आत्माओ धर्मी जीवनो (ते पुण्य हीन होय तो
पण तेनो) आदर करे छे; तो हवे विचारो के
आमां महिमा कोनो थयो? धर्मनो के पुण्यनो?
धर्मनो ज महिमा थयो छे. आथी सिद्ध थाय छे के
जे भावे ईन्द्रपद के चक्रवर्तीपद मळ्युं ते
शुभभावनो पण धर्ममां आदर नथी, हेय छे.
प्राणीओ धर्मी जीवनो आदर करे छे. पुण्य उपरथी
धर्मीनुं माप पण नथी पण धर्मीनुं माप कई रीते
छे तेनुं स्वरूप कहेवाय छे.
होय छतां ईन्द्र आवीने धर्मात्मा मुनिने नमस्कार
करे के–“अहो! धन्य धर्मात्मा! धन्य मुनि! तारा
नमस्कार धर्म द्रष्टिए छे. वंदन करनारनी द्रष्टि जो
पुण्य–पाप उपर होत तो ते धर्मात्मा मुनिने वंदन
करत नहि. धर्मात्मा मुनिने पापनो उदय वर्ते छे
अने ईंद्रने पुण्यनो उदय वर्ते छे परंतु ईन्द्रनी द्रष्टि
पुण्य–पाप उपर नथी पण धर्म उपर छे, तेथी
मुनिने अंतरमां विशेष धर्म प्रगटयो छे ते धर्मने
नमस्कार करे छे.
जंकशन