Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १९४ : आत्मधर्म : २४
नथी. आत्मा पोताना विकारी के अविकारी भावनो कर्ता छे अने तेनुं ज आत्माने फळ छे. आत्मानी विकारी के
अविकारी अवस्था कर्म करावतां नथी, पण आत्मा ज तेनो कर्ता छे. ‘घीनो घडो’ ए जेम बोलवा मात्र छे, खरेखर
घडो घीनो बनेलो नथी तेम शास्त्रमां ज्यां ‘कर्म आत्माने विकार करावे’ एम लख्युं होय त्यां समजवुं के ते बोलवा
मात्र छे, परंतु व्यवहारे पण कर्मे आत्माने कांई कराव्युं नथी, मात्र विकार वखते तेनी हाजरी होय छे ज्यारे आत्मा
विकार करे त्यारे कर्मनी हाजरी होय छे ते बताववा व्यवहारनी बोलणी छे, पण जो व्यवहारनी भाषाना शब्दो
प्रमाणे वस्तुनुं स्वरूप मानी ल्ये तो ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे, तेने वस्तुना साचा स्वरूपनी खबर नथी.
अवस्था द्रष्टि अने स्वभाव द्रष्टि
पूजा, भक्तिना शुभभाव के हिंसा, तत्त्वविरोधआदि अशुभभाव ते बधा भावोनो कर्ता आत्मा छे केमके
ते आत्मानी ज अवस्थामां थाय छे, कांई जडनी अवस्थामां ते भाव थता नथी. विकारी अवस्थानो कर्ता
आत्मा छे, परंतु विकार ते आत्मानो स्वभाव नथी.
समयसारमां शुद्ध आत्मानो स्वभाव दर्शाववो छे, तेथी शुद्ध आत्मस्वभावनी..द्रष्टिना जोरे त्यां पुण्य–
पापना विकार भावनो कर्ता आत्मा नथी एम शुद्धनयनी अपेक्षाए कह्युं छे. आत्माना स्वभावनी द्रष्टिथी
जोतां–एटले के एकला आत्माने सर्व पर द्रव्यथी जुदो लक्षमां लेतां, विकारनो उत्पादक आत्मा नथी; अहीं एवो
प्रश्न उठशे के विकारनो उत्पादक आत्मा नथी तो कोण छे? शुं कर्म आत्माने विकार करावे छे? तेनो खुलासो:–
(१) आत्मानो स्वभाव विकारनो उत्पादक नथी, (२) परवस्तु विकार करावती नथी; (३) मात्र एक समय
पूरती अवस्थामां स्व लक्ष चूकीने जीव पर लक्ष करे छे त्यारे विकार थाय छे, एटले एक समयनी अवस्था ते
विकारनी उत्पादक छे.
(१) आत्माना स्वभावमां विकार नथी, एटले आत्म पोते विकारनो उत्पादक नथी. जो आत्मस्वभाव
विकारनो उत्पादक होय तो विकार कदी आत्माथी छूटो ज पडी शके नहि, पण विकार आत्माथी छूटी जाय छे
केमके ते आत्मानो स्वभाव नथी. (२) जेम आत्मा स्वभावथी विकारनो कर्ता नथी तेम कर्म वगेरे कोई
परवस्तु पण आत्मामां विकार करावती नथी. दरेक वस्तु स्वपणे छे, परपणे नथी. ए वस्तुस्वरूपनो अबाधित
सिद्धांत छे. जे चीज आत्मापणे न होय ते चीज आत्मानी अवस्थामां कांई ज करी शके नहि. तेथी जड कर्म पण
विकार करावतां नथी. (३) मात्र पर लक्षे एक समय पूरती अवस्था थाय छे ते ज विकारनुं कारण छे. एक
समयपूरती अवस्था ज विकारनी कर्ता छे तेथी विकार पण एक ज समय पूरतो छे. त्रिकाळी स्वभावमां विकार
नथी. जो आवुं द्रव्य पर्यायनुं स्वरूप समजे तो त्रिकाळी स्वभावना जोरे क्षणिक विकार टाळी शके.
जैन धर्मनी महत्ता
केटलाक जीवो “जैन धर्ममां सूक्ष्म कर्मनी घणी वातो करी छे माटे जैन धर्मनी महत्ता छे” एम माने छे,
परंतु तेनाथी जैननी महत्ता नथी. जैनो कर्मवादी नथी, परंतु अनेकांतवादी एटले के स्वतंत्रवादी छे. दरेक वस्तु
पोतापणे छे अने परपणे नथी अर्थात् एक वस्तु पोतानी शक्तिथी पूर्ण छे, अने बीजी बधी वस्तुओथी ते
भिन्न छे. आ प्रमाणे दरेक चेतन अने जड वस्तुओ पोताना गुण–पर्यायोथी परिपूर्ण स्वतंत्र, जुदी जुदी छे.
कोई वस्तुना गुण पर्यायो बीजी वस्तुमां कांई करी शकता नथी...आवी वस्तु स्वभावनी स्वतंत्रता अने
परिपूर्णता दर्शावे छे–ए ज जैन धर्मनी महत्ता छे. जैन धर्म ए स्वतंत्र वस्तुदर्शन छे, वस्तु स्वभावने आश्रित
जैन धर्म छे, तेने काळ के क्षेत्रनी मर्यादामां केद करी शकाय नहि. जगतनी कोई वस्तु जैन धर्मनी मर्यादा विरुद्ध
न होय अर्थात् जगतनी कोई वस्तु बीजी वस्तुरूपे त्रणकाळमां परिणमी जाय नहि. जड होय तो त्रणे काळे
जडपणे रहीने परिणमे अने चेतन होय ते त्रणे काळे चेतनपणे रहीने परिणमे.
परंतु कोई काळे के कोई क्षेत्रे जडनो स्वभाव बदलीने चेतनरूपे के चेतननो स्वभाव जडरूपे थई जाय
नहि–एवी वस्तु धर्मनी त्रिकाळ मर्यादा छे–अने जैन धर्म ते वस्तुधर्म छे तेथी ते त्रिकाळ अबाधित छे.
परवस्तुए आत्माने भूल करावी माटे आत्मा रखडयो ए वात सदंतर खोटी छे. आत्मा पोते अनंत गुणोनो
पिंड, परथी जुदो छे. पोताना स्वाधीन स्वभावने भूलीने अज्ञानभावे पोते रखडे छे साची समजण द्वारा भूलने
भांगीने पोते ज भगवान थाय छे. भगवाननी दया थाय तो आ आत्मानो उद्धार थाय–ए वात खोटी छे. एक