Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २००१ : १९३ :
जोतां पर उपर दोष ढोळे छे के कर्मे विकार कराव्यो. आम मानतो होवाथी ते पोताना दोषने टाळतो नथी. जो
पोतानी अवस्थामां दोष छे तेम जाणे तो क्षणिक दोषने त्रिकाळी दोष रहित स्वभावना जोरे टाळे. विकार एक
समय पूरती अवस्थामां छे, द्रव्यमां के गुणमां तो विकार नथी, अने वर्तमान पर्यायनो विकार पण पछीनी
पर्यायमां आवतो नथी, आम जाण्युं त्यां विकारने स्वभावनी ओथ (आधार) न रही, क्षणिक अवस्थामां
विकार छे ते टळी ज जाय छे.
व्रत–तप–पूजा–भक्तिना शुभभाव तेमज हिंसाचोरी आदिना अशुभभाव ते बधा आस्रव छे, राग छे,
ते राग आत्मानी अवस्थामां थाय छे, परंतु ते आत्मानो त्रिकाळ स्वभाव नथी तेथी टळी शके छे. राग टळी
शके छे–ते अपेक्षाए आत्मानो नथी, परंतु ते थाय छे तो आत्मानी ज अवस्थामां अने आत्मा करे तो ज ते
थाय छे, कर्म ते राग करावतुं नथी केमके कर्म अने आत्मा जुदी चीज छे, जुदी वस्तु एक बीजानुं कांई करी शके
नहि–ए सिद्धांत छे.
एक वस्तु बीजी वस्तुनुं कांई न करी शके–शा माटे?
विश्वनी दरेक वस्तुओ स्वपणे छे, अने परपणे नथी. “स्वपणे छे अने परपणे नथी” एटले शुं? जेमके–
आत्मा वस्तु ते आत्मा तरीके छे अने जड कर्म तरीके आत्मा नथी, तेम ज मारो आत्मा मारापणे छे, बीजा आत्मारूप
मारो आत्मा नथी; वळी जड कर्मो छे ते जडरूप छे, आत्मारूप नथी. आ प्रमाणे जे जे वस्तुओ छे ते बधी पोतारूपे छे,
पररूपे नथी. आवुं वस्तु स्वरूप छे तेने “अनेकान्त स्वरूप” कहेवाय छे. आ रीते दरेक वस्तुओ जुदी छे अने जे वस्तु
जुदी होय ते वस्तु बीजी वस्तुनी अवस्थामां कांई कार्य करी शके नहि. जो एक वस्तु बीजी वस्तुनुं कांई करे तो ते बे
वस्तु एक थई जाय अने बे वस्तु जुदी न रहे–परंतु बे वस्तुओ त्रिकाळ जुदी छे तेथी एक बीजानुं कांई करी शकती
नथी. कर्ता अने कार्य बंने एक ज वस्तुमां होय, जुदी जुदी वस्तुमां न होय–एवो नियम छे. आत्मानुं कार्य तो
आत्मानी ज अवस्थामां थाय छे अने कर्मनुं कार्य ते जडनी अवस्थामां थाय छे.
निश्चय अने व्यवहार
प्रश्न:– निश्चयथी तो कर्म आत्माने विकार न करावे परंतु व्यवहारथी कर्म आत्माने विकार करावे ने?
जेवुं कर्मनुं जोर तेवो आत्मामां विकार थाय–एम व्यवहारथी तो छे ने?
उत्तर:– निश्चयथी के व्यवहारथी कोईपण रीते एक वस्तु बीजी वस्तुनुं कांई ज करी शकती
नथी. कर्म कोई अपेक्षाए आत्मानुं करी तो शकता ज नथी. “निश्चयथी कर्म आत्मानुं कांई न करे अने
व्यवहारथी कर्म आत्मानुं करे” एवुं निश्चय–व्यवहारनुं स्वरूप नथी. आत्मा ज्यारे पोतानी अवस्थामां भूल
करे त्यारे त्यां कर्मनी हाजरी होय छे, ते हाजरी बताववा उपचारथी ‘आ कर्मे आत्मानो विकार कराव्यो’ एम
बोलवुं ते व्यवहार छे अने व्यवहारनी बोलणीनो अर्थ ते भाषा प्रमाणे थाय नहि. व्यवहारे ‘कर्म आत्मानुं
करे’ एम बो.. ला.. य त्यां निश्चयथी– (साची रीते) ‘कर्म आत्माने कांई न करे’ एम
स...म...ज...वुं.
आत्मानी स्वतंत्रता
आत्मा अने कर्म ए बंने जुदी वस्तुओ छे, तेथी कर्म आत्माने कांई करी शके नहि. शुभ के अशुभभाव
कर्म करावे–एम नथी. अशुभभाव पोते करे त्यारे थाय छे अने कषायनी मंदता करीने शुभभाव पण पोते करे
त्यारे थाय छे. “कर्ममां मांडयो हशे तो शुभभाव थशे” ए वात असत्य छे. शुभभाव हुं करूं तो थाय, मने
शुभभाव करतां कोई कर्म रोकी शके नहि–आम स्वतंत्रता छे. आत्मा जे भाव करे ते भाव करी शके छे, कर्म
हाजर होय छतां तेणे आत्मामां कांई कर्युं नथी.
पर वस्तुनी असर आत्मामां नथी
आत्मामां पर वस्तुनी असर थती नथी. पर जीव मरे के बचे तेनुं पाप के पुण्य आत्माने नथी, परंतु
जीव पोते स्वलक्ष चूकीने पर लक्षे जेवा शुभ के अशुभ भाव करे ते अनुसार पुण्य के पाप थाय छे. परद्रव्यनी
क्रियानुं फळ आत्माने नथी केमके आत्मा तेनो कर्ता