वैशाख : २००१ आत्मधर्म : ११९ :
यथार्थ आत्म स्वरूपनी ओळखाण कराववी ते आ शास्त्रनो मुख्य उदेश छे. × × × × खरेखर आ
काळे आ शास्त्र मुमुक्षु भव्यजीवोनो परम आधार छे. आवा दुषम काळमां पण आवुं अद्भुत अनन्य–
शरणभूत शास्त्र–तीर्थंकरदेवना मुखमांथी नीकळेलुं अमृत–विद्यमान छे ते आपणुं महा सद्भाग्य छे. निश्चय–
व्यवहारनी संधिपुर्वक यथार्थ मोक्षमार्गनी आवी संकलनाबद्ध प्ररूपणा बीजा कोई पण ग्रंथमां नथी.
परम पूज्य सद्गुरुदेवना शब्दोमां कहुं तो–
‘आ समयसार शास्त्र आगमोनुं पण आगम छे; लाखो शास्त्रोनो निचोड एमां रहेलो छे;
जैनशासननो ए स्थंभ छे; साधकनी ए कामधेनु छे, कल्पवृक्ष छे. चौद पुर्वनुं रहस्य एमां समायेलुं छे. एनी
दरेक गाथा छठ्ठा–सातमां गुण–स्थाने झुलता महा मुनिना आत्म–अनुभवमांथी नीकळेली छे. आ शास्त्रना कर्ता
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना समवसरणमां गया हता
अने त्यां तेओ अठवाडियुं रह्या हतां ए वात यथातथ्य छे, अक्षरशःसत्य छे, प्रमाण सिद्ध छे, तेमां लेशमात्र
शंकाने स्थान नथी. ते परम उपकारी आचार्य भगवाने रचेला आ समयसारमां तीर्थंकरदेवनी निरक्षरी “कार
ध्वनिमांथी नीकळेलो ज उपदेश छे.’
× × शासन मान्य भगवान कुंदकुंदाचार्य देवे आ कळिकाळमां जगद्गुरु तीर्थंकर देव जेवुं काम कर्युं छे अने श्री
अमृतचंद्राचार्यदेवे, जाणे के तेओ कुंदकुंद भगवानना हृदयमां पेसी गया होय ते रीते तेमना गंभीर आशयोने
यथार्थपणे व्यक्त करीने, तेमना गणधर जेवुं काम कर्युं छे. आ टीकामां आवतां काव्यो (कळशो) अध्यात्मरसथी
अने आत्मानुभवनी मस्तीथी भरपुर छे.
आ (समयसारनुं गुजराती) अनुवाद करवानुं महा भाग्य मने प्राप्त थयुं ते मने अति हर्षनुं कारण छे.
××× ××× आ अनुवाद भव्य जीवोने जिनदेवे प्ररूपेलो आत्म शान्तिनो यथार्थ मार्ग बतावो, ए मारी
अंतरनी भावना छे. श्री अमृत–चंद्राचार्यदेवना शब्दोमां ‘आ शास्त्र आनंदमय विज्ञानघन आत्माने प्रत्यक्ष
देखाडनारुं अद्वितीय जगतचक्षु छे.’ जे कोई तेना परमगंभीर अने सूक्ष्म भावोने हृदयगत करशे तेने ते
जगतचक्षु आत्मानुं प्रत्यक्ष दर्शन करावशे. ज्यां सुधी ते भावो यथार्थ रीते हृदयगत न थाय त्यां सुधी रात
दिवस ते ज मंथन, ते ज पुरुषार्थ कर्तव्य छे.” (जुओ गुजराती समयसारनो उपोद्घात.)
समयसारजीमां हस्ताक्षर आपतां पुज्य गुरुदेवश्री लखे छे के–“समयप्राभृत एटले समयसाररूपी
भेटणुं. जेम राजाने मळवा भेटणुं आपवुं पडे छे तेम पोतानी परम उत्कृष्ट आत्मदशा स्वरूप परमात्मदशा
प्रगट करवा समयसार जे सम्यग्दर्शन–ज्ञानचारित्र स्वरूप आत्मा तेनी परिणतिरूप भेटणुं आप्ये परमात्मदशा
सिद्धदशा–प्रगट थाय छे.
आ शब्द ब्रह्मरूप परमागमथी दर्शावेला एकत्व विभक्त आत्माने प्रमाण करजो, हा ज पाडजो, कल्पना
करशो नहि. आनुं बहुमान करनार पण महा भाग्यशाळी छे.’
[जुओ समयसारमां हस्ताक्षर]
समयसारना २७८ मा कळशना भावार्थमां कह्युं छे के “... कारणके तेने वांचवा तथा सांभळवाथी
पारमार्थिक आत्मानुं स्वरूप जणाय छे, तेनुं श्रद्धान तथा आचरण थाय छे, मिथ्याज्ञान, श्रद्धान तथा आचरण
दूर थाय छे अने परंपराए मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. मुमुक्षुओए आनो निरंतर अभ्यास करवा योग्य छे.”
आवुं महान परमागम शास्त्र श्री समयसारजी भव्य जीवोना महान भाग्ये प्रकाशमां आव्युं छे अने
तेथी पण विशेष महान भाग्ये आ परमागम शास्त्रना ऊंडा ऊंडा रहस्यने परम कृपाळु श्री सद्गुरुदेव तद्न
सहेली भाषामां समजावी रह्या छे. अने हजारो मुमुक्षुओ आ परमागममां दर्शावेला भावो समजवा तेओश्रीनी
अमृतमय वाणीनो लाभ लई रह्या छे–आ बधुं शासननी उन्नत्ति पूरवार करे छे...
जयवंत वर्तो परमागम श्री समयसार अने तेने समजावनार श्री सद्गुरुदेव!
अहो! समयसारनी रचना! एकेक गाथाए–गाथाए निश्चय–व्यवहारनी अद्भुत रीते जुदा जुदा प्रकारे
संधि पूर्वक गुंथणी करी छे. गाथाए गाथाए जुदा जुदा प्रकारे व्यवहार बतावीने पछी गूलांट मारीने एक
निश्चयमां लावी मुके छे के आ जे व्यवहार बताव्यो ते तुं नहि, एकरूप ज्ञायक स्वरूप ते तुं. आ रीते आखा
समयसारमां निश्चय–व्यवहारनी अलौकिक संधि रहेली छे. अनेक भव्यजीवो पर आ परमागम शास्त्रनो परम
उपकार वर्ते छे, सत्समागम द्वारा आ परमागम शास्त्रनो निरंतर अभ्यास पोताना हितेच्छु मुमुक्षु जीवोए
करवा योग्य छे.