Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १९० : आत्मधर्म : २४
जेवो हुं परिपूर्ण आत्मा छुं तेवा ज जगतना बधा जीवो परिपूर्ण स्वभावे छे. में मारी परिपूर्ण सर्वज्ञ
वीतरागदशा प्रगट करी छे तेवी दशा बधा जीवो प्रगट करी शके छे. मारी परिपुर्ण दशा में मारा स्वभावमांथी
प्रगट करी छे, कोई परवस्तुमांथी मारी पुर्णदशा आवी नथी अने जगतना सर्वे जीवोनी दशा पोताना
स्वभावमांथी ज प्रगटे छे. परद्रव्योथी हुं जुदो छुं, कोई परवस्तुनुं हुं करी शकतो नथी तेम जगतना बधा जीवो
परवस्तुनुं करी शकता नथी. जेम मारामां रागद्वेष नथी तेम जगतना बधा जीवोनुं स्वरूपपण रागरहित संपूर्ण
छे. आ प्रमाणे प्रथम स्वाधीन स्वरूपने जाणीने तेनी श्रद्धा करो अने ते ज स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञानना द्रढ
अभ्यास वडे स्थिरता करीने रागनो नाश करतां वीतरागता थई केवळ ज्ञानदशा प्रगट थाय छे. आज
अरिहंतदशा प्रगट करवानो उपाय छे–एम श्री अरिहंत भगवाने कह्युं छे.
आ रीते अरिहंतभगवाने शुं कर्युं अने शुं कह्युं–ए जो जीव साची रीते ओळखे तो पोते ते उपायो करे
अने तेनाथी विरूद्ध उपायो छोडे.
–सार–
(१) अरिहंतदशा प्रगटाववा पहेलांं अरिहंत भगवाननुं साचुं स्वरूप जाणवुं जोईए.
(२) अरिहंत भगवान आत्मा हता अने आत्मामांथी ज तेमणे अरिहंतदशा प्रगट करी छे.
(३) जेवो अरिहंतनो आत्मा छे तेवा ज बधा आत्माओ छे अने बधा आत्माओ साचा उपायथी
पुर्णदशा प्रगट करी शके छे.
(४) अरिहंतना आत्माए पहेलांं आत्मानुं साचुं ज्ञान अने साची श्रद्धा ज करी हती. एक द्रव्य बीजा
द्रव्यनुं कांई करे नहि अने राग मारो स्वभाव नहि–एम स्वभावने जाणीने पछी तेओए स्थिरता द्वारा राग
छोड्यो हतो, अने केवळज्ञान–अरिहंतदशा प्रगट करी हती. माटे जीवोए पहेलांं साचां श्रद्धा–ज्ञान ज करवां
जोईए. अने त्यारपछी स्थिरता द्वारा रागना त्यागनो प्रयत्न करवो जोईए.
आवो श्री अरिहंत भगवंतनो संदेश जगतना सर्वे जीवोने साचा धर्मनी वृद्धि करवा माटे छे...
कार्यमां निमित्त उपादानना केट केटला टका?
प्रश्न:– आत्माना विकार भावमां कर्म निमित्तरूपे तो छे ने? कर्म निमित्त छे माटे प० टका कर्म करावे
अने प० टका आत्मा करे ए रीते बंने भेगा थईने विकार करे छे? शास्त्रोमां कह्युं के कार्यमां उपादानकारण अने
निमित्तकारण बंने होय छे–माटे बंनेए पचास–पचास टका कार्य कर्युं?
उत्तर:– ‘निमित्त छे’ एटली वात खरी, परंतु कार्यना प० टका निमित्तथी थाय अने प० टका उपादानथी
थाय ए वात त्रणकाळ त्रणलोकमां सर्वथा जुठी छे. कार्यमां निमित्तनो एक पण टको नथी. उपादानना सो ए
सो टका उपादानमां अने निमित्तना सो ए सो टका निमित्तमां छे, कोईनो एके टको बीजामां गयो ज नथी. बंने
द्रव्यो स्वतंत्र छे, बे द्रव्यो भेगा मळीने–एकरूप थईने कोई कार्य करी शके नहि, परंतु जुदां ज छे. जो बे द्रव्यथी
पचास–पचास टका कार्य मानवामां आवे तो ते बे द्रव्यो भेगा थईने कार्यरूप परिणमवा जोईए–परंतु ए तो
असंभव छे. कार्यरूपे तो उपादान एकलुं स्वयं परिणमे छे, त्यां निमित्त जुदुं हाजररूपे होय छे. निमित्त वस्तु
उपादानना कार्यरूपे जरापण परिणमति नथी. जे कार्यरूपे स्वयं न परिणमे तेने कर्ता केम कहेवाय? कार्यरूपे जे
द्रव्य थाय ते द्रव्य ज ते कार्यनो १०० टका कर्ता छे. उपादान निमित्तनी व्याख्या नीचे मुजब छे:–
उपादान:– जे पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमे तेने उपादान कारण कहे छे.
निमित्त:– जे पदार्थ परमां स्वयं कार्यरूप न परिणमे परंतु उपादान कार्यनी उत्पत्तिमां अनुकूळ हाजरीरूप
होय तेने निमित्त कारण कहे छे.
आमां स्पष्ट छे के उपादान एकलुं ज कार्यरूपे परिणमे छे, निमित्त कार्यरूपे परमां परिणमतुं नथी. जे कार्यरूपे
परिणमे छे ते ज कर्ता छे एवो नियम छे. भगवानश्री अमृतचंद्राचार्यदेव समयसारनी टीकामां स्पष्ट कहे छे के–
१–“जे परिणमे छे ते कर्ता छे, (परिणामनारनुं) जे परिणाम छे ते कर्म छे अने जे परिणति छे ते क्रिया
छे; ए त्रणेय वस्तुपणे भिन्न नथी.”
(कलश–प१)