Atmadharma magazine - Ank 022
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २००१ : आत्मधर्म : १५५ :
• शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक •
वर्ष: अषाढ
अंक: १० २००१
“मिथ्यात्व समान अन्य कोई पाप नथी; मिथ्यात्वनो सद्भाव रहेतां
अन्य अनेक उपाय करवा छतां पण मोक्ष थतो नथी माटे हरकोई उपाय वडे पण
सर्व प्रकारथी ए मिथ्यात्वनो नाश करवो योग्य छे.”
[मोक्षमार्ग प्रकाशक अध्याय–७ पानुं २७०]
“आ जीव मिथ्यादर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप अनादिकाळथी परिणमे छे अने
ए ज परिणमन वडे संसारमां अनेक प्रकारनां दुःख उपजाववावाळां कर्मोनो
संबंध थाय छे. ए ज भाव सर्व दुःखोनुं बीज छे, अन्य कोई नथी. माटे हे
भव्य! जो तुं दुःखथी मुक्त थवा ईच्छे छे तो सम्यग्दर्शनादि वडे ए
मिथ्यादर्शनादिक विभावोनो अभाव करवो ए ज कार्य छे, ए कार्य करतां तारूं
परम कल्याण थशे.”
[मोक्षमार्ग प्रकाशक–अध्याय–४ पा. ९८]
– : उपरना विषय उपर : –
• परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान •
ता – १७ – ६ – ४५ जेठ सुद – ८

आ मोक्षमार्ग प्रकाशकमां अनेक प्रकारे मिथ्याद्रष्टिओनुं स्वरूप निरूपण करवानो हेतु ए छे के,
मिथ्यात्वनुं स्वरूप समजीने, जो पोतामां तेवो महा दोष होय तो ते टाळवो. पोते पोताना दोष टाळीने सम्यक्त्व
ग्रहण करवुं. पण बीजा जीवोमां तेवो दोष होय तो ते जोईने ते जीव उपर कषाय करवो नहि. बीजा प्रत्ये कषायी
बनवा माटे आ कह्युं नथी. हा! एटलुं खरूं के बीजामां तेवा मिथ्यात्वादि दोष होय तो तेनो आदर–विनय न
करवो, परंतु तेना उपर द्वेष करवानुं कह्युं नथी.
पोतामां मिथ्यात्व होय तेनो नाश करवा माटे ज अहीं मिथ्यात्वनुं स्वरूप बताव्युं छे; केमके अनंत
जन्ममरणनुं मूळ कारण ज मिथ्यात्व छे. क्रोध–मान–माया–लोभ–हिंसा–जुठुं–चोरी ए कोई अनंत संसारनुं
कारण नथी, तेथी खरेखर ते महा पाप नथी; पण ऊंधी मान्यता एज अनंत अवतार फाटवानुं मूळियुं छे तेथी
ते ज महान पाप छे अने तेमां सर्व पाप समाई जाय छे. मिथ्यात्व समान अन्य कोई पाप ज जगतमां नथी.
ऊंधी मान्यतामां पोताना स्वभावनी अनंत हिंसा छे. कुदेवादिने मान्या तेमां तो गृहीत मिथ्यात्वनुं अत्यंत
स्थूळ महान पाप छे.
लडाईमां करोडो मनुष्योनो संहार करता उभो होय तेना पाप करतां एक क्षणना मिथ्यात्व सेवननुं पाप
अनंतगणुं अधिक छे. समकिति लडाईमां उभो होय छतां, तेने मिथ्यात्वनुं सेवन नथी तेथी, ते वखते पण तेने
अनंत संसारना कारणरूप बंधननो तो अभाव ज छे. सम्यग्दर्शन थतां ज एकतालीस प्रकारना कर्मनुं बंधन तो
थतुं ज नथी. मिथ्यात्वनुं सेवन करनार महापापी छे; जे मिथ्यात्वनुं सेवन करे छे अने शरीरादिनी क्रिया
पोताने आधीन माने छे ते जीव त्यागी थईने पूंजणी वडे पूंजतो होय ते वखते पण तेने अनंत संसारनुं बंधन
ज पडे छे–अने तेने सर्व प्रकृतिओ बंधाय छे. अने शरीरनी