: १३८ : आत्मधर्म जेठ : २००१
अर्थ:– निमित्त कहे–उपादान, तारूं जो जोर छे.
तो तुं आहार शा माटे ले छे? संसारना बधा जीवो पर
निमित्तना योगथी जीवे छे. २४.
उपादान.
जो अहारके जोगसों, जीवत है जगमाहिं;
तो वासी संसारके, मरते कोउ नाहिं. २५.
अर्थ:– उपादान कहे–जो आहारना जोगथी
जगतना जीवो जीवता होत तो संसारवासी कोई जीव
मरत नहीं. २प.
निमित्त.
सुर सोम मणि अग्निके, निमित्त लखैं ये नैन;
अंधकारमें कित गयो, उपादान दग दैन. २६.
अर्थ:– निमित्त कहे–सूर्य, चंद्र, मणि के अग्निनुं
निमित्त होय तो आंख देखी शके छे, उपादान जो
देखवानुं (काम) आपतुं होय तो अंधकारमां ते क्यां
गयुं? (अंधकारमां केम आंखेथी देखातुं नथी?) २६.
उपादान.
सुर सोम मणि अग्नि जो, करे अनेक प्रकाश;
नैन शक्ति बिनना लखै, अन्धकारसम भास. २७.
अर्थ:– उपादान कहे–जो के सूर्य, चंद्र, मणि के
अग्निनुं निमित्त होय तो आंख देखी शके छे, उपादान जो
देखवानुं (काम) आपतुं होय तो अंधकारमां ते क्यां
गयुं? (अंधकारमां केम आंखेथी देखातुं नथी?) २६.
उपादान.
सुर सोम मणिअग्नि जो, करै अनेक प्रकाश;
नैन शक्ति बिन ना लखै, अन्धकारसम भास. २७.
अर्थ:– उपादान कहे–जो के सूर्य, चंद्र, मणि अने
अग्नि अनेक प्रकारनो प्रकाश करे छे तो पण देखवानी
शक्ति विना देखाय नहीं, बधुं अंधकार जेवुं भासे छे. २७.
निमित्त.
कहै निमित्त वे जीव को? मो बिन जग के माहि;
सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं. २८.
अर्थ:– निमित्त कहे–मारा विना जगतमां जीव
कोण मात्र? बधा मारे वश पड्या छे. मारा विना मुक्ति
थती नथी. २८.
उपादान.
उपादान कहै रे निमित्त, ऐसे बोल न बोल;
ताको तज निज भजत हैं, तेही करैं किलोल. २९.
अर्थ:– उपादान कहे–अरे निमित्त एवां वचनो
न बोल. तारा उपरनी द्रष्टि तजी जे जीव पोतानुं भजन
करे छे ते ज कलोल (आनंद) करे छे. २९.
निमित्त.
कहैं निमित्त हमको तजे, ते कसें शिव जात;
पंचमहाव्रत प्रगट हैं, और हु क्रिया विख्यात. ३०
अर्थ:– निमित्त कहे–अमने तजवाथी मोक्ष केवी
रीते जवाय? पांच महाव्रत प्रगट छे; वळी बीजी क्रिया
पण विख्यात छे. (तेने लोको मोक्षनुं कारण माने छे.) ३०
उपादान.
पंचमहाव्रत जोग त्रय, और सकल व्यवहार;
परको निमित्त खपायके, तब पहुचें भवपार. ३१.
अर्थ:– उपादान कहे–पांच महाव्रत, मन, वचन
अने काय ए त्रण तरफनुं जोडाण, वळी बधो व्यवहार
अने पर निमित्तनुं लक्ष ज्यारे जीव छोडे त्यारे
भवपारने पहोंची शके छे. ३१.
निमित्त.
कहै निमित्त जग मैं बडो, मोतैं बडो न कोय;
तीन लोकके नाथ सब, मो प्रसादतैं होय. ३२.
अर्थ:– निमित्त कहे–जगतमां हुं मोटो छुं,
माराथी मोटो कोई नथी; त्रण लोकनो नाथ पण मारी
कृपाथी थाय छे.
नोंध:– सम्यक्दर्शननी भूमिकामां ज्ञानी जीवने
शुभ विकल्प आवतां तीर्थंकर नामकर्म बंधाय छे, ते
द्रष्टांत रजु करी, पोतानुं बळवानपणुं ‘निमित्त’
आगळ धरे छे. ३२.
उपादान.
उपादान कहै तु कहा, चहुं गतिमें ले जाय;
तो प्रसादतैं जीव सब, दुखी होहिं रे भाय. ३३.
अर्थ:– उपादान कहे तुं कोण? तुं तो जीवने चारे
गतिमां लई जाय छे. भाई तारी कृपाथी सर्वे जीवो
दुःखी ज थाय छे.
नोंध:– निमित्ताधीन द्रष्टिनुं फळ चारे गति
एटले संसार छे. निमित्त पराणे जीवने चार गतिमां
लई जाय छे एम समजवुं नहीं. ३३.
निमित्त.
कहै निमित्त जो दुःख सहै, सो तुम हमहि लगाय;
सुखी कौनतै होत है, ताको देहु बताय. ३४.
अर्थ:– निमित्त कहे–जीव दुःख सहन करे छे तेनो
दोष तुं अमारा उपर लगावे छे तो जीव सुखी शाथी
थाय छे ते बतावी दे! ३४.
उपादान.
जो सुखको तु सुख कहैं, सो सुख तो सुख नाहिं;
ये सुख, दुःखके मूल है, सुख अविनाशी मांहि. ३प.
अर्थ:– उपादान कहे जे सुखने तुं सुख कहे छे ते
सुख ज नथी. ए सुख तो दुःखनुं मूळ छे. आत्माना
अंतरमां अविनाशी सुख छे. ३प.