
अवलंबने ज ज्ञाननुं परिणमन थई रह्युं छे. सामी वस्तुना परिणमन साथे ज पोताना कारणे ज्ञानमां
अव्यक्तपणे व्यंजनावग्रह शरू थई गयो छे. पूर्वना ज्ञाननो क्षयोपशम लईने आव्यो छे तेनो उपयोगरूप उघाड
वर्तमान पोताथी ज थाय छे–निमित्तना अवलंबने उघाड थतो नथी. खरेखर तो कोई वाणी सांभळतो नथी,
पण पोताना ज्ञाननी स्वतंत्र पर्यायमां ते जातनुं परिणमन शरू थई गयुं छे तेने जाणे छे. वाणीनुं अवलंबन
मळतां ज्ञाननुं परिणमन शरू थयुं एम नथी.
शरू थई गयुं छे. पहेले समये कषाय थयो अने बीजा समये ज्ञान शरू थयुं एम समयांतर नथी, तेम ज कषाय
थयो माटे ज्ञान शरू थयुं एम नथी.
छे, बन्नेनुं परिणमन जुदुं ज छे. क्रोध अने ज्ञान कदी एकरूप थयां नथी, पण ते जुदापणुं न जाणतां “हुं क्रोध
छुं” एवी बुद्धि उठे छे ते ज खोटी छे. क्रोधने जाणनारूं ज्ञान ते हुं अने आ क्रोध जणाय ते हुं नहि एम ज्ञान
अने क्रोधना भिन्नपणानी श्रद्धा करतो नथी तेथी ज्ञान साथे क्रोधने पण पोतानुं स्वरूप मानी बेसे छे ए ज
भूल छे. मिथ्याद्रष्टिने पण क्रोधनुं ज्ञान छे, परंतु तेने क्रोधथी जुदा ज्ञाननी श्रद्धा नथी, तेथी क्रोधने अने क्रोधने
जाणवारूप ज्ञाननी अवस्थाने ते एकरूप माने छे ए ज मिथ्यात्व....
ज्ञाननो अंश पण परना अवलंबन वगर स्वाधीनपणे कार्य करे छे. ज्ञाननो स्वभाव अचिंत्य छे. सर्वत्र ज्ञाननुं
ज माहात्म्य छे. क्रोध अने ज्ञान बन्ने जुदा ज परिणमे छे, क्रोध थाय छे ते चारित्र गुणनी अवस्था छे अने
क्रोधनुं ज्ञान थाय छे ते ज्ञाननी अवस्था छे; ए रीते क्रोध अने क्रोधनुं ज्ञान–बन्ने जुदा जुदा गुणोनी पर्याय छे–
तेथी बन्ने जुदां ज छे अने बन्नेनुं परिणमन पण जुदुं पोतपोताने कारणे ज छे.
रीते कथंचित् गुण भेद होवाथी दरेक गुणनुं परिणमन जुदुं छे–छतां पण वस्तुद्रष्टिथी गुणो अभेद छे,–बधा
गुणो एक बीजा साथे अविनाभावी (संकळाएला) छे तेथी दरेक गुणना परिणमनने कथंचित् संबंध पण छे.
श्रद्धा गुण निर्मळरूपे परिणमतां ज, ते ज वखते चारित्रगुण विकारी होय तोपण, अनंतानुबंधी कषायनो
चारित्रना परिणमनमां अभाव थई ज जाय, तथा वीर्यनुं परिणमन स्वतरफ ढळे, ज्ञाननुं परिणमन सम्यक्
थाय–ए रीते वस्तुथी जोतां बधा गुणोना परिणमनने संबंध छे–बधानुं परिणमन साथे ज छे.
हीणुं परिणमन थवा मांड्युं छे; पण जिंदगीना छेडा सुधी पूर्वनो उघाड कार्य करी रह्यो छे तेथी, वर्तमानमां
ज्ञाननुं परिणमन ओछुं थतुं जाय छे छतां ते स्थूळ द्रष्टिथी जणातुं नथी, पण ज्यारे आयुष्य पुरूं थशे त्यारे
ज्ञान लुप्त थई जशे अने एकेन्द्रियादिमां जशे त्यां ज्ञाननी हीनता व्यक्त जणाशे. आ रीते तत्त्वना विराधक
जीवने