भाद्रपद : २००१ : १९१ :
(कर्ताकर्म भिन्न होतां नथी, परंतु उपादान–निमित्त तो भिन्न भिन्न होय छे–माटे उपादान–निमित्तने कांई
कर्ताकर्म संबंध नथी.)
२–“वस्तु एक ज सदा परिणमे छे, एकना ज सदा परिणाम थाय छे. (अर्थात् एक अवस्थाथी अन्य अवस्था
एकनी ज थाय छे) अने एकनी ज परिणति–क्रिया थाय छे; कारण के अनेकरूप थवा छतां एक ज वस्तु छे, भेद नथी.”
(कलश–प२)
एक ज वस्तु अवस्थारूपे थाय छे. जे वस्तु अवस्थारूपे थाय छे ते ज वस्तु कर्ता छे, बीजी कोई वस्तु
कर्ता नथी.
३–“बे द्रव्यो एक थईने परिणमता नथी, बे द्रव्योनुं एक परिणाम थतुं नथी अने बे द्रव्योनी एक
परिणति–क्रिया थती नथी; कारण के अनेक द्रव्यो छे ते अनेक ज छे, पलटीने एक थई जतां नथी.”
(कलश–प३)
दरेक वस्तुओ जुदी जुदी छे, कदी बे वस्तुओ भेगी थई जती नथी. अने बे वस्तुओ जुदी होवाथी
बंनेना कार्य जुदां ज छे. जो ए कार्य बे वस्तुओ भेगी थईने करे तो बे वस्तुओ जुदी ज रहे नहि एटले के
वस्तुना नाशनो प्रसंग आवे,–ते असंभव छे,
४–“एक द्रव्यना बे कर्ता न होय, वळी एक द्रव्यना बे कर्म न होय अने एक द्रव्यथी बे क्रिया न होय,
कारण के एक द्रव्य अनेक द्रव्यरूप थाय नहि.”
(कलश–प४)
बे द्रव्यो जुदां जुदां रहीने एक कार्य करे–एम पण बनतुं नथी केमके एक कार्यना बे कर्ता होई ज शके नहि.
प–“आ जगतमां मोही (अज्ञानी) जीवोनो ‘पर द्रव्यने हुं करूं छुं’ एवा पर द्रव्यना कर्तृत्वना महा
अहंकाररूप अज्ञानांधकार–के जे अत्यंत दुर्निवार छे ते अनादि संसारथी चाल्यो आवे छे.
(कलश–पप)
६–“निश्चयथी द्विक्रियावादिओ (अर्थात् एक द्रव्यने बे क्रिया होवानुं माननारा) आत्माना परिणामने
अने पुद्गलना परिणामने पोते (आत्मा) करे छे एम माने छे तेथी तेओ मिथ्याद्रष्टि ज छे एवो सिद्धांत छे.
(गाथा ८६ टीका)
७–आत्मा पोताना ज परिणामने करतो प्रतिभासो; पुद्गलना परिणामने करतो तो कदी न प्रतिभासो.
आत्मानी अने पुद्गलनी बंनेनी क्रिया एक आत्मा ज करे छे एम माननारा मिथ्याद्रष्टि छे. जड–चेतननी क्रिया
एक होय तो सर्व द्रव्यो पलटी जवाथी सर्वनो लोप थई जाय–ए मोटो दोष उपजे. (गाथा ८६ भावार्थ)
(समयसारजीनो आखो कर्ता कर्म अधिकार आज विषय उपर छे.)
उपरना कथनथी ए सिद्धांत स्पष्टपणे नक्की थाय छे के एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई पण करी शके नहि.
उपादान अने निमित्त ए बंने जुदां द्रव्यो छे तेथी तेओ एक बीजामां कांई पण कार्य–मदद के असर करी शके
नहि. निमित्त जो उपादाननुं कार्य प० टका करी देतुं होय तो उपादानने निमित्तनी राह जोवी पडे एटले के एक
द्रव्यने पोताना कार्य माटे परवस्तुनी प० टका जरूर पडे–ए रीते वस्तुनी ज पराधीनता आवे परंतु वस्तुनुं
स्वरूप पराधीन नथी. वस्तु स्वाधीनपणे पोताना कार्यने करे छे.
कोई ‘निमित्त’ नी एवी व्याख्या कहे के–
“अपना अस्तित्व कालमें उपादानकारणके रहते हुए, उपादानकारण को कार्यरूप परिणत करा
देवे उसका नाम सहकारी कारण अर्थात् निमितकारण है” –आवी निमित्तनी व्याख्या करे तो ते तद्न
खोटी छे एम उपरना कथनथी बराबर सिद्ध थाय छे. जो निमित्त कारण पोतामां रहीने उपादानने कार्यरूप
परिणमावी दे तो ते निमित्त पोते ज कर्ता ठरे, तो पछी उपादान द्रव्ये पोतानी अवस्थामां शुं कर्युं? शुं उपादान
कार्य वगरनुं रह्युं? जो कार्यनो अभाव मानवामां आवे तो कार्य वगर कारणनो (उपादाननो) पण अभाव थई
जाय..अने मोटो दोष आवी पडे.
उपादाननुं कार्य प० टका अने निमित्तनुं कार्य प० टका एम पण नथी; केमके कार्यरूपे उपादान द्रव्य परिणमे
छे, निमित्तनो कोई पण अंश उपादानना कार्यरूपे परिणमतो नथी. वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी.
उपादान वस्तु पोते पोतानी शक्तिथी कार्यरूपे परिणमती होवाथी कोई परपरिणमावनारनी अपेक्षा तेने नथी. एटले
उपादान पोते पोतामां स्वतंत्रपणे सोए सो टका कार्य करे छे, निमित्त निमित्तमां सोए सो टका कार्य करे छे, परंतु
उपादानमां निमित्त एके टको कार्य करी शकतुं नथी. आ प्रमाणे बंने वस्तुओ संपूर्ण स्वाधीन छे.