Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २००१ : १८७ :
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• • • • • • अत्मधम • • • • • •
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(सत्तास्वरूप शास्त्रनी थोडीक वानगीओ)
जिज्ञासुओए प्रथम शुं करवुं.
तत्त्व निर्णयरूप धर्म तो बाळ, वृद्ध, रोगी, निरोगी, धनवान,
निर्धन सुक्षेत्री तथा कुक्षेत्री आदि सर्व अवस्थामां प्राप्त थवा योग्य छे,
तेथी जे पुरूष पोताना हितनो वांछक छे तेणे सर्वथी पहेलांं आ तत्त्व
निर्णय रूप कार्य ज करवुं योग्य छे. कह्युं छे के:–
न क्लेशो न धन व्ययो न गमनं देशान्तरे प्रार्थना।
केषांचिन्न बलक्षयो न तु भयं पीडा न कस्माश्च न।।
सावद्यं न न रोग जन्म पतनं नैवान्य सेवा न हि।
चिद्रूपं स्मरणे फलं बहुतरं किन्नाद्रियन्ते बुधाः।।
अर्थ:– चिद्रूप (ज्ञान स्वरूप) आत्मानुं स्मरण करवामां
नथी कलेश थतो, नथी धन खर्चवुं पडतुं, नथी देशांतरे जवुं पडतुं,
नथी कोई पासे प्रार्थना करवी पडती, नथी बळनो क्षय थतो, नथी
कोई तरफथी भय के पीडा थती; वळी ते सावद्य (पापनुं कार्य)
नथी, रोग के जन्म मरणमां पडवुं पडतुं नथी, कोईनी सेवा करवी
पडती नथी. आवी कोई मुश्केली विना ज्ञान स्वरूप आत्माना
स्मरणनुं घणुं ज फळ छे तो पछी डाह्या पुरूषो केम आदरता नथी?
वळी जे तत्त्व–निर्णयना सन्मुख नथी थया तेमने जाग्रत
करवा ठपको आप्यो छे के:–
साहिणे गुरु जोगे जे ण सुणं तीह धम्म वयणाई।
ते धिठ्ठ दुठ्ठ चिता अह सुहडा भव भय विहुणा।।
अर्थ:– गुरुनो योग स्वाधीन होवा छतां जेओ धर्म
वचनोने सांभळता नथी तेओ धृष्ट अने दुष्ट चित्तवाळा छे
अथवा तेओ भव भय रहित (जे संसार भयथी श्री तीर्थंकरादिक
डर्या तेनाथी नहीं डरनारा ऊंधा) सुभटो छे.
जेओ शास्त्राभ्यास द्वारा तत्त्व निर्णय तो नथी करता अने
विषय कषायना कार्योमां ज मग्न छे ते तो अशुभोपयोगी मिथ्याद्रष्टि
छे; तथा जे सम्यग्दर्शन विना पूजा, दान, तप, शील, संयमादि व्यवहार
धर्ममां (शुभभावमां) मग्न छे ते शुभोपयोगी मिथ्याद्रष्टि छे.
माटे भाग्योदयथी जेओ मनुष्य पर्याय पाम्या छे, तेमणे
तो सर्व धर्मनुं मूळ कारण सम्यग्दर्शन अने तेनुं मूळ कारण तत्त्व
निर्णय तथा तेनुं पण मूळ कारण शास्त्राभ्यास ते अवश्य करवा
योग्य छे. (पाछळ)
वर्ष: २
अंक: १२ भाद्रपद २००१