Atmadharma magazine - Ank 023
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १७२ : आत्मधर्म : श्रावण : २००१ :
बाह्य सामग्री छोडी माटे धर्मी–एम धर्मीनुं स्वरूप नथी. पोते पुण्यवंत होय अने कोई धर्मात्मा बहु
पुण्यवंत न होय छतां पोते धर्मात्माने वंदन–नमस्कार करे छे एटले के ते धर्मात्मा पासे पुण्य करतां जुदी जातनी
कोई चीज छे के जे पुण्य करतां ऊंची छे–तेने लीधे ज ते धर्मात्मा वंदनीय छे. आ रीते धर्म पासे पुण्य हेय छे, अने
धर्मीने पुण्यनो आदर नथी. जो श्रद्धामां पुण्यनो आदर होय तो ते धर्मी नथी. श्रद्धामां पुण्यनो आदर क्यारे टळे?
के– ‘हुं ज्ञानस्वरूप शुद्ध आत्मा छुं, पुण्य–पाप बंने विकार छे ते मारूं स्वरूप नथी’ आवुं भान होय तो श्रद्धामांथी
पुण्यनो आदर टळे एटले जेने आत्मानी ओळखाण होय ते धर्मी छे अने ते ज वंदनीय छे. कोई जीव बाह्यमां
त्यागी होय परंतु श्रद्धामां पुण्यभावनो आदर होय तो ते धर्मी नथी अने तेथी ते वंदनीय नथी.
तुं जेने वंदन करे छे तेनामां अने तारामां शुं फेर छे–कई रीते सामा वंदनीक छे ते नक्की करवुं जोईए.
सामो बाह्य त्यागी थयो माटे वंदनीक–एम नथी. जे भावे बाह्य सामग्री मळे ते भावनो जो श्रद्धामां आदर
होय तो ते त्यागी ज नथी–धर्मी नथी, पण तारा जेवो ज छे. धर्मी तो ते कहेवाय के जेने सामग्री के सामग्रीनुं
कारण जे पुण्य–पाप तेनो आदर न होय. भव अने भवनुं कारण पुण्य पापना विकार भाव तेनो आदर
धर्मात्माने न होय. आ रीते परीक्षाथी धर्मात्माने ओळख्या वगर, मात्र बाह्य सामग्रीनो त्याग जोईने जे
आदर करे छे ते धर्मनो आदर नथी पण बाह्य त्यागनो आदर करे छे, तेने धर्मना स्वरूपनी ओळखाण नथी.
पोते बाह्य सगवडो छोडी शकतो नथी अने सामाने बाह्य सामग्रीनो त्याग देखाय छे तेथी ते बाह्य त्यागनो
आदर करी रह्यो छे. परंतु अंदरमां शुं फेर छे ते जाणतो नथी. बाह्यमां त्याग होवा छतां जे शुभभावथी लाभ
थवो माने छे तेने अंदरमां जे भावे बाह्य सामग्री मळे ते पुण्यभावनो आदर छे–अने जेने पुण्यनो आदर छे
तेने पुण्यना फळनो पण आदर होय ज. माटे ते जीव धर्मात्मा नथी.
धर्म चीज अपूर्व छे, पुण्य–पापथी पार छे. पुण्यपाप बंने सरखां छे, धर्मी जीव श्रद्धामां ते बंनेने सरखां
गणे छे अर्थात् ते बंनेने हेय गणे छे–पण पाप खराब अने पुण्य सारूं एम तेओ मानता नथी. धर्मीने पापी
जीव उपर तिरस्कार नथी तेम ज पुण्यवंत जीवने देखीने धर्मी राजी थता नथी–केमके ते बंने विकारनुं फळ छे;
धर्मात्माए पुण्य–पापने विकारी तरीके अंतरमां जाण्या छे, तेथी विकार भावना करनार अने तेना फळने
भोगवनार बंने उपर समभाव छे. तेम ज अस्थिरताना कारणे पोताने पुण्य–पापना भाव थई जाय तेनो पण
धर्मीने आदर होतो नथी. जो के तेओ पापभावथी बचवा शुभभाव करे छे परंतु ते भावनो तेमने अंतरथी
आदर नथी. आ ज धर्मीनुं लक्षण छे के तेओ पुण्य–पाप रहित आत्माना शुद्ध ज्ञायक स्वभावने जाणता होवाथी
पुण्य के पाप भावनो तेमने आदर होतो नथी.
धर्मात्माने वंदन करवामां उपरनुं स्वरूप समजवानी जवाबदारी वंदन करनारनी छे. जो उपर प्रमाणे
धर्मनुं स्वरूप समज्या विना वंदन करे तो ते वंदन धर्मात्माने कर्युं नथी, केमके धर्मात्मानुं स्वरूप समज्या विना
तेने वंदन केवी रीते करे?
उपरना लखाणनो टूंक सार
१–पुण्य करतां धर्म जुदी चीज छे. २–बाह्य त्याग ते धर्मात्मानुं लक्षण नथी.
३–जेने वंदन करे तेनुं स्वरूप जाणवुं जोईए. ४–पुण्य–पाप बंने धर्म द्रष्टिमां समान छे. केमके बंने विकार छे.
प–वंदनीक अने वंदन करनार ए बंनेने श्रद्धामां पुण्यनो आदर होवो जोईए नहि, तो ज ते साचुं वंदन होई शके.
६–धर्मात्मानुं अंतर स्वरूप जाण्या वगरना नमस्कार साचा होई शके नहि.
• पर्युषण पर्व •
मुमुक्षुओनी सगवडता खातर, सुवर्णपुरीमां दर वर्षे जे रीते
पर्युषण उजवाय छे ते रीते श्रावण वद १३ थी
भादरवा सुद प सुधी उजवाशे.