० जगतवंद्य श्री महावीर भगवाननो केवळ कल्याणक.
वैशाख वदी ६ श्री समवसरणजी (धर्मसभा) नी प्रतिष्ठा
(सं. १९९८)
वैशाख वदी ८ (१) श्री समयसारजीनी प्रतिष्ठा (सं. १९९४)
(२) श्री स्वाध्याय मंदिरनी उद्घाटन क्रिया
(सं. १९९४)
जेठ सुदी प श्रुतपंचमी
अषाड वदी १ जगत शीरोमणि तीर्थंकर भगवान श्री महावीर प्रभुनी
दिव्य ध्वनि छूटी.
भादरवा सुदी प ऋषिपंचमी
श्री पयुर्षणपर्व प्रारंभ
भादरवा सुदी १४ अनंत चर्तुदशी
श्री पर्युषणपर्व पूर्ण
आसो सुदी १० विज्यादशमी
आसो वदी ३० भगवान श्री महावीर प्रभुनो निर्वाण कल्याणक
* सुधारो अंक – १९ *
आत्मधर्म अंक १९ पानुं–११० कोलम–१ लींटी २०–२१–२२
अशुद्ध– (अहीं केवळज्ञान एटले केवळ पर्याय नहि पण सामान्य
ज्ञान ए अर्थ छे.)
शुद्ध– (अहीं केवळज्ञान एटले केवळ पर्याय–ज्ञाननी पूर्ण निर्मळ
दशा–ए अर्थ छे.)