: १५८ : आत्मधर्म : अषाढ : २००१ :
भावनो [अवस्थानो] करनार छे एम मानवुं ते अज्ञानी लोकोनो मूढ भाव छे.
प्रश्न. २. (क) नीचेना पदार्थोमांथी द्रव्यो, गुणो ने पर्यायो ओळखी काढो.
[१] केवळज्ञान [२] गळपण [३] निश्चयकाळ [४] अरूपीपणुं [प] ताव [६] ताव उपर द्वेष
[७] समुद्घात [८] गतिहेतुत्व.
उत्तर– (१) केवळज्ञान ते पर्याय छे. (२) गळपण ते पर्याय छे. (३) निश्चयकाळ ते द्रव्य छे. (४)
अरूपीपणुं ते गुण छे. (प) ताव ते पर्याय छे. (६) ताव उपर द्वेष ते पर्याय छे. (७) समुद्घात ते पर्याय छे.
(८) गति–हेतुत्व ते गुण छे.
प्रश्न. २ (ख) उपरना आठ पदार्थोमां जे द्रव्यो होय तेमनां मुख्य लक्षण कहो.
उत्तर–काळ ते द्रव्य छे, तेनुं मुख्य लक्षण परिणमन हेतुत्व छे.
प्रश्न. २ (ग) उपरना पदार्थोमां जे गुण होय ते कया द्रव्योना छे ते लखो.
उत्तर–अरूपीपणुं ते जीव, धर्म, अधर्म आकाश अने काळ ए पांच द्रव्योनो गुण छे; अने गतिहेतुत्व ते
धर्मास्तिकाय द्रव्यनो गुण छे.
प्रश्न. २ (घ) उपरना पदार्थोमां जे पर्यायो होय ते कया गुणोनी छे ते लखो.
उत्तर– [१] केवळज्ञान पर्याय ते जीवना ज्ञान गुणनी पर्याय छे. [२] गळपण ते पुद्गलना रस
गुणनी पर्याय छे. [३] ताव ते पुद्गलना स्पर्श गुणनी पर्याय छे. छे. [४] ताव उपर द्वेष ते आत्माना
चारित्र गुणनी पर्याय [ऊंधी अवस्था] छे. [प] समुद्घात ते जीवना प्रदेशत्व गुणनी पर्याय छे.
प्रश्न ३. (क) निश्चय चारित्र एटले शुं? चारित्रने “वेळुना कोळिया” जेवुं केम कहेवामां आवे छे.
उत्तर–३ पर द्रव्योथी अने पर भावोथी भिन्न एवा पोताना शुद्धात्मानी प्रतीत अने ज्ञान सहित
पोताना शुद्ध आत्मामां एकाग्र थवुं तेनुं नाम निश्चय चारित्र छे. चारित्रने ‘वेळुना कोळिया’ जेवुं कहेवुं ते तद्न
असत्य छे, कारण के चारित्र ए तो पोताना शुद्धात्मानी लीनतारूप एटले सुखरूप छे अने तेने कष्टदायक
अथवा ‘वेळुना कोळीया’ जेवुं मानवुं ए तो व्यवहारी–अज्ञानी लोकोनी ऊंधी मान्यता छे; अने एम
माननारने साचुं चारित्र पण होय नहि.....
प्रश्न ३. (ख) जघन्य, मध्यने उत्तम अंतरात्मा कोने गणवामां आवे छे?
उत्तर–जघन्य अंतरात्मा:– चोथा गुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्द्रष्टिने जघन्य अंतरात्मा कहेवामां आवे छे.
मध्यम अंतरात्मा:– पंचम गुणस्थानवर्ती, बार व्रतना धारक श्रावकने तेम ज शुभोपयोगी, गृहादि
परिग्रह रहित छठ्ठा गुणस्थान के वर्तता दिगंबर मुनिने मध्यम अंतरात्मा कहेवाय छे,
उत्तम अंतरात्मा:– १ मिथ्यात्व ४ कषाय ९ नोकषायरूप अंतरंग अने गृह–वस्त्रादि बहिरंग परिग्रह
रहित, ७–८–९–१०–११–१२ गुणस्थानवर्ती शुद्धोपयोगी अने अध्यात्म ज्ञानी दिगंबर मुनिने उत्तम अंतरात्मा
कहेवामां आवे छे.
प्रश्न ३ (ख) चालु:– महाकष्टथी वेळुना कोळीआ जेवुं चारित्र पाळनार पंचमहाव्रतधारी मुनि
अंतरात्माना त्रण भेदोमांथी कया भेदमां समाय?
उत्तर– ‘महाकष्टथी वेळुना कोळिआ जेवुं चारित्र’ एटले के धर्मने कष्टदायक माननारा तो महामूढ
मिथ्याद्रष्टि होय छे, तो तेने पंचमहाव्रत तो होय ज क्यांथी? परंतु मिथ्यात्वनुं अनंतुपाप समये समये सेवी रह्या
छे, एटले ए [चारित्रने वेळुना कोळीआ जेवुं माननार] तो बहिरात्मा–अविवेकी अथवा तो मिथ्याद्रष्टि छे.
प्रश्न ३ (ग) आठ कर्मना नाम लखो?
उत्तर–आठ कर्मना नामो: १–ज्ञानावरणीय, २–दर्शनावरणीय, ३–मोहनीय, ४–वेदनीय, प–आयुष्य, ६–
नाम, ७–गोत्र, ८–अंतराय, ए प्रमाणे छे.
प्रश्न ३ (ग) चालु–ज्ञानावरणीय कर्म आत्मा पर जोर करीने तेना ज्ञानने रोके छे के नहिं ते समजावो.
उत्तर–एक द्रव्यने बीजुं द्रव्य कांई करी शकतुं नथी तेथी ज्ञानावरणीय कर्म आत्माना ज्ञान गुणने
बिलकुल रोकी शकतुं ज नथी ज्यारे आत्मा पोते पोतानी ऊंधाईथी ज्ञानने रोके छे त्यारे ज्ञानावरणीय कर्मनी
हाजरी होय छे–एटले एने रोकवामां ते निमित्त मात्र छे एम कहेवाय छे. खरेखर कर्म ज्ञानने रोकी शकतुं नथी
केमके एक द्रव्य बीजा द्रव्य उपर जोर करी शके ज नहीं.