Atmadharma magazine - Ank 021
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १४० : आत्मधर्म जेठ : २००१
अस्ति नास्तिनुं सुदर्शन चक्र धारण करनार
जैन शुं माने छे?
जैनो कर्मवादी नथी.
कर्म तो जड छे, जैनो जडवादी नथी, पण आत्मस्वभावने माननारा छे. आत्मानो चैतन्य स्वभाव छे, ते
स्वभावमां जड कर्म तो नथी परंतु रागद्वेष पण नथी. एटले जैनो जड कर्मवादी तो नथी ज, अने जे पुण्यपापना
विकारभाव थाय तेने पण जैनो आत्मानो स्वभाव मानता नथी. ए रीते जैनो विकारवादी पण नथी. जैनो तो
परिपूर्ण पवित्र चैतन्य आत्म स्वभावने माननारा छे, अने ते आत्म स्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरता ते ज
धर्म छे, शुभ के अशुभ विकल्प ऊठे ते धर्म नथी. पुण्य–पाप ते पराश्रय छे अने धर्म तो स्वाश्रय स्वभाव छे;
पराश्रयभावमां धर्म मानवो तेने भगवाने मिथ्यात्व कह्युं छे. [ता. १६–४–४प चर्चाना आधारे]
कर्म आत्माने पुरुषार्थ करतां रोकी शके नहिं.
कयुं कार्य जड करे अने कयुं कार्य चेतन करे ए नहि समजनारा जीवो सामान्य रीते बे प्रकारनी भूल करे
छे. (१) हुं परवस्तुनुं कार्य करी शकुं अने (२) कर्म आत्माने पुरुषार्थ करतां रोके. जड वस्तुओनुं कार्य हुं करी
शकुं अने हुं पुरुषार्थथी तेमने मेळवी के छोडी शकुं–एटले के जडनां कार्योमां आत्मानो पुरुषार्थ चाले–एम जे
माने छे ते ‘जडवादी’ छे, केमके ते आत्माने जडनो कर्ता माने छे. ते जीव जैनधर्मनुं स्वरूप जाणतो नथी.
आपणा भवितव्यमां मुक्ति होय तो पुरुषार्थ जागे, कर्मनुं जोर ओछुं थाय तो आत्मामां पुरुषार्थ जागे
अने कर्मना उदय अनुसार पुरुषार्थ थाय–एम माननार अज्ञानी जीव छे केमके आत्मानो पुरुषार्थ तथा मुक्ति
जड कर्मने आधीन ते माने छे–ते ‘कर्मवादी’ छे. अने कर्म जड होवाथी तेओ पण ‘जडवादी’ छे
आत्मस्वभाववादी नथी, जैन नथी.
क्यां जड कार्य करे अने क्यां चैतन्यनो पुरुषार्थ कार्य करे तेनुं स्वरूप जेओ नथी जाणता तेओ अज्ञानी
छे. कर्म अने पुरुषार्थनुं स्वरूप शुं तथा तेओ क्यां कई रीते कार्य करी शके छे तेनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे छे:–
कर्म= पूर्वे आत्माए करेला शुभाशुभ भावनुं निमित्त पामीने जड परमाणुओनो आत्मा साथे
अमुककाळ संयोग रहे छे, ते परमाणुओने ‘कर्म’ कहेवामां आवे छे, ते जड छे.
पुरुषार्थ= आत्माना वीर्य गुणनी अवस्था ते आत्मानो पुरुषार्थ छे.
कई क्रिया आत्माना पुरुषार्थने आधीन छे अने कई क्रिया कर्मने आधीन छे तेनो खुलासो––
संसारमां थता पर वस्तुना संयोग–वियोगना कार्यो कर्मना उदय अनुसारे थाय छे, एटले के पैसा
मळवा, स्त्री मळवी, शरीर अनुकुळ रहेवुं ए वगेरे जडना संयोग वियोगना कार्य अघाती कर्मना उदय अनुसार
थाय छे, आत्मा ते कार्यो करी शकतो नथी. बहारनी सामग्री हुं मारा वर्तमान पुरुषार्थथी मेळवी शकुं के हुं तेने
सरखी राखी शकुं–एम जे माने छे ते जीव पोतानो पुरुषार्थ जडमां थई शके एम माने छे–तेथी ते ‘जडवादी’ छे.
तेने वस्तुना स्वभावनी खबर नथी.
मोक्ष पामवा माटे आत्मानो पुरुषार्थ कार्य करी शके छे. मोक्ष साधनमां पुरुषार्थ ते उपादान छे अने
पुरुषार्थ करे त्यारे सम्यग्ज्ञानी पुरुषोनो उपदेश अने सत्समागम निमित्तरूपे होय छे. मोक्ष तो आत्माना
स्वतंत्र पुरुषार्थथी ज थाय छे. जे सत्य पुरुषार्थ करे तेनी मुक्ति थाय, जे सत्य पुरुषार्थ न करे तेनी मुक्ति न
थाय. सत्यपुरुषार्थ करतां आत्मानुं शुद्धतारूपी जे कार्य प्रगटे ते ज भवितव्य छे. मोक्ष संबंधी कार्य पुरुषार्थ
प्रमाणे थाय छे, तेमां कर्मनुं कांई चालतुं नथी. आत्मानो पुरुषार्थ स्वतंत्र छे. पुरुषार्थ न करे त्यां भवितव्य पण
होय नहि. मुक्तिरूपी कार्य पुरूषार्थथी ज प्रगटे छे. [चर्चाना आधारे] जे पुरुषार्थने नथी मानता ते आत्माने
ज मानता नथी.
आजीवन ब्रह्मचर्य
आ संस्थाना एक आगळ पडता कार्यकर राणपुरना शेठ नारणदास करसनजी [उंमर वर्ष ४२] तथा
तेमनां धर्मपत्नी समताबेन [उंमर वर्ष ४१] तेओए सजोडे वैशाख वद ८ ता. ४–६–४प रविवारना रोज
पूज्य सद्गुरुदेव पासे आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार कर्युं छे.