जेठ : २००१ आत्मधर्म : १३७ :
निमित्त.
दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय;
जो निमित्त झुंठो कहो, यह कयोंमानै लोय. १४.
अर्थ:– निमित्त कहे–दया, दान, पूजा करे तो जीव
जगतमां सुखी थाय छे. जो निमित्त, तमे कहो छो तेम,
जुठुं होय तो लोको तेने केम माने? १४.
उपादान.
दया दान पूजा भली, जगतमाहि सुखकार;
जहं अनुभवको आचरन, तहं यह बंध विचार. १प.
अर्थ:– उपादान कहे–दया, दान, पूजा शुभ भाव
जगतमां बाह्य सगवड आपे, पण अनुभवना
आचरणनो विचार करतां, ए बधा बंध छे, [धर्म
नथी] १प.
निमित्त.
यह तो बात प्रसिद्ध हैं, शोच देख उरमाहि;
नर देही के निमित्त बिन, जिय कयोंमुक्ति न जाहिं.
१६.
अर्थ:– निमित्त कहे–अंतरमां विचार करी जोतां
[तमे कही] ए वात तो प्रसिद्ध छे; पण नरदेहना
निमित्त विना जीव केम मुक्ति पामतो नथी? १६.
उपादान.
देह पींजरा जीवको, रोके शिवपर जात;
उपादानकी शक्तिसों, मुक्ति होत रे भ्रात. १७.
अर्थ:– उपादान निमित्तने कहे छे–अरे भाई!
देहनुं पींजरुं तो जीवने शिवपुर [मोक्ष] जतां रोके छे;
पण उपादाननी शक्तिथी मोक्ष थाय छे.
नोंध:– अहीं देहनुं पींजरुं जीवने रोके छे एम
कह्युं छे ते व्यवहारकथन छे, जीव शरीर उपर लक्ष करी
मारा पणानी पककड करी, पोते विकारमां रोकाय छे,
त्यारे शरीरनुं पींजरुं जीवने रोके छे एम उपचारथी
कहेवाय छे. १७.
निमित्त.
उपादान सब जीवपै, रोकन हारो कौन;
जाते कयों नहि मुक्तिमें, बिन निमित्तके होन. १८.
अर्थ:– निमित्त कहे–उपादान तो बधा जीवोने छे,
तो पछी तेने रोकनारो कोण? मुक्तिमां केम जता नथी?
निमित्त नथी मळतुं तेथी तेम थाय छे. १८.
उपादान.
उपादान सुअनादिको, उलट रह्यो जगमाहि;
सुलटतही सुधे चले, सिद्ध लोकको जाहिं. १९.
अर्थ:– उपादान कहे–जगतमां उपादान
अनादिथी ऊलटुं थई रह्युं छे. सूलटुं थतां साचुं ज्ञान
अने चारित्र थाय छे अने तेथी सिद्धलोकमां ते जाय छे.
(मोक्ष–पामे छे.) १९.
निमित्त.
कहुं अनादि बिन निमि–तही, उलट रह्यो उपयोग;
ऐसी बात न संभवै, उपादान तुम जोग. २०.
अर्थ:– निमित्त कहे–शुं अनादिथी निमित्त वगर
ज उपयोग (ज्ञाननो व्यापार) ऊलटो थई रह्यो छे?
माटे हे उपादान! तारी ए वात व्याजबी संभवती
नथी. २०.
उपादान.
उपादान कहै रे निमित्त, हमपै कही न जाय;
ऐसे ही जिन केवली, देखै त्रिभुवनराय. २१.
अर्थ:– उपादान कहे, अरे निमित्त! निमित्त छे
एम जिन केवळी त्रिभुवनराय देखे छे तो ‘निमित्त
नथी’ एम माराथी केम कहेवाय?
नोंध:– अहीं कहे छे के–उपादानमां कार्य थाय
त्यारे निमित्त स्वयं हाजर होय पण उपादानने ते कांई
करी शकतुं नथी एम अनंत ज्ञानीओ तेमना ज्ञानमां
देखे छे. २१.
निमित्त.
जो देख्यो भगवान ने, सोही सांचो आहि;
हम तुम संग अनादिके, बली कहोगे काहि. २२.
अर्थ:– निमित्त कहे–भगवाने जे देख्युं छे ते ज
साचुं छे ए खरुं, पण मारो अने तारो संबंध
अनादिनो छे, माटे आपणामांथी बळवान कोने कहेवो?
(बन्ने सरखा छईए एम तो कहो.) २२.
उपादान.
उपादान कहै वह बली, जाको नाश न होय;
जो उपजत बिनशत रहै, बली कही तें सोय. २३.
अर्थ:– उपादान कहे के जेनो नाश न थाय ते
बळवान; जे ऊपजे अने विणसे ते बळवान केवी रीते
होई शके? (न ज होय).
नोंध:– उपादान त्रिकाळी अखंड एकरूप वस्तु
पोते छे, तेथी तेनो नाश नथी. निमित्त तो संयोगरूप
छे, आवे ने जाय तेथी नाशरूप छे तेथी उपादान ज
बळवान छे. २३.
निमित्त.
उपादान तुम जोर हो, तो कयों लेत अहार;
परनिमित्तके योगसों, जीवत सब संसार. २४.