Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ: २००१ : आत्मधर्म : १६३ :
टाळवा माटे परम करूणा करीने संजीवनी समान समयसारनी रचना करी छे.
भावमरण एटले शुं? आत्मा मांक्षणिक विकार भाव थाय तेने पोतानो मानवो अने चैतन्य स्वरूपना
आनंदने न मानवो ते ज भावमरण छे. शरीर छूटुं पडे तेनुं दुःख जीवोने नथी, पण भाव–मरणोनुं ज जीवोने
दुःख छे. पोतानो आनंद परमां मानतां आत्मानुं स्वरूपमय जीवन हणाई जाय छे–ते ज आत्मानुं भाव मरण
छे. ए भाव मरण जे टाळे ते ज सुखी छे.
भव मरण ए ज हिंसा छे. समयसारमां ज कह्युं छे के–
– : वसंततिलका: –
अज्ञानमेतदधिगम्य परात्परस्य पश्यंति ये मरणजीवितदुःख सौख्यम्।
कर्माण्यहंकृतिरसेन चिकीर्षवस्ते मिथ्याद्रशो नियतमात्महनो भवंति।।
[कलश–१६९]
आ अज्ञानने पामीने जे पुरुषो परथी पोतानां मरण, जीवन, दुःख, सुख देखे छे अर्थात् माने छे, ते
पुरुषो–के जेओ ए रीते अहंकार–रसथी कर्मो करवाना ईच्छक छे तेओ–नियमथी मिथ्याद्रष्टि छे–पोताना
आत्मानो घात करनारा छे. ‘आत्महनो भवंति’ एटले जे परने हुं मारूं के जीवाडुं छुं एम माने छे ते मोटो
हिंसक छे, पोताना आत्माने ज हणे छे–आ ज भावमरण छे.
जे परना कर्तृत्वना मिथ्या अहंकारना भारथी भावमरणमां दुःखी थई रह्या छे तेने कहे छे के भाई रे!
धीरो था... धीरो था. तुं परनुं शुं करी शके छो? परनुं तुं कांई पण नथी करी शकतो, तुं तारा भावने करे छो
बीजानुं हुं करूं–एम माने तेने आचार्यदेवे नियमथी आत्माना हिंसक मिथ्याद्रष्टि कह्या छे. मिथ्यात्व ए ज
भावमरण छे, ए ज दुःख छे.
हे नाथ कुंदकुंद! आपे दया करीने जगतना जीवोना भावमरणो टाळ्‌यां छे. समयसारजीनी गाथाए
गाथाए अद्भुत करूणाना धोध रेड्यां छे. जेना अंतरमां आ बीजडां रोपाणां अने आ वात जेने अंतरमां
रुचि तेणे पोताना आत्मामां मोक्षनां बीज वाव्यां. ‘हुं परनुं कांई ज न करी शकुं, पर मारूं कांई न करी शके, हुं
सर्व पर द्रव्योथी छूटो छुं’ आम जेणे मान्युं अने प्रतीत करी ते स्वतंत्र आत्मजीवन जीवनारा छे. अने ‘हुं
परनुं करूं, पर मारूं करे’ एम जे माने छे ते आत्मस्वरूपना घातक हिंसावादी अने भावमरणमां मरी रहेला छे.
हे कुंदकुंद भगवान! आपे ते भावमरण टाळवा माटे जगत पर परम उपकार कर्यो छे. आ समयसारमां
अमृतना धोध वहाव्या छे. महाविदेहना दिव्यध्वनिमांथी श्रुतनी मोटी नहेरो भरतमां वहेती करी छे. संसारथी
थाकेला जगतना तरस्या जीवो आवीने आ ज्ञानामृत पीवो अने तरस छीपावी मोक्षमां चाल्या जाव...........
डरो नहि........... मूंझाव नहि. संसार एक समयनो ज छे. आ वात जेने बेठी तेने मोक्षदशाना मांडवा नंखाणा,
हवे एक–बे भवमां ज तेनी मोक्ष दशा छे. तेनी मोक्षदशा पाछी फरे ज नहि. आ तो एक बे भवमां ज
मोक्षदशानी निःसंदेह श्रद्धा पोताथी ज थई जाय तेवी वात छे.
ज्यारे कन्या परणवा जाय त्यारे साथे मोटा मोटा आबरूवंत शेठीयाओने लई जाय छे, त्यां एवो हेतु
छे के कदाचित् कन्या पक्षवाळा फरी जाय अने नाणां मांगे तो तेवे वखते आबरूने धक्को न लागे; कन्या पाछी न
फरे. साथे आवेला शेठने एम थई जाय के हुं साथे आव्यो अने कन्या पाछी फरे एमां तो मारूं नाक जाय... जो
कन्याने मांडवामां आवतां पा कलाकनी वार लागे तो हाहाकार थई जाय अने आबरू जाय. पण शेठीया तरत
ज कन्यापक्षनी मागणी संतोषीने कन्याना आववाना टाईममां फेर न पडवा दे... तेम...
अहीं स्वरूप लक्ष्मीवंत श्री कुंदकुंद भगवान कहे छे के–अमारी वात मानी जेणे पोताना आंगणे मोक्ष
परिणति साथे लगनना मांडवा नांख्या तेने मोक्षदशा पाछी फरे ज नहि... अल्पकाळमां ज मोक्ष थाय. अमे
साथे आव्या छीए अने मोक्षदशाने वार लागे एम बने नहि... वार लागशे तो अमे मोक्ष आपशुं...! जगतना
जीवोने परम सत्य समजाववानो अमने विकल्प ऊठ्यो अने भरतक्षेत्रमां समजनारा लायक जीवो न होय एम
बने ज नहि. अमारी वृत्ति खाली न जाय. अमने वृत्ति ऊठी ते ज बतावी आपे छे के भरतमां भव्य जीवो
तैयार छे... माटे तुं हा ज पाड.... तारी निर्मळ मोक्षदशा पाछी नहि फरे.
पुण्य पापनो विकार भाव थाय ते मारूं स्वरूप नथी, हुं ज्ञायक छुं–आवुं भान ते ज आत्मानी दया छे