Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १६२ : आत्मधर्म : अषाढ : २००१ :
मोक्षनुं कारण शुं? पर द्रव्यनी तो वात छे ज नहि, केमके एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई पण करी शके नहि
ए जैननो प्रथम सिद्धांत मान्य राख्या पछी ज बीजी वात थई शके. देव–गुरु–शास्त्र ते पर द्रव्य छे ए कोई तो
मोक्षनुं कारण नथी, शुभ विकल्प उठे ते पण मोक्षनुं कारण नथी; परंतु सम्यक्–ज्ञान–चारित्र–वीर्य–आनंद वगेरे
पण बारमा गुणस्थान सुधी अनंतमा भागे अधूरी दशा छे तेथी ते पण परिपूर्ण मोक्षदशानुं कारण खरेखर
नथी. आ तो हजी शास्त्रनी वात छे, अंदरनुं अध्यात्म रहस्य तो हवे आवे छे, ध्यान राखो... ध्यान राखो...!
आत्मा शुं चीज छे ए जाण्या विना गमे तेटला क्रियाकांड करी करीने सूकाई जाय तो पण धर्म थाय तेम नथी,
आ कहेवाय छे ते वस्तु स्वरूप समज्या वगर जन्म–मरणनो अंत न आवे.
बारमा गुणस्थानना छेल्ला समय सुधी मति–श्रुतज्ञान छे, ते केवळज्ञानना अनंतमा भागनुं छे, ते
अनंतमा भागनुं अधूरूं ज्ञान तेने अनंतगुणा पूर्ण केवळज्ञाननुं कारण कहेवुं ते व्यवहार छे. अधूरा ज्ञानमां
पूर्ण ज्ञान प्रगटाववानी ताकात नथी, परंतु जे अधूरूं ज्ञान छे ते पूर्णनी जातनुं छे तेथी तेने व्यवहारथी कारण
कह्युं छे; अनंतमा भागनुं मति–श्रुतज्ञान केवळज्ञाननुं निश्चय कारण नथी. पूर्ण ज्ञाननुं कारण पूर्ण ज जोईए.
केवळज्ञाननुं निश्चय कारण तो मूळ द्रव्य ज छे, ए केवळज्ञानना कारणभूत द्रव्यने ज भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे
नियमसारमां कारण परमात्मा तरीके अने समयसारमां ज्ञायकभाव तरीके वर्णवेल छे. एक समयमां द्रव्यमां
केटली ताकात भरी छे–ते बताव्युं छे. एकेक गाथामां आचार्यदेवे अद्भुत रहस्यो रेड्यां छे. चौद पूर्वना रहस्यने
लेती एकेक गाथा आवी छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञानचारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रगट्यो छे ते पण अनंता केवळज्ञानादिनुं कारण खरेखर न थाय.
अनंत केवळज्ञानादिनुं खरूं कारण तो एक समयमां परिपूर्ण द्रव्य जे त्रिकाळ छे ते ज छे. ए परिपूर्ण
द्रव्यस्वभावनुं वर्णन भगवान कुंदकुंदाचार्ये समयसारजीमां अचिंत्य अने अलौकिक रीते कर्युं छे. हुं सातमा के
छठ्ठा गुणस्थान वाळो नथी, हुं तो ज्ञायक छुं. जो के वर्तमान सातमा–छठ्ठा गुणस्थाने ज छे, पण अखंड
स्वभावना जोरे तेनो नकार करतां कहे छे के हुं अप्रमत्त–प्रमत्त नथी–हुं ज्ञायक छुं.
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव संबंधी दर्शनसारमां श्री देवसेनाचार्य मुनि कहे छे के–
जइ पउमणं दिणाहो सीमंधरसामी दिव्वणाणेण।
ण विवोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति।।
महाविदेहक्षेत्रना वर्तमान तीर्थंकर देवश्री सीमंधर स्वामी पासेथी मळेला दिव्यज्ञान वडे श्री पद्मनंदिनाथे
[श्री कुंदकुंदाचार्य देवे] बोध न आप्यो होत तो मुनिजनो साचा मार्गने केम जाणत?
देवसेनाचार्य पोते मुनि छे ते कहे छे के–अहो! कुंदकुंदआचार्ये साक्षात् भगवान पासेथी दिव्यध्वनिना
संदेशानो बोध भरतक्षेत्रमां न आप्यो होत तो अमने आ सम्यक्बोध क्यांथी मळत? भगवान कुंदकुंदाचार्ये
भरतक्षेत्रमां श्रुतनी प्रतिष्ठा करी छे. आवी स्थिति आ महान परमागम समयसारनी छे, बहारथी तेनां माप
न नीकळे पण ऊंडे उतरीने अंतरथी समजे तो साचां माप नीकळे.
आजे समयसारजी शास्त्रनी प्रतिष्ठानो मंगल दिवस छे. आ समयसारजीनी स्तुति हिंमतभाईए
[समयसारना गुजराती अनुवादके] बनावी छे, तेमां घणा सारा भावो मूकया छे, तेना अर्थ आजे थाय छे.
– : हरिगीत: –
“संसारी जीवना भावमरणो टाळवा करूणा करी, सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर तें संजीवनी;
शोषाती देखी सरितने करूणा भीना हृदये करी मुनि कुंद संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी”
हे नाथ! हे कुंदकुंद प्रभु! आपे आ समयप्राभृतमां अमृतना धोध वरसाव्या छे. महावीर भगवानथी
वहेती श्रुतामृतनी सरिता शोषाती हती तेने आ समयप्राभृत रूपी संजीवनी वडे तें जीवंत राखी छे.
स्तुतिमां प्रथम शब्द ‘संसारी’ छे, केमके जीवने अनादिथी संसार दशा छे. आत्मानी अवस्थामां जे
पुण्य–पापना विकारभाव थाय ते भाव हुं–एम मानवुं ते ज संसार छे. आत्मानो संसार परवस्तुमां नथी, पण
पोताना ऊंधाभावमां संसार छे. पैसा–स्त्री वगेरे परद्रव्य छे. तेमां संसार नथी पण ते परद्रव्यमां सुखबुद्धि
अने तेने राखवानो भाव तेज संसार छे. ते संसारभाव दरेक जीवने अनादिथी छे. संसारी जीवो पोताना
अज्ञानथी क्षणेक्षणे भावमरणमां दुःखी थई रह्या छे. कुंदकुंद भगवंते ए संसारी जीवोना भावमरणो