: श्रावण : २००१ : आत्मधर्म : १७७ :
जीवोनी दया पाळवानुं कह्युं के अहिंसा बतावी कर्मोनुं वर्णन कर्युं––ए कांई भगवानने के भगवानना कहेला
शास्त्रने ओळखवानुं खरूं लक्षण नथी.
भगवान पण बीजानुं करी शक्या नहि.
भगवाने पोतानुं कार्य पूरेपूरूं कर्युं अने बीजानुं भगवाने कांई कर्युं नहि केमके एक तत्त्व पोतापणे छे
अने परपणे नथी तेथी ते कोई बीजानुं कांई करी शके नहि. दरेक द्रव्य जुदां जुदां स्वतंत्र छे कोई कोईनुं कांई करी
शके नहि––आम जाणवुं ते ज भगवानना शास्त्रनी ओळखाण छे, ते ज श्रुतज्ञान छे... आ तो हजी स्वरूपने
समजनारनी पात्रता कहेवाय छे.
जैन शासनमां कहेलुं प्रभावनानुं साचुं स्वरूप
प्रभावना कोई परद्रव्यनी करी शकतुं नथी, परंतु जैनधर्म एटले के आत्मानो वीतराग स्वभाव तेनी
प्रभावना धर्मी जीवो करे छे. आत्माने जाण्या वगर आत्माना स्वभावनी वृद्धिरूप प्रभावना केवी रीते करे?
प्रभावना करवानो विकल्प उठे ते पण परना कारणे नथी, बीजा माटे कांई पण पोतामां थाय एम कहेवुं ते जैन
शासननी मर्यादामां नथी. जैनशासन तो वस्तुने स्वतंत्र स्वाधीन परिपूर्ण स्थापे छे.
पर जीवनी दया पाळवानुं भगवाने कह्युं नथी.
भगवाने बीजा जीवोनी दया स्थापी–ए वात खोटी छे. पर जीवनी क्रिया आ जीव करी ज शकतो नथी
तो पछी तेने बचाववानुं भगवान केम कहे? भगवाने तो आत्माना स्वभावने ओळखीने कषाय भावथी
पोताना आत्माने बचाववो ते करवानुं कह्युं छे; ते ज खरी दया छे. पोताना आत्मानो निर्णय कर्या वगर ते शुं
करशे? भगवानना श्रुतज्ञानमां तो एम कहे छे के–तुं ताराथी परिपूर्ण वस्तु छो. दरेक तत्त्वो पोताथी ज स्वतंत्र
छे, कोई तत्त्वने बीजा तत्त्वनो आश्रय नथी–आ प्रमाणे वस्तुना स्वरूपने छूटुं राखवुं ते अहिंसा छे अने एक
बीजानुं करी शके एम वस्तुने पराधीन मानवी ते हिंसा छे.
आनंद प्रगटावानी भावनावाळो शुं करे?
जगतना जीवोने सुख जोईए छे, सुख कहो के धर्म कहो. धर्म करवो छे एटले आत्मशांति जोईए छे,
सारूं करवुं छे. सारूं क्यां करवुं छे? आत्मानी अवस्थामां दुःखनो नाश करीने वीतराग आनंद प्रगट करवो छे.
ए आनंद एवो जोईए के जे स्वाधीन होय–जेना माटे परनुं अवलंबन न होय... आवो आनंद प्रगटाववानी
जेने यथार्थ भावना होय ते जिज्ञासु कहेवाय. पोतानो पुर्णानंद प्रगटाववानी भावनावाळो जिज्ञासु पहेलांं ए
जुए के एवो पुर्णानंद कोने प्रगट्यो छे? पोताने हजी तेवो आनंद प्रगट नथी केमके जो पोताने तेवो आनंद
प्रगट होय तो प्रगटाववानी भावना न होय. एटले पोताने हजी तेवो आनंद प्रगट्यो नथी पण पोताने जेनी
भावना छे तेवो आनंद बीजा कोईकने प्रगट्यो छे अने जेमने ते आनंद प्रगट्यो छे एवाओना निमित्तथी पोते
ते आनंद प्रगटाववानो साचो मार्ग जाणे–एटले आमां साचां निमित्तोनी ओळखाण पण आवी गई. आटलुं
करे त्यां सुधी हजी जिज्ञासु छे.
पोतानी अवस्थामां अधर्म–अशांति छे ते टळीने धर्म–शांति प्रगटाववी छे. ते शांति पोताने आधारे
अने परिपुर्ण शांति जोईए छे. आवी जेने जिज्ञासा थाय ते प्रथम एम नक्की करे छे के–हुं एक आत्मा मारूं
परिपुर्ण सुख प्रगटाववा मागुं छुं, तो तेवुं परिपुर्ण सुख कोईने प्रगट्युं होवुं जोईए; जो परिपुर्ण सुख–आनंद
प्रगट न होय तो दुःखी कहेवाय. जेने परिपुर्ण अने स्वाधीन आनंद प्रगट्यो होय ते ज संपुर्ण सुखी छे; तेवा
सर्वज्ञ छे... आ रीते जिज्ञासु पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय करे छे. परनुं करवा–मूकवानी वात तो छे ज
नहि–ज्यारे परथी जरा छूटो पड्यो त्यारे तो आत्मानी जिज्ञासा थई छे. आ तो परथी खसीने हवे जेने पोतानुं
हित करवानी झंखना जागी छे एवा जिज्ञासु जीवनी वात छे. पर द्रव्य प्रत्येनी सुख बुद्धि अने रुचि टाळी ते
पात्रता, अने स्वभावनी रुचि अने ओळखाण थवी ते पात्रतानुं फळ छे.
दुःखनुं मूळ भूल छे. जेणे पोतानी भूलथी दुःख उत्पन्न कर्युं छे ते पोतानी भूल टाळे तो तेनुं दुःख टळे...
बीजा कोईए भूल करावी नथी तेथी बीजो कोई पोतानुं दुःख टाळवा समर्थ नथी.
श्रुतज्ञानुं अवलंबन – एज पहेली क्रिया
जे आत्मकल्याण करवा तैयार थयो छे एवा जीज्ञासुए प्रथम शुं करवुं–ते बतावाय छे. आत्मकल्याण