जेठ : २००१ आत्मधर्म : १४१ :
आत्मामां अनंत गुणो छे, तेमां वीर्य–पुरुषार्थ पण एक गुण छे; वीर्य गुण अनादि–अनंत छे, आत्मा
त्रिकाळ वीर्य स्वरूप छे; ते पुरुषार्थ गुण दरेक समये पोतानुं कार्य करी ज रह्यो छे; एटले के दरेक समये सवळो
के ऊंधो पुरुषार्थ तो कर्या ज करे छे. जो एक समय पण पुरुषार्थ वगर जतो होय तो त्रिकाळी द्रव्यना ज
अभावनो प्रसंग आवी पडे छे. एक समय पण जो पुरुषार्थरूपी अवस्था न होय तो अवस्थाना अभावमां
गुणनो अभाव थयो, अने गुणनो अभाव थतां आखुं द्रव्य ज न रह्युं; आ रीते जे पुरुषार्थने स्वीकारतो नथी
ते आखा द्रव्यने ज स्वीकारतो नथी; केमके द्रव्य त्रिकाळ छे, तेमां पुरुषार्थ गुण त्रिकाळ छे, अने ते गुण दरेक
समये पोतानुं कार्य करी ज रह्यो छे. अवस्था गुण वगर होय नहि अने गुण गुणी वगर होय नहि, जे जीव
अवस्थानो नकार करे छे ते गुणनो नकार करे छे; अने गुणना अभावमां गुणीनो पण अभाव आवी पडे छे.
तेथी जे स्वतंत्र पुरुषार्थने नथी स्वीकारतो अने कर्मने आधीन पुरुषार्थ माने छे ते आखा त्रिकाळी द्रव्यनो ज
नकार करे छे. आखा द्रव्यना नकारनुं फळ अनंत संसार ज छे, तेथी जे पुरुषार्थने नथी स्वीकारतो ते जीव
अनंत संसारी छे. जैनधर्म वस्तुना परिपूर्ण स्वभावने स्वीकारे छे, अने वस्तुना परिपूर्ण स्वभावमां पुरुषार्थ
पण परिपूर्ण ज छे, एटले जैनो परिपूर्ण पुरुषार्थने माननारा–स्वभाववादी–छे.
[मोक्षमार्ग प्रकाशकना व्याख्यानमांथी]
जैनो त्याग प्रधानी नथी
केटलाको मात्र त्याग उपरथी जैनधर्मनी महत्ता माने छे, परंतु ते मान्यता बराबर नथी. जैनधर्म त्याग
प्रधानी नथी, पण अनेकांत मार्ग एज जैन धर्मनी मुख्यता छे, त्याग ते तो नास्ति छे, अस्तिस्वरूप वगर
नास्ति होय नहि एटले के पहेलांं हुं ज्ञान स्वरूप आत्मा छुं ए जाण्या वगर त्याग कोनो? पर वस्तुना त्यागनुं
कर्तापणुं आत्माने नथी केमके पर वस्तु तो आत्माथी जुदी ज छे. हवे आत्माना स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान अने
स्थिरतारूप अस्तिना जोरे परभावरूप विकारनो त्याग तेनुं नाम नास्ति छे. आत्माना अस्तिस्वरूपना भान
वगर रागादिनी नास्ति थाय नहि. अस्ति–नास्ति स्वरूप अनेकांत ए ज जैनधर्मनी प्रधानता छे. एटले के
मात्र त्याग ते जैनधर्मनी प्रधानता नथी, पण वस्तु स्वरूपनी स्वथी परिपूर्णता, दरेक द्रव्यनुं जुदापणुं––स्वथी
अस्तिपणुं अने परथी नास्तिपणुं एवो स्वभाव ए ज जैनधर्मनी प्रधानता छे.
[२९ – प – ४प ना व्याख्यानमांथी]
जय समयसर
“बनावुं पत्र कुंदननां, रत्नोनां अक्षरो लखी;
तथापि कुंदसुत्रोनां; अंकाये मूल्य ना कदी.”
१–वैशाक वद ८ ते श्री समयसारजी शास्त्रनी प्रतिष्ठानो मांगलिक दिवस छे; ते मांगलिक दिवसे जसाणी
काळीदास राघवजीना सुपुत्रो तरफथी चांदीनुं समयसार– (जेमां चांदीना पानांओ उपर श्री कुंदकुंद भगवंतनी
मूळ गाथाओ कोतरेली छे) जेनी किंमत लगभग रूा. चार हजार छे ते, श्री जैन स्वाध्याय मंदिरने भेट
आपवामां आव्युं छे. आ भेट इंदोरना सर हुकमीचंदजी शेठना हस्तके आपवामां आवी हती.
२–भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे समयप्राभृतनी रचना करी, अमृतचंद्राचार्यदेवे तेना उपर भगवती
आत्मख्याति टीका करी अने सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीए, आचार्यदेवोए वर्णवेला समयप्राभृतना गूढ
रहस्योने अत्यंत विस्तृत प्रवचनो द्वारा खुल्लां कर्यां छे; अने ए प्रवचनो ‘समयसार प्रवचन’ तरीके छपाईने
प्रगट थाय छे.
आ समय प्राभृतने आचार्यदेवे नाटकरूपे गुथ्युं छे. आ परमागम शास्त्रना रचनार, टीकाकार अने
प्रवचनकार ए त्रणे करार करे छे के आ ४१प गाथामां गुंथायेला नाटक द्वारा, नाटक जोनारने, जेवो केवळी
भगवाने पूर्ण आत्मा जोयो छे तेवो ज दर्शावी देशुं; एटले आ समय प्राभृतशास्त्र एक वार पण यथार्थ
सांभळनार जीव आत्माना पूर्ण स्वरूपने अवश्य पामशे ज. आत्मस्वरूपने प्राप्त करवा ईच्छता मुमुक्षु जीवोने
आ समयसार–प्रवचनोनो अभ्यास करवो जरूरी छे. तेनो पहेलो भाग अगाउ बहार पडी गयो छे–जेनी किंमत
रूा. ३ छे. अने तेनो त्रीजो भाग [गाथा–२३ थी ६८] वैशाक वद ८ ना मंगळ दिने बहार पड्यो छे–आ
भागनां पानां लगभग ७०० छे–तेनी किंमत रूा. ३–०–० छे.