Atmadharma magazine - Ank 021
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
वष : २ जठ
अक : ९ २०१
जन्म–मरणना अनंत–अनंत भवनो अभाव करवा माटेना आ महान टाणांने आ ज क्षणे
सफळ बनावो... आयुष्य घटतुं जाय छे... जीवननी पळो घटती जाय छे. प्रतिक्षणे जीवन टुंकु ज थई
रह्युं छे... हवे विलंब न करो...
जगतनी दरकार छोडीने आज क्षणे परम परमात्मस्वरूपनी प्राप्ति करी तेनुं शरण करो,
शांतिदायक ते ज छे. देह निरोग छे माटे आयुष्य लांबु छे एम स्वप्नेय न मानो. आ ज क्षणे
देहथी भिन्न छुं अने देह छोडीने आज क्षणे जवानुं बने तो पण मारी स्वरूपनी शांति मारामां
प्रगट करी शकुं एवी निःशंक श्रद्धा करो.
आ जीवनदीप बूझाई जाय ते पहेलांं जागृत थईने, अंतर मंथन द्वारा परम चैतन्य
ज्योतनो आश्रय करो, अंतरना भगवानने आ समये ज ओळखी ल्यो...
घणुं जीवन चाल्युं गयुं छे––अने–समाधिना वखत अति–अति नीकट आव्या छे––हवे तो
चेतीने जागो...
बे दिवसमां बे प्रसंग बनी गया छे– (१) वढवाण–करांचीवाळा मगनलाल त्रीभोवन
चुडगर. तेओ त्रण वर्ष थया करांचीथी सोनगढ आवेला, अने त्रण वर्ष सत्समागमनो लाभ
लीधो. चैत्र सुद–६ नी सांजे तेओ काम प्रसंगे करांची जवा माटे रवाना थया. अने छेल्ला, सांजे–
७ वागे पू. गुरुदेव पासे दर्शन करवा आव्या. परंतु, दर्शन करतां खूब ध्रूसके ध्रूसके रोई पड्या,
सत्समागमनो विरह थतो हतो ते तेमनाथी सहन थई शकतो न हतो. एटले ध्रुसके ध्रुसके रोई
पड्या–अने सीधी छातीमां चोट लागी. पछी तो सांजे ट्रेईनमां करांची जवा माटे रवाना पण थया.
तद्न निरोग अने तंदुरस्त! सुद–७ ना रोज सवारे पांच वागे ज्यां वीरमगाम स्टेशन आव्युं त्यां
देह छूटी गयेलो... हार्ट फेईलने कारणे देह छूटी गयो हतो... जुओ तो खरा जीवनदीप! हजी सांजे
तो सत्समागमना विरहनी वेदनाथी रडे छे, अने सवारे तो देह छूटीने बीजा भवमां अवतार पण
थई गयो... तेओ तो सत्नी झंखना लईने गया छे... पण जेणे जीवनमां सत्समागम कर्यो नथी,
सत समजवानी दरकार पण कदी करी नथी... एवाओ देह छोडीने क्यां शरण लेशे? ? ?
बीजो प्रसंग
‘समितिनो एक महान स्थंभ पडी जाय छे’
भक्तिनी झंखना लईने भगवान पासे जाय छे.
सनातन जैन धर्मप्रेमी, तत्त्वज्ञानना पिपासु अने उदार चित्त पारेख लीलाधर डाह्याभाई चैत्र सुद ८
नी सवारे ८–० वागे देह छोडीने स्वर्गमां गया. आगली रात्रे (सुद ७) पू. गुरुदेवने आहारनी विनंती करे छे;
बहारगामथी आवेला महेमानोने सगवडता वगेरे माटे व्यवस्था करे छे, अने सुद ८ नी सवारे चर्चामां आवे
छे, कदी पण सवारे तेओ आवता नहीं परंतु आजे सवारे आवेला; सवारे चर्चामां कदी स्तुति भक्ति थती
नथी, परंतु खास आजे तेमणे पू. गुरुदेव पासे भक्ति करावी.
“अहो–अहो श्री सद्गुरु, करुणा सिंधु अपार आ पामर पर प्रभु कर्यो, अहो अहो उपकार” ...
भक्ति खूब उल्लासथी करावी, अने भक्ति पछी आहारनी पू. गुरुदेवने विनंती करी. आ वखते
लगभग ७–१प थया हता. चर्चा पुरी थई; पछी श्री सीमंधर भगवानना दर्शन कर्या, दर्शन करीने घरे गया;
आगला दिवसे मगनभाई संबंधी खूब वैराग्यनी वातो व्याख्यानमां आवेली, तेथी एकदम वैराग्यनो रस
चडेलो अने पाछी ते रोज भक्तिनो खूब उल्लास चडेलो, ए उल्लासमां ने उल्लासमां हता. घरे गया त्यारे ७–
४प थया हता. घरे जईने हजी आहारादिनी गोठवण करे छे, महेमानोनी सगवड करवानी माणसने भलामण
करे छे, अने ‘त्रंबक! तुं महेमान पासे जा...’ एम हजी तो मूखमांथी बोले छे, तेज क्षणे पडी गया अने देह
छूटी गयो. (८–०) घरना ओरडामां एक बाजु जमीन उपर चत्तापाट सूता हता. मरण पहेलांं बीजुं कांई आडुं
अवळुं थयुं न हतुं. जाणे जीवंत माणस आराम करवा सूतो होय तेम सूता हता, हजी अडधी कलाक पहेलांं
भक्तिनो उल्लास अने अडधी कलाक पछी तो