उत्तर–संसार वृक्षनुं मूळियुं मिथ्यादर्शन छे. मिथ्यादर्शन एटले खोटी मान्यता. मुमुक्षुए ते मूळने छेदवा
अनादिकाळथी
हलावी चलावी शकुं छुं’ एम माने छे एटले के जीवने अजीव माने छे. जे पोतानो स्वभाव नथी ते पोतानो
माने छे ते जीव तत्वनी भूल छे. १. अजीव शरीरना उत्पन्न थवाथी अने नाश थवाथी पोतानी उत्पत्ति अने
नाश माने छे. ते अजीव तत्त्वनी भुल छे. पोते तो अनादि अनंत छे तेनी उत्पत्ति अने नाश थतो ज नथी. २.
रागद्वेष ए आत्मानी विकारी दशा छे, ऊंधी दशा छे तेथी आत्माने दुःख थाय छे पण तेम न मानता तेमां सुख
माने छे, आ आस्रव तत्वनी भुल छे. ३. शुभ कर्म बंधना फळमां प्रेम करे छे अने अशुभ कर्म बंधना फळमां
द्वेष करे छे. परंतु हेय जे विकारी भाव के जेनाथी कर्मो बंधाय छे अने आदरणिय जे अविकारी स्वभाव छे–तेम
ने चारित्रथी आत्मानुं सुख प्रगट थाय छे परंतु आत्मज्ञाननी समजण तेने कष्टदायक लागे छे. एटले के धर्मने
ते ‘दुःखदायक’ माने छे ते संवर तत्त्वनी भुल छे. प. शुभाशुभ ईच्छाने रोकवाथी तप थाय छे अने एवा
सम्यक् तपथी निर्जरा एटले आत्मानी शुद्धिनी वृद्धि थाय छे अने कर्मो खरी जाय छे अने तेज साचा सुखनुं
कारण छे परंतु तेम न मानतां पांच ईन्द्रियोनां विषयनी ईच्छा करे छे. जो के अशुभ छोडी दे छे पण शुभने
पकडी राखे छे, परंतु शुभ पण ईच्छा छे एम ते नथी मानतो ते निर्जरा तत्वनी भुल छे. ६. आकुळतानो
अभाव ते ज साचुं सुख छे परंतु तीव्र आकुळता करतां मंद आकुळतामां सुख माने छे एटले अनाकुळताने
आकुळता माने छे आ मोक्ष तत्वनी भुल छे. ७.
कुगुरु अने कुदेव मिथ्यात्व–रागद्वेष सहित होय छे अने बहिरंग परिग्रह धन, मकान, कपडां अने स्त्री शस्त्र
सहित होय छे. कुधर्ममां भाव हिंसा अने द्रव्य हिंसा सहित क्रिया करे छे.
उत्तर:– धर्म ए तो आत्मानो स्वभाव छे, पर द्रव्य साथे तेनो संबंध नथी. तेथी धनवान के निर्धन
धर्म थाय. आत्माने समजवा माटे तो आ साचा ज्ञाननी जरूर छे. पैसानी नहि.
परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम्।।