: अषाढ : २००१ : आत्मधर्म : १५९ :
प्रश्न ३ (घ) त्रिंद्रिय जीवोने कया कया द्रव्य प्राण होय? नव प्राण कया जीवने होय? कया जीवने एकके
द्रव्य प्राण न होय?
उत्तर–त्रींद्रिय जीवोने सात द्रव्यप्राण होय छे (१) स्पर्शेन्द्रिय (२) रसेन्द्रिय (३) घ्राणेन्द्रिय (४)
वचन (प) काय (६) श्वासोश्वास अने (७) आयु.
असंज्ञी पंचेन्द्रियने नव द्रव्यप्राण होय छे. सिद्ध परमात्मा सिवाय एकेय जीव एवो नथी होतो के जेने
एक पण द्रव्यप्राण न होय.
प्रश्न ३ (ङ) निकल परमात्मा कोने कहेवामां आवे छे? तेने कोई परद्रव्योनो संग नहिं होवा छतां सुख
केम होय?
उत्तर–निकल परमात्मा:– ज्ञान मात्र ज जेनुं शरीर छे, ओदारिक नोकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म अने
राग–द्वेष–मोहादि भावकर्मोथी रहित छे, जेने अनंतज्ञान–दर्शन–सुख अने वीर्य प्रगटेल छे एवा निर्दोष अने
पूज्य सिद्ध परमात्मा ते निकलपरमात्मा छे.
पर द्रव्योथी सुख थाय छे–ए मान्यता ज ऊंधी छे. सुख ए तो अरूपी आत्मानो गुण छे अने ते सिद्ध
परमात्माने संपूर्णपणे प्रगटेलो होय छे, माटे तेमने संपूर्ण सुख छे. परद्रव्यना संगथी त्रणकाळ त्रणलोकमां सुख
थतुं ज नथी.
प्रश्न ४ (क) अनादि काळथी आत्मानी जीव तत्त्व संबंधी अने बंध तत्त्व संबंधी शुं भुलो थाय छे ते
दाखलाओ आपी स्पष्ट करो.
उत्तर ४– (१) जीवे अनादिकाळथी जेवुं जीवनुं स्वरूप छे तेवुं न मानतां तेथी विपरीत मान्युं ते जीव
तत्त्वनी भूल छे–जेमके–शरीर ते हुं छुं, हुं शरीरने हलावी शकुं छुं, चलावी शकुं छुं, हुं मूर्ख छुं, हुं चतुर छुं, हुं
सुंदर छुं–वगेरे.
(२) शुभ कर्मना फळने ईष्ट माने छे अने अशुभ कर्मफळने अनिष्ट माने छे ते बंध तत्त्वनी भूल छे;
एटले के स्त्री, पुत्र, घर वगेरे पोताने अनुकुळ होय तेने सारूं माने छे; अने ते ज पदार्थो ज्यारे प्रतिकूळ होय
त्यारे द्वेष करी तेने अनिष्ट माने छे, परंतु वास्तविक तो [शुभ–अशुभ] बंने बंधस्वरूप छे, छतां शुभने सारूं
अने अशुभने खराब मानवुं ते बंध तत्त्वनी भूल छे.
प्रश्न ४ (ख) –केटला द्रव्यो अनादि–अनंत छे. कया गुणने लीधे? जीवना अनुजीवी विशेष गुणोमांथी
पांचनां नाम लखो.
उत्तर–दरेक द्रव्यो [छए द्रव्यो] अनादि अनंत छे, कारण के दरेक द्रव्यमां अस्तित्त्व नामनो गुण छे.
चेतना, सम्यक्त्व, सुख, वीर्य अने भव्यत्व ए पांच जीवद्रव्यना अनुजीवी–विशेष गुणो छे.
प्रश्न ४ (ग) आंखथी श्री सीमंधर भगवाननां दर्शन करवां ते दर्शन चेतनानो व्यापार छे के
ज्ञानचेतनानो? दर्शन चेतनाना चार भेदोमांथी अथवा ज्ञान चेतनाना पांच भेदोमांथी क्यो भेद ते वखते वर्ते छे.
उत्तर–आंखथी श्री सीमंधर प्रभुना दर्शन करवा ते ज्ञान चेतनानो वेपार छे; अने ते वखते ज्ञान
चेतनानो मतिज्ञान–भेद वर्ते छे.
प्रश्न–४ (घ) ‘अनेकांत’ समजाववा बे दाखला आपो. “आत्मा कोई पण पुद्गल ने न हलावी शके
एम मानवाथी एकांत थई जाय छे. आत्मा सुक्ष्म पुद्गलने न हलावी शके परंतु स्थुल पुद्गलरूप डुंगराओने
तो खोदी शके एम मानवुं ते अनेकान्तनी साची मान्यता छे.” आ कथन खरूं छे के नहिं ते समजावो.
उत्तर–अनेकांत:– (१) आत्मा पोतापणे छे अने परपणे नथी एवी जे द्रष्टि ते ज खरी अनेकान्तद्रष्टि
छे. (२) आत्मा द्रव्ये नित्य छे अने पर्याये पलटाय छे ए द्रष्टि ते अनेकान्त छे.
‘आत्मा कोई पण पुद्गलने न हलावी शके एम मानवाथी एकांत थई जाय छे’ –ए वात तद्न असत्य
छे; ‘आत्मा कोई पण पुद्गलने न हलावी शके’ ए कथन एकांत नथी, पण अनेकांत छे. केमके आत्मा पोतानुं
बधुं करी शके पण परनुं कांई न करी शके. (सम्यक् एकांत छे खरूं!)
“आत्मा सूक्ष्म पुद्गलने–परमाणुने न हलावी शके, परंतु स्थुल पुद्गलरूप डुंगराओने तो खोदी शके
एम मानवुं ते अनेकांतनी साची मान्यता छे.” उपरनुं कथन पण असत्यार्थ छे ते कथन मिथ्याद्रष्टिनुं छे. कारण
के अरूपी आत्मा एक रूपी परमाणुने पण न हलावी शके तेमज अनेक–अनंत पुद्गलने पण न ज हलावी शके.
केमके एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कर्ता हर्ता त्रणकाळ त्रणलोकमां थई शकतुं नथी.