अविकारी अवस्था कर्म करावतां नथी, पण आत्मा ज तेनो कर्ता छे. ‘घीनो घडो’ ए जेम बोलवा मात्र छे, खरेखर
घडो घीनो बनेलो नथी तेम शास्त्रमां ज्यां ‘कर्म आत्माने विकार करावे’ एम लख्युं होय त्यां समजवुं के ते बोलवा
मात्र छे, परंतु व्यवहारे पण कर्मे आत्माने कांई कराव्युं नथी, मात्र विकार वखते तेनी हाजरी होय छे ज्यारे आत्मा
प्रमाणे वस्तुनुं स्वरूप मानी ल्ये तो ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे, तेने वस्तुना साचा स्वरूपनी खबर नथी.
आत्मा छे, परंतु विकार ते आत्मानो स्वभाव नथी.
जोतां–एटले के एकला आत्माने सर्व पर द्रव्यथी जुदो लक्षमां लेतां, विकारनो उत्पादक आत्मा नथी; अहीं एवो
प्रश्न उठशे के विकारनो उत्पादक आत्मा नथी तो कोण छे? शुं कर्म आत्माने विकार करावे छे? तेनो खुलासो:–
(१) आत्मानो स्वभाव विकारनो उत्पादक नथी, (२) परवस्तु विकार करावती नथी; (३) मात्र एक समय
विकारनी उत्पादक छे.
केमके ते आत्मानो स्वभाव नथी. (२) जेम आत्मा स्वभावथी विकारनो कर्ता नथी तेम कर्म वगेरे कोई
परवस्तु पण आत्मामां विकार करावती नथी. दरेक वस्तु स्वपणे छे, परपणे नथी. ए वस्तुस्वरूपनो अबाधित
सिद्धांत छे. जे चीज आत्मापणे न होय ते चीज आत्मानी अवस्थामां कांई ज करी शके नहि. तेथी जड कर्म पण
विकार करावतां नथी. (३) मात्र पर लक्षे एक समय पूरती अवस्था थाय छे ते ज विकारनुं कारण छे. एक
समयपूरती अवस्था ज विकारनी कर्ता छे तेथी विकार पण एक ज समय पूरतो छे. त्रिकाळी स्वभावमां विकार
पोतापणे छे अने परपणे नथी अर्थात् एक वस्तु पोतानी शक्तिथी पूर्ण छे, अने बीजी बधी वस्तुओथी ते
भिन्न छे. आ प्रमाणे दरेक चेतन अने जड वस्तुओ पोताना गुण–पर्यायोथी परिपूर्ण स्वतंत्र, जुदी जुदी छे.
कोई वस्तुना गुण पर्यायो बीजी वस्तुमां कांई करी शकता नथी...आवी वस्तु स्वभावनी स्वतंत्रता अने
परिपूर्णता दर्शावे छे–ए ज जैन धर्मनी महत्ता छे. जैन धर्म ए स्वतंत्र वस्तुदर्शन छे, वस्तु स्वभावने आश्रित
जैन धर्म छे, तेने काळ के क्षेत्रनी मर्यादामां केद करी शकाय नहि. जगतनी कोई वस्तु जैन धर्मनी मर्यादा विरुद्ध
न होय अर्थात् जगतनी कोई वस्तु बीजी वस्तुरूपे त्रणकाळमां परिणमी जाय नहि. जड होय तो त्रणे काळे
जडपणे रहीने परिणमे अने चेतन होय ते त्रणे काळे चेतनपणे रहीने परिणमे.
भांगीने पोते ज भगवान थाय छे. भगवाननी दया थाय तो आ आत्मानो उद्धार थाय–ए वात खोटी छे. एक