: १३६ : आत्मधर्म जेठ : २००१
भैया भगवतीदासजी कृत उपादान – निमित्तनो संवाद
दोहरा
पाद प्रणमि जिनदेवके, एक उक्ति उपजाय;
उपादान अरु निमित्तको, कहुं संवाद बनाय. १.
अर्थ:– जिनदेवना चरणे प्रणाम करी, एक अपूर्व
कथन तैयार करुं छुं; उपादान अने निमित्तनो संवाद
बनावीने ते कहुं छुं. १.
प्रश्न.
पूछत है कोऊ तहां, उपादान किह नाम;
कहो निमित्त कहिये कहा, कबके हैं ईह ठाम. २.
अर्थ:– त्यां कोई पूछे छे के–उपादान केनुं नाम?
निमित्त केने कहीए? अने कयारथी तेमनो संबंध छे ते
कहो. २.
उत्तर.
उपादान निजशक्ति है, जियको मूल स्वभाव;
है निमित्त परयोगतें, बन्यो अनादि बनाव. ३.
अर्थ:– उपादान पोतानी शक्ति छे, ते जीवनो
मूळ स्वभाव छे; अने परसंयोगथी निमित्त छे. तेमनो
संबंध अनादिथी बनी रह्यो छे. ३.
निमित्त.
निमित्त कहैं मोको सबै, जानत हैं जग लोय;
तेरो नाव न जानहीं, उपादान को होय. ४.
अर्थ:– निमित्त कहे छे के–जगतना सर्वे लोको
मने जाणे छे; उपादान कोण तेनुं नाम पण जाणता
नथी. ४.
उपादान.
उपादान कहै रे निमित्त, तु कहा करैं गुमान;
मोकों जाने जीव वे, जो हैं सम्यकवान. प.
अर्थ:– उपादान कहे छे–अरे निमित्त तुं
अभिमान शा माटे करे छे, जे जीव सम्यक्ज्ञानी
(आत्माना साचा ज्ञानी) होय ते मने जाणे छे. प.
निमित्त.
कहै जीव सब जगतके, जो निमित्त सोई होय;
उपादानकी बातको, पूछै नाहीं कोय. ६.
अर्थ:– निमित्त कहे छे–जगतना सर्व जीव कहे छे
के जो निमित्त होय तो (कार्य) थाय; उपादाननी वातनुं
कोई कांई पूछतुं नथी. ६.
उपादान.
उपादान बिन निमित्त तु, कर न सकै ईक काज;
कहा भयो जग ना लखै, जानत है जिनराज. ७.
अर्थ:– उपादान कहे छे–अरे निमित्त! एक पण
कार्य उपादान विना थई शकतुं नथी. जगत न जाणे तेथी
शुं थयुं? जिनराज ते जाणे छे. ७.
निमित्त.
देव जिनेश्वर गुरु यती, अरु जिन आगम सार;
ईहि निमित्ततें जीव सब, पावत है भवपार. ८.
अर्थ:– निमित्त कहे छे–जिनेश्वरदेव, निर्ग्रंथगुरु
अने वीतरागनां आगम उत्कृष्ट छे; ए निमित्तो वडे
सर्वे जीव भवनो पार पामे छे. ८.
उपादान.
यह निमित्त ईह जीवाके, मिल्यो अनंती बार;
उपादान पलटयो नहीं, तौं भटक्यो संसार. ९.
अर्थ:– उपादान कहे छे–ए निमित्तो आ जीवने
अनंतीवार मळ्यां, पण उपादान– (जीव पोते) पलटयुं
नहीं तेथी ते संसारमां भटक्यो. ९.
निमित्त.
कैं केवली कैं साधु कैं निकट भव्य जो होय;
सो क्षायक सम्यक लहै, यह निमित्त बल जोय. १०.
अर्थ:– निमित्त कहे–जो केवळी भगवान अगर
श्रुतकेवळी मुनि पासे भव्य जीव होय तोज क्षायिक
सम्यक्त्व प्रगटे छे ए निमित्तनुं बळ जुओ! १०.
उपादान.
केवली अरु मुनिराजके, पास रहैं बहु लोय;
पै जाको सुलटयो धनी, क्षायक ताको होय. ११.
अर्थ:– उपादान कहे–केवळी अने श्रुतकेवळी
मुनिराज पासे घणा लोको रहे छे, पण जेनो धणी
(आत्मा) सवळो थाय तेने ज क्षायिक (सम्यक्त्व)
थाय छे. ११.
निमित्त.
हिंसादिक पापन किये, जीव नर्कमें जाहि;
जोनिमित्तनहिं कामको, तो ईम काहे कहाहिं. १२.
अर्थ:– निमित्त कहे–जे हिंसादिक पाप करे छे ते
नर्कमां जाय छे. जो निमित्त कामनुं न होय तो एम शा
माटे कह्युं? १२.
उपादान.
हिंसामें उपयोग जिहं, रहैं ब्रह्मके राच;
तेई नर्कमें जात हैं, मुनि नहिं जाहिं कदाच. १३.
अर्थ:– हिंसामां जेनो उपयोग (चैतन्यनां
परिणाम) होय अने जे आत्मा तेमां राची रहे, ते
नर्कमां जाय छे, (भाव) मुनि कदापि नर्कमां जता
नथी. १३.