Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : १५ :
आत्मा करतो नथी एटले के संयोगनुं सुख–दुःख आत्माने नथी.
उपरना कथनमां शरीर अने तेना छूटा पडेला अंग वच्चे ज्यां आत्माना प्रदेशो लंबाया छे ते जग्याए
कार्माण शरीर तो आत्माना प्रदेशो साथे छे परंतु औदारिक शरीर एटले नोकर्म नथी. कार्माण शरीर होवा छतां
अने त्यां प्रतिकूळ संयोग आवे छतां तेनुं दुःख आत्माने थतुं नथी केमके कार्माण शरीर साथे निमित्त–नैमित्तिक
संबंध नथी; परंतु जो आ औदारिक शरीर उपर तलवार पडे अगर ते बळे तो रागवाळा जीवने ते वखते दुःख
लागे छे एटलो शरीर साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे. निमित्त–नैमित्तिक संबंधनी व्याख्या एवी छे के–जो
जीव पोते शरीरनुं लक्ष करीने रागभाव वडे दुःखी थाय तो शरीरनी प्रतिकूळताने निमित्त कहेवाय छे, पण जो
जीव राग न करे तो तेने निमित्त पण कहेवातुं नथी. आ रीते जीवने शरीरनी प्रतिकूळताना संयोगनुं दुःख नथी
परंतु ते वखते जेटलो कषाय छे ते कषायभावनुं वेदन छे, अने तेनुं ज दुःख छे. शरीर साथेनो निमित्त–
नैमित्तिक संबंध दुःखनुं कारण नथी पण कषाय ज दुःखनुं कारण छे. आ बाबतमां चौभंगी नीचे मुजब
(१) एक मुनि आत्मस्वरूपना ध्यानमां छे अने तेमना शरीरने सिंह खाई जाय छे छतां ते वखते
तेमने सुखनुं वेदन छे.
(२) एक राजा सर्व प्रकारनी बाह्य सगवडो वच्चे बेठो छे छतां अंतरंग विचारमां ते आकूळतानुं दुःख
वेदी रह्यो छे.
(३) एक सामान्य रागी जीवने वींछी करडवो वगेरे प्रतिकूळता आवे छे अने ते रागथी दुःखी थाय छे.
(४) एक जीवने प्रतिकूळता नथी अने ते राग करीने दुःखी थतो नथी.
उपरना चार द्रष्टांतोमां पहेला बे द्रष्टांतोमां निमित्त नैमित्तिक संबंध लागु पडतो नथी, केमके तेमां प्रतिकूळ
संयोग छतां सुख छे अने अनुकूळ संयोग छतां दुःख छे. त्रीजा–चोथामां निमित्तनैमित्तिक संबंध लागु पडे छे.
ईच्छानो अभाव ते ज सुख
प्रश्न:–कोई सिंह घणा दिवसनो भूख्यो होय अने कोई मनुष्य मळे त्यारे तेने खावा जाय, त्यारे मनुष्य
तेने कहे के अरे सिंह! मने खावाथी तने हिंसानुं पाप लागशे अने तुं दुःखी थईश. त्यारे सिंह कहे के–पापनुं फळ
तो अशांति–दुःख होय परंतु हुं तने खाईश अने मारी भूख टळशे तथा मने शांति थशे, माटे तेमां हिंसानुं पाप
क्यां आव्युं?
उत्तर:– वर्तमानमां खावानो जे हिंसक भाव छे ते तो पाप ज छे अने तेनुं वेदन पण अशांति अने
दुःखमय ज छे. मनुष्य खावाथी बहारमां जे साता देखाय छे ते साता हिंसक पापभावनुं फळ नथी तेम ज
मनुष्य शरीरने खावाथी साता थई नथी; परंतु पूर्वना कोई पुण्यना कारणे साता देखाय छे. वर्तमानमां मनुष्य
हिंसानो जे पापभाव छे तेनुं फळ अंदरमां तो वर्तमान ज आकूळतारूपे वेदाय छे अने भविष्यमां तेना बाह्य
फळरूपे नरकादिनो संयोग मळशे. तीव्र अशुभभाव करवा छतां वर्तमानमां भूखनुं दुःख टळे छे ते पूर्वना
पुण्यना कारणे टळे छे, परंतु वर्तमान अशुभभाव कर्या तेना कारणे भूख मटी नथी.
आमां तो घणुं सिद्ध थई जाय छे. १–पुनर्जन्म छे, २–पुण्य–पापनुं फळ छे, ३–पर वस्तुनो संयोग
वियोग आत्माना भावने आधीन नथी, ४–आत्माने पोताना भावनुं फळ वर्तमान ज छे, आ बधुं सिद्ध थई
जाय छे. आ संबंधमां चौभंगी नीचे मुजब–
१–वर्तमान हिंसक पापभाव छतां सातानो अनुकूळ संयोग
२–वर्तमान शुभभाव होय छतां असातानो प्रतिकूळ संयोग
३–वर्तमान अशुभभाव अने प्रतिकूळ संयोग.
४–वर्तमान शुभभाव अने अनुकूळ संयोग.
(१) वर्तमान पापभाव होवा छतां सातानो अनुकूळ संयोग होय छे ते अनुकूळ संयोग वर्तमान
परिणामनुं फळ नथी पण पूर्वना कोई शुभ परिणामनुं ते बाह्य फळ छे एटले पूर्वे ते जीव हतो अने तेणे
शुभभाव कर्या हता ए सिद्ध थाय छे. वर्तमान पैसा मेळववानो पापभाव होय अने पैसा आवे तो त्यां
पापभावना फळमां पैसा आव्या नथी पण पूर्वना पुण्यना कारणे पैसा आव्या छे, वर्तमान पापभाव छे तेनुं
बाह्यफळ भविष्यमां प्रतिकूळतारूपे आवशे.
(२) कोईने दयानो भाव होय अने तेना शरीरने हिंसक पशुओ खाई जता होय एम बने, त्यां
प्रतिकूळ संयोग छे ते पूर्वना पापनुं बाह्यफळ छे अने वर्तमान दयानो भाव छे तेनुं बाह्यफळ भविष्यमां
आवशे.