भावे कर्म बंधाय ते भावथी पण तारूं स्वरूप भिन्न छे एम बताववुं छे. पहेलांं तुं तारा आत्माने शरीरादिथी
अने जड कर्मोथी जुदो मान, जड कर्मथी जुदो मानतां ‘कर्म शुभाशुभ भाव करावे’ ए मान्यता टळी जशे,
एटले पहेलांं तारा परिणामोनी जवाबदारी तो तुं ले. शुभाशुभ भाव जड कर्म नथी करावतां, पण तुं तारा
ऊंधा भावे करे छे, एम पहेलांं तारा परिणामने तो जो पछी तने जणाशे के शुभाशुभ परिणाम जेटलो पण तुं
नथी, तारा त्रिकाळी स्वरूपमां क्षणिक शुभाशुभ भाव नथी, क्षणिक शुभाशुभ भाव थाय ते परमार्थे तारूं कर्तव्य
नथी; ते शुभाशुभ परिणाममां आत्मानुं सुख नथी. शुभाशुभ परिणाम रहित निराकूळ आत्मस्वभावने
जाणीने तेमां ठर तो तने आत्मानुं सुख अनुभवमां आवे. माटे पहेलांं नक्की कर के मारूं सुख स्वभाव भावमां
छे, जडमां के विभाव भावमां मारूं सुख नथी.
ज होय. ज्यां सुख होय त्यां ज तेनो उपाय होय, सुख आत्मामां अने उपाय परमां–एम होय नहि. सुख अने
सुखनो उपाय बंने आत्मामां ज छे तेथी शरीरादि जतां करीने पण आत्मा सुखनो उपाय करवा मागे छे. सुख
माटे, द्वेष कर्या वगर शरीर जतुं करवा पण तैयार छे. जो आत्मानुं सुख अने तेनो उपाय आत्मामां छे एम
श्रद्धा करे तो आत्माना सुख माटे परने साधन न माने. आ शरीर तो सुखनुं साधन नथी. पण राग द्वेषना जे
भाव थाय ते कोई पण भाव सुखनुं साधन नथी, पर चीजथी तो आत्मा जुदो ज छे, एटले पैसा, शरीर वगेरे
कोई पर वस्तु आत्माना सुखनुं साधन नथी, परंतु पुण्य–पापनुं साधन पण पैसा वगेरे परचीज नथी. पोताना
परिणामथी पुण्य–पाप छे. हवे जो सुख जोईतुं होय तो पहेलांं ज्यां सुख छे. एवा आत्मस्वभावने जाणवो
जोईए. बहारनी वस्तुने तो सुखना साधन न मान, परंतु अंतरमां दया के भक्तिना शुभराग भावोने पण
आत्माना सुखनुं साधन न मान. आत्मामां सुख भर्युं छे अने ए सुख स्वरूप आत्मानी श्रद्धाज्ञान ए ज
सुखनो उपाय छे.
शरीर मारा सुखनुं साधन नथी. एम जाणतां शरीर उपरनो राग टळी जवो जोईए. जो शरीर जतुं थवाना
प्रसंगे द्वेष थई आवे तो तेने शरीरमां सुखबुद्धि टळी नथी; तेमज शरीर जतुं थईने समाधिना टाणां आव्यां
होय त्यारे बहारमां लक्ष जाय के अमुक भक्ति–प्रभावनानां कार्यो बाकी रही गयां, एम जो शरीर जतां पर लक्ष
थाय तो तेने पण अंतरनी आत्म शांति नहि ऊगे. बहारनां कार्योमां निमित्त तो शरीर छे, एटले जेने
बहारनां कार्योनुं लक्ष छे तेने हजी शरीर टकावी राखवाना भाव छे एटले तेणे पोताना सुखनुं साधन शरीरने
मान्युं छे––तेथी तेने पण आत्मानी शांति नहि आवे.
भाव थाय तो ते शांतिने रोकनार छे. शरीर तो जे क्षेत्रे जे टाणे जवानुं हशे ते ज टाणे छूटी जवानुं छे,
परंतु ए टाणां आव्यां पहेलांं आत्मामां एम नक्की करवुं जोईए के आ शरीर तो माराथी भिन्न ज छे अने
शरीर तरफना लक्षे थतां अणगमाना भाव के भक्ति प्रभावनाना भाव ते बधा विकार मारूं स्वरूप नथी,
शुभ विकल्प ऊठे ते पण मने