Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १६० : आत्मधर्म : अषाढ : २००१ :
श्री समयसार प्रतिष्ठा महोत्सव मंगल दिन
. “ नम समयसरय.
संवत २०१ ना वैशाख वद ८ रविार ता. ३ – ६ – ४५
स्त्र श्र जी ि
अंतरंग दशा तथा श्री समयसारजी स्तुतिना अर्थ

आजे श्री समयसारजीनी प्रतिष्ठानो मांगलिक दिवस छे. स्वाध्याय मंदिरमां समयसारजीनी विधिपूर्वक
श्री चंपाबेनना हस्तके प्रतिष्ठा थई छे तेने आजे सात वर्ष पूरा थाय छे. आ परमागम शास्त्रमां शुं छे ते तो
अनुभवथी अंदर उतरीने जुए तो समजाय तेवुं छे; आमां तो अलौकिक चमत्कारिक मंत्रो छे.
जेम तळावना कांठा उपर उभा रहीने जोतां तळावनुं पाणी मध्यमां अने कांठे सरखुं लागे, उपलक
द्रष्टिए पाणीनी ऊंडाईनुं माप नीकळे नहीं; तळावना पाणीनी ऊंडाईमां वचमां अने छेडे फेर होय छे. जेने
पाणीनी ऊंडाईनुं माप करतां आवडे ते कांठेथी अंदर उतरे तो तेने पाणीनी वास्तविक ऊंडाईनो ख्याल आवे.
तेम सर्वज्ञ भगवानना दिव्यध्वनि द्वारा जे द्वादशांगी श्रुतनो एकधारावाही धोध छूटयो, तेमांथी आ शास्त्र
रचाणां, तेमां शुं रहस्य भर्यां छे तेनुं माप उपलक द्रष्टिए काढवा मागे तो ते नीकळे तेम नथी. पण जो अंदर
उतरीने समजे तो आनी मध्यमां तो केवळज्ञाननां रहस्य भरेलां छे.
महाविदेहमां वर्तमान जीवन–मुक्त दशामां श्री सीमंधरपरमात्मा अरिहंतपदे बिराजे छे. भरतक्षेत्रमां
विक्रम संवतना पहेला सैकामां महा निर्गंथ, मुनिओना नायक कुंदकुंदाचार्य मुनि थया; तेओ महाविदेहमां श्री
सीमंधर भगवान पासे गया हता. सहज स्वभावनी अंतर आनंद दशामां झुलता अने बहारमां सहज
दिगम्बर दशा–एवा कुंदकुंदाचार्यदेव सीमंधर भगवान पासे गया हता अने त्यां एक अठवाडियुं रह्या हता. आ
वात त्रण काळ त्रण लोकमां फरे तेवी नथी. शिलालेखो के शास्त्रना पानामां लख्युं छे–माटे आ कहेवाय छे एम
नथी, पण आ वात अंतरथी सिद्ध थई गई छे.
भगवाननी वाणीमां एक साथे बधुं आवे छे, तेमां भेद पडतो नथी, ते निरक्षरीध्वनि छे. भगवाननी
वाणीमां भेद केम नथी होतो–तेनो खुलासो:–
आत्मामां ज्यां सुधी क्रोधादिवाळी ऊणी–भेदवाळी दशा होय त्यां सुधी वाणी पण भेदवाळी आवे छे,
पण ज्यारे संपूर्ण वीतराग दशा थई अने पर्यायमां कषायनो भेद टाळीने अभेद दशा थई गई त्यारे तेना
निमित्तरूप वाणीमां पण अभेद आवे छे. ज्यां सुधी क्रोधादि छे त्यां सुधी विकार छे, आत्मा अनंत गुणनो
अखंड पिंड छे तेथी कोई गुणमां विकार होय त्यां अवस्था एकरूप रहेती नथी–पण भेद पडे छे–तेथी तेनी
वाणीमां पण घणा अक्षरो वडे भेद पडे छे. सर्वज्ञ परमात्माने संपूर्ण दशा प्रगटतां पर्याय अभेद थई गई
एटले तेमनी वाणी पण अभेद–एकाक्षरी थई गई, ते वाणीमां बधी भाषा समाई जाय छे; ते वाणी सांभळवा
गणधरो, ईन्द्रो, चक्रवर्ती, मनुष्यो, पशु, पक्षी बधा आवे छे अने सौ पोतपोतानी भाषामां समजे छे.
भगवानने उपदेशनी ईच्छा होती नथी, तेओ वीतराग छे, क्यारे कोण शुं पूछशे अने तेनो शुं उत्तर
आवशे–ए बधुं एक समयमां पोताना अक्रमज्ञानथी (केवळज्ञानथी) भगवान जाणे छे. वर्तमान महाविदेह
क्षेत्रमां श्री सीमंधर परमात्मा जीवनमुक्त दशामां तीर्थंकर पदे बिराजे छे, तेमनी पासे भरत क्षेत्रना महा मुनि
श्री कुंदकुंदाचार्य गया अने त्यांनी धोधमार दिव्यवाणी लई आवीने ते उपरथी आ समयसार आदि शास्त्रो
रच्यां. आमां तो दिव्यध्वनिनां रहस्यने उतार्युं छे, तेनुं गूढ रहस्य उपरथी जोतां समजाय नहि, पण अंतरथी
जुए तो तेनो अपार महिमा समजाय. समयसार मध्यमां तो कोई अमाप केवळज्ञान भर्यां छे, शुं कहीए...?
आ समयसारनी वात शब्दथी कहेवाय तेवी नथी. शब्दथी पार छे–मनथी पण पार छे.
परम पूजय सद्गुरु देवश्री कानजी स्वामीनुं व्याख्यान