Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of magazine: http://samyakdarshan.org/Dmz
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/GdzqAD

PDF/HTML Page 9 of 21

background image
मोक्षमार्ग प्रकाशक
पानुं २प९
: १९२ : आत्मधर्म : २४
श्री समवसरण प्रतिष्ठा महोत्सव
प्रसंगे परम पूज्य श्री सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीनुं प्रवचन
आत्माना भान वगर शुभ करणी करीने अनंतकाळमां दरेक जीव नवमी ग्रैवेयके गयो छे. जैननो त्यागी
साधु थईने २८ मूळ गुणो चोकखा पाळीने स्वर्गमां गयो परंतु ए बधा पुण्यभाव छे, पुण्य–पाप रहित आत्मा
ज्ञानानंद मूर्ति छे तेना भान विना कदी धर्म थयो नहि. आत्मा ज्ञानानंद मूर्ति छे अने एनी श्रद्धा–ज्ञान ए ज
मोक्षमार्गना साधक छे; व्रत, तप वगेरे सर्वे शुभभावनी क्रियाओ ते मोक्षमार्गमां बाधक छे; पण आत्मानी
साची श्रद्धा–ज्ञान अने स्थिरता ते ज साधक छे. आ प्रमाणे जे जीव नथी समजतो ते आत्माने जाणतो नथी
अने ते मिथ्यात्वना महा पापने सेवे छे.
विकार एक समय पूरतो छे
आ ज्ञानस्वरूपी भगवान आत्मा देह–मन–वाणीथी जुदो अने जड कर्मोथी जुदो ज छे. आम सर्व पर
द्रव्योथी जुदो जाणीने आत्मामां जोतां वर्तमान आत्मानी अवस्थामां एक समय पूरतो विकार छे, अने आखो
त्रिकाळ अविकार स्वभाव छे. विकार आत्मामां एक समय पूरतो ज छे, आत्मा चिद्घन मूर्ति वस्तु छे; विकार
आत्मानो स्वभाव नथी, परंतु पर लक्षे थतो विरूद्ध भाव छे. ते विकार कदी बे समयनो भेगो थतो नथी अने
त्रिकाळी निर्विकार स्वभाव कदी विकाररूप थतो नथी. छद्मस्थना ज्ञानना उपयोगमां ते विकार असंख्य समये
आवे छे केमके छद्मस्थनुं ज्ञान स्थूळ होवाथी ते एक समयना परिणमनने पकडी शकतुं नथी, छतां विकार तो
एक समय पूरतो ज छे. एक समयनो विकार व्यय थाय त्यारे बीजा समयनो विकार उत्पन्न थाय छे, पण बे
समयनो विकार एक साथे आत्मद्रव्यने विषे होई शके नहि. आ रीते विकार एक ज समयनो होवाथी संसार
एक ज समयनो छे, केमके विकार ए ज संसार छे.
विकारी भावनो कर्ता जड कर्म नथी
पुण्य–पापना भाव ते ‘भावकर्म’ छे, ते आत्मानी अवस्थामां थतो विकार छे. ते विकारभावनो कर्ता
खरी रीते जड कर्म नथी, पण आत्मानी अवस्थामां ते थाय छे माटे तेनो कर्ता आत्मानी वर्तमान योग्यता ज
छे. शास्त्रोमां निमित्तनी मुख्यता बताववा एम लख्युं होय के “मोहनीय कर्मने लईने आत्माने मिथ्यात्व थाय’
पण खरेखर तेम नथी. मोहकर्म ते तो जड–अचेतन छे, ते आत्मानी अवस्थामां कांई करी शके नहि. ज्यारे
आत्मा पोते अवस्थामां भूल करे त्यारे कर्म निमित्तरूप कहेवाय छे, परंतु ते बंने जुदां छे, भूल ते आत्मानी
अवस्था छे अने कर्म ते जडनी अवस्था छे. आत्मामां जड कर्म नथी अने जड कर्म आत्मामां नथी, तेथी कोई
कोईनुं कांई करता नथी. बंने पोतपोतानी अवस्थामां अस्तिरूपे अने परनी अवस्थामां नास्तिरूपे वर्ते छे.
आत्मानी अवस्थामां विकार एक समय पूरतो छे, विकार परवस्तुथी त्रण काळ त्रण लोकमां थाय नहि.
परवस्तुथी आत्मामां विकार थाय एम माने ते मिथ्याद्रष्टि छे अने मिथ्याद्रष्टि राग घटाडे तो पण ते धर्मी नथी.
धर्मीपणुं तो मिथ्यात्व टळतां ज थाय छे, ते वगर थतुं नथी.
विकार भावनो कर्ता आत्मा छे.
भावकर्म ते आत्मानी अवस्थामां थतो विकार छे, ते आत्मानी अवस्थामां ज थतो होवाथी अशुद्ध
निश्चयनये आत्मानो छे. पुण्य–पापना विकारी भावो आत्मानी अवस्थामां थाय छे, जडनी अवस्थामां थता
नथी. जड परमाणुओमां चेतनपणुं नथी, तेने तो पोते शुं छे तेनी कांई ज खबर नथी. पुद्गल द्रव्य तो चेतन
रहित छे. पुण्य–पापना भाव ते चेतननो विकार छे जडमां पुण्य–पापना भाव नथी. कर्मो पण जड छे ते कर्मो
आत्माने विकार करावतां नथी. शास्त्रमां एम कथन आवे के ‘ज्ञानावरणीय कर्मे ज्ञानने रोकयुं, मोह कर्मे राग–
द्वेष कराव्यां’ ––त्यां तेनो वास्तविक अर्थ एम समजवो के खरेखर जड कर्मनी आत्मामां कांई ज सत्ता नथी, जड
कर्मो चेतनने कांई करावता नथी. ज्यारे आत्मा पोते पोतानी अवस्थामां ऊंधा भाव करीने अज्ञानरूपे परिणमे
त्यारे कर्मनी हाजरी छे तेथी ते निमित्तनुं कथन छे, परंतु निमित्ते उपादानमां कांई कार्य कर्युं नथी. खरेखर एटले
साची रीते आत्मानी अवस्थामां कर्म कांई ज करतां नथी. अज्ञानी जीव पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी विकार
पोतानी दशामां करे छे, त्यां पोतानो वांक छे परंतु अज्ञानी जीव पोता तरफ न
तारीख १–६–४प
: वैशाख वद १: