Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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उत्तर:–
: अषाढ : २००१ : आत्मधर्म : १५७ :
• श्री सनातन जैन दर्शन शिक्षण वर्ग •
[आ वर्गनी ता. ३०–५–४५ ना रोज परीक्षा लेवायेली. ते परीक्षामां १३२ विद्यार्थीओ दाखल थया
हता तेमांथी १२३ विद्यार्थीओ उतीर्ण थया हता. पूछायेल प्रश्नोना यथार्थ जवाबो नीचे प्रमाणे छे]
प्रश्न. १ (क) संसार वृक्षनुं मूळियुं शुं छे अने ते मूळने छेदवा मुमुक्षुए शुं करवुं ते स्पष्ट रीते समजावो.
उत्तर–संसार वृक्षनुं मूळियुं मिथ्यादर्शन छे. मिथ्यादर्शन एटले खोटी मान्यता. मुमुक्षुए ते मूळने छेदवा
माटे खोटी मान्यतानो त्याग करवो जोईए. मिथ्यादर्शनना बे भेद छे. अगृहित अने गृहित. अगृहित एटले
अनादिकाळथी
[कोईना उपदेश विना ग्रहण करेल] चाल्युं आवतुं. गृहित एटले बीजाना उपदेशथी जन्म
धारण कर्या पछी नवुं धारण करेल.
अगृहित मिथ्यादर्शन एटले जीनेन्द्र भगवाने कहेल सात तत्त्वोनी (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर
निर्जरा ने मोक्षनी) ऊंधी श्रद्धा करवी. सात तत्त्वोनी विपरीत श्रद्धा केवी रीते–के ते जीव ‘शरीर ते हुं छुं’ तेने
हलावी चलावी शकुं छुं’ एम माने छे एटले के जीवने अजीव माने छे. जे पोतानो स्वभाव नथी ते पोतानो
माने छे ते जीव तत्वनी भूल छे. १. अजीव शरीरना उत्पन्न थवाथी अने नाश थवाथी पोतानी उत्पत्ति अने
नाश माने छे. ते अजीव तत्त्वनी भुल छे. पोते तो अनादि अनंत छे तेनी उत्पत्ति अने नाश थतो ज नथी. २.
रागद्वेष ए आत्मानी विकारी दशा छे, ऊंधी दशा छे तेथी आत्माने दुःख थाय छे पण तेम न मानता तेमां सुख
माने छे, आ आस्रव तत्वनी भुल छे. ३. शुभ कर्म बंधना फळमां प्रेम करे छे अने अशुभ कर्म बंधना फळमां
द्वेष करे छे. परंतु हेय जे विकारी भाव के जेनाथी कर्मो बंधाय छे अने आदरणिय जे अविकारी स्वभाव छे–तेम
न मानता शुभना फळने सारूं अने अशुभना फळने माठुं माने छे ते बंध तत्त्वनी भुल छे. ४. सम्यग्दर्शन ज्ञान
ने चारित्रथी आत्मानुं सुख प्रगट थाय छे परंतु आत्मज्ञाननी समजण तेने कष्टदायक लागे छे. एटले के धर्मने
ते ‘दुःखदायक’ माने छे ते संवर तत्त्वनी भुल छे. प. शुभाशुभ ईच्छाने रोकवाथी तप थाय छे अने एवा
सम्यक् तपथी निर्जरा एटले आत्मानी शुद्धिनी वृद्धि थाय छे अने कर्मो खरी जाय छे अने तेज साचा सुखनुं
कारण छे परंतु तेम न मानतां पांच ईन्द्रियोनां विषयनी ईच्छा करे छे. जो के अशुभ छोडी दे छे पण शुभने
पकडी राखे छे, परंतु शुभ पण ईच्छा छे एम ते नथी मानतो ते निर्जरा तत्वनी भुल छे. ६. आकुळतानो
अभाव ते ज साचुं सुख छे परंतु तीव्र आकुळता करतां मंद आकुळतामां सुख माने छे एटले अनाकुळताने
आकुळता माने छे आ मोक्ष तत्वनी भुल छे. ७.
मनुष्य थया बाद ते कुदेव, कुगुरु तथा कुधर्मने माने छे. तेने मानवाथी अनंत संसारमां रखडवुं पडे छे
अने घणुं दुःख सहन करवुं पडे छे. आ गृहित मिथ्यादर्शन छे. तेनाथी अगृहित मिथ्यात्वने पोषण मळे छे.
कुगुरु अने कुदेव मिथ्यात्व–रागद्वेष सहित होय छे अने बहिरंग परिग्रह धन, मकान, कपडां अने स्त्री शस्त्र
सहित होय छे. कुधर्ममां भाव हिंसा अने द्रव्य हिंसा सहित क्रिया करे छे.
मुमुक्षुए जो संसार वृक्षनुं मूळियुं छेदवुं होय तो तेणे उपर जणाव्या मुजबनी अगृहित अने गृहित
मिथ्यादर्शननी भूलो टाळी देवी जोईए. अने सम्यग्दर्शन प्राप्त करवुं जोईए.
प्रश्न. १ (ख) धर्म करवो कोने सहेलो पडे धनवानने के निर्धनने? शा माटे?
उत्तर:– धर्म ए तो आत्मानो स्वभाव छे, पर द्रव्य साथे तेनो संबंध नथी. तेथी धनवान के निर्धन
कोईने धर्म सहेलो थई पडे एम न कहेवाय. धर्म पैसाथी थतो नथी. पोते जो पोताना आत्माने समजे तो ज
धर्म थाय. आत्माने समजवा माटे तो आ साचा ज्ञाननी जरूर छे. पैसानी नहि.
प्रश्न. १ (ग) श्री समयसारनो कोई कळश अर्थ साथे लखो.
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत् करोति किम्।
परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम्।।
।। समयसार कलश–६२।।
आत्मा ज्ञान स्वरूप छे, पोते ज्ञान ज छे. तो ते ज्ञान (जाणवा) सिवाय बीजुं शुं करी शके? आत्मा
बीजाना