: १६४ : आत्मधर्म : अषाढ : २००१ :
ते ज साची करुणा छे. प्रथम अज्ञान भावे आत्मा विकारमां दबाई जतो हवे ज्ञान थतां आत्माने विकारथी छूटो
प्रतीतमां लीधो एटले स्वरूपने छूटुं राख्युं ते ज दया–धर्म छे.
‘सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर! तें संजीवनी–’ आमां महावीर भगवाननुं नाम लख्युं छे केमके
कुंदकुंदाचार्य देवना परंपरा गुरु तरीके तो महावीर भगवान ज छे. महावीर प्रभु पछी लगभग ५०० वर्ष बाद
कुंदकुंदाचार्य थया, त्यारे जे कांई अधूरुं रहेल ते सीमंधर भगवान पासे जईने पूरुं कर्युं छे. भाव मरण टाळवा
माटे संजीवनी औषध छे. पोताना आत्माने स्वरूपमां सम्यक् प्रकारे जीवंत राखे एवी श्रद्धा–ज्ञानरूपी जे
औषधि ते संजीवनी छे. ते संजीवनी–अमृतनी जे सरिता महावीर प्रभुए वहेती करी, त्यार पछी काळक्रमे ते
कांईक शोषाती हती तेने हे कुंदकुंद नाथ तें समय प्राभृतरूपी संजीवनी वडे भरी दीधी छे. श्रद्धा–ज्ञानरूपी
संजीवनीना प्रवाह आ समयसारनी गाथाए–गाथाए भर्यां छे.
भगवान श्री महावीर प्रभु पछी ज्यारे मार्गना खंड पड्या अने जुदा संप्रदाय शरू थया त्यारे सनातन
वीतराग जैनमार्गने आंच न आवे ते खातर कुंदकुंद भगवाने समयप्राभृतवडे अखंड सरिता वहेती करी छे, साक्षात्
भगवानना ध्वनिना अमृत भरी भरीने आ समयप्राभृतमां भरी दीधां छे अने सनातन मार्गने जीवत राख्यो छे.
नदीनां पाणीने भरी राखवा माटे कांईक ठाम–पात्र जोईए, तेम भगवानना दिव्यध्वनिमां वरसता
अमृतने भरवा माटे आ समयप्राभृतरूपी पात्र छे. सनातन जैनधर्मनो धोध–प्रवाह तो अनादिथी चाल्यो ज
आवतो हतो, पण हलको काळ आव्यो अने ज्यारे परमसत्यमां वांधा ऊठया–बे फांटा पड्या त्यारे कुंदकुंद
प्रभुए समयप्राभृतरूपी भाजन वडे अमृत भरीभरीने सनातन मार्गना प्रवाहने जयवंत राख्यो छे.
– अनुष्टुप –
कुंदकुंद रच्युं शास्त्र, साथिया अमृते पुर्यां;
गंथाधिराज तारामां भावो ब्रह्मांडनां भर्यां.
कुंदकुंदाचार्य भगवाने ४१५ गाथामां समयप्राभृत रच्युं अने अमृतचंद्राचार्यदेवे ते उपर ४००० श्लोक
प्रमाण टीका रची–जेम सोनाने ओप चढावे तेम समयप्राभृत उपर कळश चढाव्यो. अहाहा आ टीका! आ
भरतक्षेत्रने विषे आ समयप्राभृतनी टीकानी बरोबरीमां आवे एवी कोई ग्रंथनी टीका वर्तमान विद्यमान नथी.
महावीर भगवान पछी ५०० (पांचसो) वर्षे कुंदकुंदाचार्यदेवे महान परमागम श्री समयप्राभृतनी रचना करी,
अने ए रचना पछी एक हजार वर्षे अमृतचंद्राचार्यदेव महान टीकाकार नीकळ्या अने जेम मोतीना साथिया
करी चोक पूरे तेम एकेक गाथाना रहस्यने टीकामां खूल्लां कर्यां छे.
आ समयप्राभृत तो ग्रंथाधिराज छे. भरत क्षेत्रनुं अजोड चक्षु छे. आ समयसारनी जोडे उभुं रहे तेवुं
वर्तमान जगतमां कोई शास्त्र नथी. अमृतचंद्राचार्य महाराजे टीकामां छेवटे [कलश–२४५ मां] कह्युं छे के आ
एक अद्वितिय जगत्चक्षु छे, ते विज्ञान घन आनंदमय आत्माने प्रत्यक्ष करे छे.
– अनुष्टुप –
इदमेकं जगच्चक्षुरक्षयं याति पूर्णताम्।
विज्ञानघनमानंदमयमध्यक्षतां नयत्।। २४५।।
आनंदमय विज्ञानघनने (शुद्ध परमात्माने, समयसारने) प्रत्यक्ष करतुं आ एक (अद्वितिय) अक्षय
जगत् चक्षु (समयप्राभृत) पूर्णताने पामे छे.
आ समयप्राभृत ग्रंथ वचनरूपे तेम ज ज्ञानरूपे बन्ने प्रकारे जगतने अक्षय (अर्थात् जेनो विनाश न
थाय एवुं) अद्वितीय नेत्र समान छे, कारण के जेम नेत्र घट पटादिने प्रत्यक्ष देखाडे छे तेम समयप्राभृत
आत्माना शुद्ध स्वरूपने प्रत्यक्ष अनुभवगोचर देखाडे छे.
आ अक्षय जगत्चक्षु छे. तेनो कदी क्षय नथी. आ महान ग्रंथाधिराजमां अजोड भावो छे, चौद ब्रह्मांडना
भावो तेमां भरेला छे.
अमृतचंद्राचार्ये टीकाने नाटकरूपे वर्णवी छे. बनारसीदासजीए पण कलशना आधारे जे समयसार
बनाव्युं छे तेने पण ‘समयसार–नाटक’ एवुं नाम आप्युं छे. नाटक एटले शुं? जेम कोई राजानुं जीवन ७२
वर्षनुं होय, हवे तेनुं जीवन नाटकरूपे बताववुं होय तो ते नाटक बतावतां ७२ वर्ष लागे नहि, पण त्रण चार
कलाकमां ज नाटक पूरूं थई जाय अने तेटलां टुंक वखतमां राजाना ७२ वर्षनुं बधुं जीवन बतावी दे तेम आ
समयप्राभृत नाटकरूपे छे, तेनी ४१५ गाथामां परिपूर्ण आत्मस्वरूप आचार्यदेवोए दर्शाव्युं छे. एकेक