सर्व प्रकारथी ए मिथ्यात्वनो नाश करवो योग्य छे.”
संबंध थाय छे. ए ज भाव सर्व दुःखोनुं बीज छे, अन्य कोई नथी. माटे हे
भव्य! जो तुं दुःखथी मुक्त थवा ईच्छे छे तो सम्यग्दर्शनादि वडे ए
मिथ्यादर्शनादिक विभावोनो अभाव करवो ए ज कार्य छे, ए कार्य करतां तारूं
परम कल्याण थशे.”
आ मोक्षमार्ग प्रकाशकमां अनेक प्रकारे मिथ्याद्रष्टिओनुं स्वरूप निरूपण करवानो हेतु ए छे के,
ग्रहण करवुं. पण बीजा जीवोमां तेवो दोष होय तो ते जोईने ते जीव उपर कषाय करवो नहि. बीजा प्रत्ये कषायी
बनवा माटे आ कह्युं नथी. हा! एटलुं खरूं के बीजामां तेवा मिथ्यात्वादि दोष होय तो तेनो आदर–विनय न
करवो, परंतु तेना उपर द्वेष करवानुं कह्युं नथी.
कारण नथी, तेथी खरेखर ते महा पाप नथी; पण ऊंधी मान्यता एज अनंत अवतार फाटवानुं मूळियुं छे तेथी
ते ज महान पाप छे अने तेमां सर्व पाप समाई जाय छे. मिथ्यात्व समान अन्य कोई पाप ज जगतमां नथी.
ऊंधी मान्यतामां पोताना स्वभावनी अनंत हिंसा छे. कुदेवादिने मान्या तेमां तो गृहीत मिथ्यात्वनुं अत्यंत
स्थूळ महान पाप छे.
अनंत संसारना कारणरूप बंधननो तो अभाव ज छे. सम्यग्दर्शन थतां ज एकतालीस प्रकारना कर्मनुं बंधन तो
थतुं ज नथी. मिथ्यात्वनुं सेवन करनार महापापी छे; जे मिथ्यात्वनुं सेवन करे छे अने शरीरादिनी क्रिया
पोताने आधीन माने छे ते जीव त्यागी थईने पूंजणी वडे पूंजतो होय ते वखते पण तेने अनंत संसारनुं बंधन
ज पडे छे–अने तेने सर्व प्रकृतिओ बंधाय छे. अने शरीरनी