Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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अत्मस्वरूपन सच समजण सलभ छ

पोतानुं आत्मस्वरूप समजवुं सुगम छे. अनादिथी स्वरूपना अनअभ्यासने कारणे अघरूं लागे छे,
परंतु जो यथार्थरुचि करीने समजवा मागे तो पोतानुं स्वरूप समजवुं ते सहेलुं छे.
बंगलो करवो होय तो गमे तेवो होशियार कारीगर होय तोपण बे घडीमां न थई शके, पण जो
आत्मस्वरूपनी ओळखाण करवा मागे तो ते बे घडीमां पण थई शके छे. आठ वर्षनुं बाळक मणिका न उपाडी
शके परंतु साची समजण द्वारा आत्मानुं भान करी केवळज्ञान पामी शके. आत्मा पर द्रव्यमां कांई ज फेरफार न
करी शके पण स्वद्रव्यमां तो पुरुषार्थद्वारा समस्त अज्ञाननो नाश करी सम्यग्ज्ञान प्रगटावी केवळज्ञान प्राप्त करी
शके छे. स्वमां फेरफार करवा आत्मा परिपूर्ण स्वतंत्र छे, पण परमां कांई करवा माटे आत्मामां किंचित् सामर्थ्य
नथी. आत्मामां एवो बेहद स्वाधीन पुरुषार्थ छे के जो ते ऊंधो पडे तो बे घडीमां सातमी नरके जाय अने
सवळो पडे तो बे घडीमां केवळज्ञान लई सिद्ध थाय.
परमागम श्री समयसारजीमां कह्युं छे के–“जो आ आत्मा बे घडी पुद्गल द्रव्यथी भिन्न पोताना शुद्ध
स्वरूपनो अनुभव करे [तेमां लीन थाय], परिषह आव्ये पण डगे नहि, तो घातीकर्मनो नाश करी, केवळज्ञान
उत्पन्न करी, मोक्षने प्राप्त थाय. आत्मानुभवनुं एवुं माहात्म्य छे तो मिथ्यात्वनो नाश करी सम्यग्दर्शननी प्राप्ति
थवी तो सुलभ छे; माटे श्री गुरुओए ए ज उपदेश प्रधानताथी कर्यो छे.”
[गुजराती समयसार पानुं–५२]
श्री समयसार प्रवचनोमां आत्मानी समजण करवानी प्रेरणा वारंवार करी छे–
(१) चैतन्यनी विलासरूप मोजने, जरीक छूटो पडीने जो, ते मोजने अंदरमां देखतां शरीरादिना मोहने
तुं तरत ज छोडी शकशे. ‘झगिति’ एटले झट दईने छोडी शकीश. आ वात सहेली छे केमके तारा स्वभावनी छे.
[पुस्तक ३ पानुं १६]
(२) सातमी नरकनी अनंती वेदनामां पडेला पण आत्मानो अनुभव पाम्या छे, तो सातमी नरक
जेटली पीडा तो अहीं नथी ने! मनुष्यपणुं पामीने रोदणां शुं रोयां करे छे? हवे सत्समागमे आत्मानी पिछाण
करी आत्मानुभव कर.
[पा. १७]
आ रीते समयसार–प्रवचनोमां वारंवार–हजारोवार आत्मानुभव करवानी प्रेरणा करी छे, जैन शास्त्रोनुं
ध्येयबिंदु ज आत्मस्वरूपनी समजण कराववी ते छे.
‘अनुभव प्रकाश’ ग्रंथमां आत्मानुभवनी प्रेरणा करतां कहे छे के–कोई एम जाणे के आजना समयमां
स्वरूप कठण छे ते स्वरूपनी चाह मटाडनार बहिरात्मा छे × × × × ज्यारे नवरो होय त्यारे विकथा करे छे,
त्यारे स्वरूपनुं परिणाम करे तो कोण रोके छे? परपरिणाम सुगम, निज परिणाम विषम बतावे छे! देखो
अचरज नी वात! पोते देखे छे–जाणे छे छतां देख्यो न जाय, जाण्यो न जाय एम कहेतां लाज पण आवती
नथी? × × × × जेना जश भव्यजीवो गाय छे, जेनी अपार महिमा जाण्ये, महा भव भार मटे एवो आ
समयसार
[आत्म स्वरूप] अविकार जाणी लेवो. [जुओ अनुभव प्रकाश पान–५६–५७]
आ जीव अनादिथी अज्ञानने लीधे परद्रव्यने पोतानुं करवा मथे छे, अने शरीरादिने पोतानुं करीने
राखवा मागे छे, परंतु परद्रव्यनुं परिणमन जीवने आधीन नथी तेथी अनादिथी जीवनी महेनत
[अज्ञानभाव] ना फळमां एक परमाणु पण जीवनो थयो नथी. अनादिथी देहद्रष्टि पूर्वक शरीरने पोतानुं मान्युं
छे पण हजी सुधी एक पण रजकण जीवनो थयो नथी अने कदी थवानो पण नथी, बंने द्रव्य त्रिकाळ जुदां ज छे.
जीव जो पोताना स्वरूपनी साची समजण करवा मागे तो ते सुगम छे अने जे पोताना स्वरूपने समजवा मागे
ते पुरुषार्थ द्वारा अल्पकाळमां समजी शके छे. जीव पोतानुं स्वरूप ज्यारे समजवा मागे त्यारे समजी शके छे.
स्वरूप समजवामां अनंतकाळ लागतो नथी. तेथी साची समजण सुलभ छे.
साची समजण करवानी रुचिना अभावे ज जीव अनादिथी पोतानुं स्वरूप समज्यो नथी. माटे
आत्मस्वरूप समजवानी रुचि करो अने ज्ञान करो..... • • •