मळे तेम अल्पज्ञ उपदेशकनी वाणीमांथी श्रोताओने थोडुं मळे. अने सर्वज्ञ देवना पूर्ण धोधमार ध्वनिमांथी पात्र
श्रोताओने श्रुतना धोध मळे छे. महाविदेहमां सीमंधर भगवाननी धोधमार धर्मनी धीखती पेढी चाली रही छे,
ए धोधमार वाणीनो साक्षात् लाभ भगवत्कुंदकुंदने आठ दिन मळ्यो छे, अने पछी तेमणे आ समयसारनी
रचना करी छे, आ समयसारना ऊंडाणमां अमाप...अगाध....अगाध भावो भर्यां छे.
एवं भणंति सुद्धं णाओ जो सो उ सो चेव।।
धर्मना धोध वहेडावनार महान संत हता. अहो! आ छठ्ठी गाथामां तो तेओए ज्ञायकने ज वर्णव्यो छे–
आचार्यदेव सातमा अने छठ्ठा अप्रमत्त अने प्रमत्त गुणस्थान दशामां झूली रह्यां छे, ते बे भंगनो नकार
सकषाय नथी, अगर हुं अयोगी–सयोगी नथी’ एम केम न आव्युं?
तो ज्ञायक छुं...आम छठ्ठी गाथामां तो केवळज्ञाननी शरूआत करी छे. आ गाथामां पोतानुं अंतर रेडी दीधुं छे.
पोते वर्तमान अप्रमत्त–प्रमत्त दशा वच्चे वर्ती रह्यां छे एटले गाथामां ते ज शब्दो आव्या छे. हजी पोताने
छे के हुं अप्रमत्त के प्रमत्त नथी, हुं अखंडानंद ज्ञायक छुं; एम आ गाथामां आचार्यदेवे अभेद ज्ञायक भावनो
अनुभव उतार्यो छे. पोताना अनुभवनी जे दशा छे ते दशाथी वर्णन मूकयुं छे.
छे हुं एकरूप ज्ञायकभाव परम पारिणामिक भाव छुं एटले के हुं कारण परमात्मा छुं. ‘हुं कारण परमात्मां छुं’
परमात्माने प्रतीतमां लेनार तो ते पर्याय छे.
अलौकिक गूढ वात छे. आचार्योए धर्मना थांभला जेवुं कार्य कर्युं छे. वीतराग शासनने टकावी राख्युं छे.
छे....! कारण परमात्माने स्पष्टपणे दर्शावी दीधो छे. अहीं छठ्ठी गाथामां ‘ज्ञायक भाव’ मां पण ते ज ध्वनि छे.
कारण परमात्मा ते मोक्षमार्गरूप तो नथी, परंतु मोक्ष पण नथी. ए तो धु्रव स्वरूप छे, अने तेना ज जोरे मोक्ष
दशा प्रगटे छे. मोक्षनुं कारण कोई विकल्प तो नहि, अने सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र रूप
निर्विकार पर्याय पण मोक्षनुं कारण व्यवहारथी छे केमके केवळज्ञानादि दशा तो अनंतगणी शुद्ध छे अने
सम्यग्दर्शनादि तो बारमां गुणस्थानना छेल्ला समय सुधी केवळज्ञान करतां अनंतमां भागे अधूरी दशा छे.
बारमी भूमिकाना छेल्ला समये जे ज्ञान, सुख, वीर्य वगेरे छे तेना करतां तेरमां गुणस्थानना पहेलां समये
अनंतगणा ज्ञान, सुख, वीर्य वगेरे होय छे, माटे सम्यग्दर्शनादि मोक्षनुं कारण व्यवहारे छे, मोक्षनुं निश्चयकारण
तो उपर कह्यो ते ज्ञायकभाव–कारण परमात्मा छे.