Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ९ :
करे छे. जो के सम्यग्दर्शन वखते ज्ञान मनना अवलंबनथी छूटयुं छे एटले के बुद्धिपूर्वकना विकल्पो नथी पण
अबुद्धिपूर्वक सूक्ष्म विकल्प वर्ते छे. जो सर्वथा मननुं अवलंबन छूटी जाय तो केवळज्ञान थाय. परंतु सम्यकश्रद्धा
थतां तुरत ज केवळज्ञान थई जाय नहि, वच्चे गुणस्थान भेद आवे ज.
जीव द्रव्यमां श्रद्धा–ज्ञानादि अनंत गुणो छे, तेमां कथंचित् गुणभेद छे. जो गुणभेद न ज होय तो श्रद्धा
निर्मळ थई ते ज समये केवळज्ञान थई जाय. पण तेम बने ज नहि. वच्चे साधकदशा तो आवे ज. सम्यकश्रद्धा
थया पछी एक समयमां कोईने केवळज्ञान थई जाय नहि केमके द्रव्यना दरेक गुण कथंचित् जुदा छे. वस्तु
अपेक्षाए गुणो अभेद छे. तेथी सम्यकश्रद्धा वखते द्रष्टिमां गुणभेदनो विकल्प छूटी गयो छे; पण ते ज वखते
ज्ञानमां अबुद्धिपूर्वक सूक्ष्म गुणभेदनो विकल्प छे. [अबुद्धिपूर्वक विकल्प एटले ज्ञाननुं मन साथेनुं सूक्ष्म
जोडाण.] जो वस्तुमां गुण सर्वथा अभेद ज होय तो एक गुण निर्मळ थतां बधा ज गुणो पूर्ण निर्मळ थई जवा
जोईए, एटले श्रध्धानी साथे ज ज्ञाननी पण पूर्णता थवी जोईए, परंतु श्रध्धा अने ज्ञाननी पूर्णतामां अंतर
पडे ज छे केमके गुणभेद छे. गुणभेद छे माटे गुणस्थान भेद पडे ज छे अने द्रव्यद्रष्टिए वस्तुमां गुणो अभेद छे
तेथी एक गुणनी निर्मळता ऊघडतां बधा गुणोनी निर्मळता अंशे ऊघडे ज छे.
: ७ :
प्रश्न:–अगीआरमा गुणस्थाने कषायभाव नथी छतां सत्तामां मोहनीय कर्मनो सद्भाव केम छे?
उत्तर:–अगीआरमा गुणस्थाने पण वीर्यनी मंदता छे. सातमा गुणस्थानथी श्रेणी चडतां वीर्य जेटला
अप्रतिहत जोरथी उपडवुं जोईए ते करतां ओछा जोरथी उपड्युं छे. जो श्रेणी चडतां अप्रतिहत पुरुषार्थ वडे
सत्तामांथी ज कषायनो क्षय करता आव्या होत तो सीधुं केवळज्ञान पामत, परंतु श्रेणी चडतां मंद पुरुषार्थने
कारणे, कषायनो उपशम कर्यो पण सत्तामांथी नाश न कर्यो तेथी अगीआरमेथी पुरुषार्थ पाछो पडे छे एटले
त्यां मंद पुरुषार्थ छे तेथी सामे सत्तामां मोहनीय कर्म छे. जो संपूर्ण पुरुषार्थ उपाडे तो चारे घातिकर्मनो सर्वथा
क्षय करी केवळज्ञान पामे. अगीआरमा गुणस्थानना छेल्ला समयनुं वीर्य केवळज्ञानना वीर्य करतां अनंतमा
भागे ओछुं छे, जो उपादाननी पोतानी अवस्थामां कांई ज पुरुषार्थ नबळो न होय तो सामे निमित्त केम होई
शके? माटे उपादानना पुरुषार्थनी कचाशना कारणे सत्तामां कर्मनी हैयाति छे.
अगीआरमा अने बारमा गुणस्थाननी वच्चे ए फेर छे के–११ मा करतां १२ मानुं वीर्य तीव्र छे.
मोहनो उदय एकेमां नथी, परंतु ११ मे सत्तामां मोहनो सद्भाव छे अने १२मे मोहनो क्षय छे. उपशम श्रेणी
चडतां ज जीव मंद पुरुषार्थथी उपड्यो छे तेथी अगीआरमेथी पाछो पडे छे अने फरी सातमा गुणस्थाने आवीने
पछी ज क्षपक श्रेणी मांडी शके छे.
: ८ :
प्रश्न:–श्रध्धा अने चारित्र ए बंने गुण जुदा छे छतां तेने रोकवामां निमित्त एक मोहकर्म ज केम गण्युं
छे? श्रध्धाने रोकवामां निमित्त दर्शनमोह अने चारित्रमां निमित्त चारित्रमोह ए बंनेने एक मोहनीय कर्म
तरीके केम गण्यो छे?
उत्तर:–बंनेना कार्यनी कथंचित् समानता होवाथी तेमने एक ज कर्ममां गण्या छे. मोहनीय कर्मनुं कार्य तो
एक ज छे के स्वरूपथी बहिरमुख वलण करवामां निमित्तरूप थवुं. आ व्याख्या दर्शनमोह अने चारित्रमोह
बंनेने लागु पडे छे. छतां दर्शन अने चारित्र ए बे गुणो जुदां छे तेथी तेने रोकनार बे जुदी प्रकृति होय एटले
दर्शनमोह अने चारित्रमोह एवा बे भेद मोहकर्मना छे. मूळ तो मोहकर्मनुं कार्य एक ज छे के बहिरमुख वलण
कराववुं, बहिरमुख वलणना बे पडखां–दर्शन अने चारित्र. मोहनीयनो सद्भाव ते बहिरमुख अने मोहनीयनो
अभाव ते अंतरमुख छे.
: ९ :
प्रश्न:–द्रष्टि पूरी थाय अने चारित्र अधूरूं रहे एम बने?
उत्तर:–गुणभेदनी अपेक्षाए चोथा गुणस्थानथी द्रष्टि पूरी थई छे पण चारित्र पूरूं नथी. अने अभेदनी
द्रष्टिए–बधा गुण अभेद छे ए अपेक्षाए–एक गुणनी पूर्णता थतां सर्व गुणनी पूर्णता थवी जोईए; चोथे
चारित्र वगेरे गुण संपूर्ण ऊघडया नथी तेथी द्रष्टिमां पण कथंचित् अधुराश छे. छतां चोथा गुणस्थाने द्रष्टिए जे
विषय कर्यो छे ते विषय परिपूर्ण छे, ते श्रद्धाना विषयना आधारे ज चारित्रनी पूर्णता थाय छे. ‘चारित्र करूं’
एवो विकल्प पण कषाय छे तेथी ते चारित्रनो बाधक छे. सर्वगुणोथी अभेद द्रव्यनुं लक्ष करवुं अर्थात् अभेद
स्वभावमां द्रष्टिनुं जोर आपवुं ते ज सम्यकचारित्रनुं कारण छे.