Atmadharma magazine - Ank 021
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २००१ आत्मधर्म : १३९ :
निमित्त.
अविनाशी घट घट बसै, सुख कयों विलसत नाहिं;
शुभ निमित्तके योग बिन, परे परे विललाहिं. ३६.
अर्थ:– निमित्त कहे–अविनाशी (सुख) तो घट
घट (दरेक जीव) मां वसे छे, तो जीवोने सुखनो विलास
(भोगवटो) केम नथी? शुभ निमित्तना योग वगर
जीव क्षणेक्षणे दुःखी थई रह्यो छे. ३६.
उपादान.
शुभ निमित्त ईह जीवको, मिल्यो कई भवसार.
पै ईक सम्यक दर्श बिन, भटकत फिर्यो गंवार. ३७.
अर्थ:– उपादान कहे–शुभ निमित्त आ जीवने
घणा भवोमां मळ्‌युं, पण एक सम्यग्दर्शन विना आ
जीव गमारपणे (अज्ञानभावे) भटकया करे छे. ३७.
निमित्त
सम्यक दर्श भये कहा, त्वरित मुक्तिमें जाहिं;
आगे ध्यान निमित्त हैं, ते शिवको पहुंचाहिं. ३८.
अर्थ:– निमित्त कहे–सम्यग्दर्शन थये शुं थयुं? शुं
तेथी तुरत ज मुक्तिमां जवाय छे? आगळ पण ध्यान
निमित्त छे, ते शिव (मोक्ष) पदमां पहोंचाडे छे. ३८.
उपादान
छोर ध्यानकी धारना, मोर योगकी रीति;
तोर कर्मके जालको जोर लई शिवप्रीति. ३९.
अर्थ:– उपादान कहे–ध्याननी धारणा छोडीने,
योगनी रीतिने समेटी लईने, कर्मनी जाळने तोडी,
पुरुषार्थ वडे शिवपदनी प्राप्ति जीव करे छे. ३९.
निमित्तनो पराज्य.
तब निमित्त हार्यो तहां, अब नहिं जोर बसाय;
उपादान शिव लोकमें, पहुंच्यो कर्म खपाय. ४०.
अर्थ:– त्यारे निमित्त त्यां हार्युं. हवे ते कांई जोर
करतुं नथी. उपादान शिवलोकमां (सिद्धपदमां) कर्मनो
क्षय करी पहोंच्युं. ४०.
उपादाननी जीत.
उपादान जीत्यो तहां, निजबल कर परकास;
सुख अनंतध्रुव भोगवैं, अंत न बरन्यो तास. ४१.
अर्थ:– उपादान त्यां जीत्युं, पोताना बळनो
प्रकाश कर्यो, त्यां अनंत सुख ध्रुव (निश्चळ) पणे
भोगवे छे. तेना वर्णननो अंत आवी शके नहीं ४१.
.
उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवनपै वीर;
जो निजशक्ति संभारहीं, सो पहुंचे भवतीर ४२.
अर्थ:– उपादान अने निमित्त ए बधा जीवोने
होय छे पण जे वीर छे ते निजशक्तिने संभाळी ले छे
अने भवनो पार पामे छे. ४२.
आत्मानो महिमा.
भैंया महिमा ब्रह्मकी, कैसे बरनी जाय;
वचनअगोचर वस्तु है, कहिबो बचन बनाय. ४३.
अर्थ:– (भगवतीदास) भैया कहे छे–ब्रह्मनी
[आत्मानी] महिमा केम वर्णवी जाय? ते वस्तु
वचनथी अगोचर छे–कया वचनो वडे बतावाय? ४३.
सरस संवाद.
उपादान अरु निमित्त को, सरस बन्यो संवाद;
समद्रष्टिको सुगम हैं, मूरखको बकवाद. ४४.
अर्थ:– उपादान अने निमित्तनो आ सुंदर
संवाद बन्यो छे. सम्यग्द्रष्टिने ते सहेलो छे, मूर्खने
बकवादरूप लागशे. ४४.
आत्माना गुणने ओळखे ते आ स्वरूप जाणे.
जो जानै गुण ब्रह्मके, सो जानै यह भेद;
साख जिनागमको मिलै, तो मत कीज्यो खेद. ४प.
अर्थ:– आत्माना गुणने जे जाणे ते आनो मर्म
जाणे. साक्षी जिनागमथी मळे छे, माटे खेद करवो नहि.
आग्रामां संवाद रच्यो.
नगर आगरो अग्रहै, जैनी जनको बास;
तिहंथानक रचनाकरी, ‘भैया’ स्वमति प्रकास. ४६.
अर्थ:– आग्रा शहेर जैनी जनोना वास माटे
अग्र छे. ते क्षेत्रे आ रचना (भगवतीदास) भैयाए
पोताना ज्ञानना प्रकाश माटे करी छे. ४६.
वर्ष
संवत विक्रम भूप को, सत्रहसै पंचास;
फाल्गुण पहिले पक्षमें, दशों दिशा परकाश. ४७.
अर्थ:– विक्रम राजाना संवत १७प० ना
फागणना प्रथम पक्षमां दशे दिशामां (सुद १प ना
रोज) आनो प्रकाश थयो. ४७.