करवा माटे, जेओने पुर्ण कल्याण प्रगट्युं छे ते कोण छे, तेओ शुं कहे छे, तेओए प्रथम शुं कर्युं हतुं–एनो
पोताना ज्ञानमां निर्णय करवो पडशे; एटले के सर्वज्ञनुं स्वरूप जाणीने तेमना कहेला श्रुतज्ञानना अवलंबनथी
पोताना आत्मानो निर्णय करवो जोईए, ए ज प्रथम कर्तव्य छे. कोई परना अवलंबनथी धर्म प्रगटतो नथी.
छतां ज्यारे पोते पोताना पुरुषार्थथी समजे छे त्यारे सामे निमित्त तरीके सत्देव–गुरु ज होय छे.
समजे त्यारे साचा देव–गुरु शास्त्रो ज निमित्तरूप होय छे. जेने स्त्री, पुत्र, पैसा, वगेरेनी एटले के संसारना
निमित्तो तरफनी तीव्र रुचि हशे तेने धर्मनां निमित्तो–देव–गुरु–शास्त्र प्रत्येनी रुचि नहि थाय एटले तेने
श्रुतज्ञाननुं अवलंबन टकशे नहि अने श्रुतज्ञानना अवलंबन वगर आत्मानो निर्णय थाय नहि. केमके
आत्माना निर्णयमां सत् निमित्तो ज होय परंतु कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र ए कोई आत्माना निर्णयमां निमित्त रूप
थाय ज नहि. जे कुदेवादिने माने तेने आत्मनिर्णय होय ज नहि.
करवानो उद्यमी थाय. धर्मनी कळा ज जगत समज्युं नथी. जो धर्मनी एक कळा पण शीखे तो तेनो मोक्ष थया
वगर रहे नहि.
सांसारिक रुचिथी पाछो नहि हठे तो श्रुतना अवलंबनमां टकी शकशे नहि.
आत्मानो धर्म नथी. धर्म तो पोतानो स्वभाव छे, धर्म पराधीन नथी, कोईना अवलंबने धर्म थतो नथी, धर्म
कोईनो आप्यो अपातो नथी, पण पोतानी ओळखाणथी ज धर्म थाय छे. जेने पोतानो पुर्णानंद जोईए छे तेणे
पुर्णआनंदनुं स्वरूप शुं छे, ते कोने प्रगट्यो छे ते नक्की करवुं जोईए. जे आनंद हुं ईच्छुं छुं ते पुर्ण अबाधित
ईच्छुं छुं एटले कोई आत्माओ तेवी पुर्णानंद दशा पाम्या छे अने तेओने पुर्णानंद दशामां ज्ञान पण पुर्ण ज छे;
केमके जो ज्ञान पुर्ण न होय तो राग–द्वेष रहे अने राग–द्वेष रहे तो दुःख रहे, ज्यां दुःख होय त्यां पुर्णानंद न
होई शके. माटे जेमने पुर्णानंद प्रगट्यो छे एवा सर्वज्ञ भगवान छे तेमनो, अने तेओ शुं कहे छे तेनो
जिज्ञासुए निर्णय करवो जोईए. तेथी ज कह्युं छे के प्रथम, श्रुत–ज्ञानना अवलंबन वडे आत्मानो निर्णय
करवो... आमां उपादान–निमित्तनी संधि रहेली छे. ज्ञानी कोण छे, सत् वात कोण कहे छे–ए बधुं नक्की करवा
माटे निवृत्ति लेवी जोईए. जो स्त्री–कुटुंब–लक्ष्मीनो प्रेम अने संसारनी रुचिमां ओछप नहि थाय तो ते
सत्समागम माटे निवृत्ति लई शकशे नहि. श्रुतनुं अवलंबन लेवानुं कह्युं त्यां ज तीव्र अशुभ भावनो तो त्याग
आवी गयो, अने साचा निमित्तोनी ओळखाण करवानुं पण आवी गयुं...
न थाय. सर्वज्ञ भगवानना कहेला श्रुतज्ञानना अवलंबन वडे ए निर्णय थाय छे अने ते निर्णय करवो ए ज
प्रथम धर्म छे. जेने धर्म करवो होय ते धर्मीने ओळखी तेओ शुं कहे छे तेनो निर्णय करवा माटे सत्समागम करे.
सत्समागमे जेने श्रुतज्ञाननुं अवलंबन थयुं के अहो! परिपुर्ण आत्मवस्तु, आ ज उत्कृष्ट महिमावंत छे, आवुं
परम स्वरूप में अनंतकाळमां