कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : १७ :
एवी ऊंधी मान्यतानुं वेदन पड्युं ज छे, जो असंयोगी आत्मस्वभावने जाणे तो ऊंधी मान्यताना दुःखनुं वेदन
टळे. जीवना विकार परिणाम अनुसार जड–कर्मो स्वयं बंधाय छतां तेनी साथे जीवने कर्ता कर्म संबंध नथी.
अज्ञान दशामां पण जीव जड कर्मने करतो के भोगवतो नथी पण पोताना विकारीभावने करे छे अने तेना
फळरूप आकुळताना दुःखने भोगवे छे.
अपूर्व पुरुषार्थ
जेणे सम्यग्दर्शन प्रगटाववानो पूर्वे कदी नहि करेलो एवो अनंतो सम्यक् पुरुषार्थ करीने सम्यग्दर्शन
प्रगट कर्युं छे अने ए रीते संपूर्ण स्वरूपनो साधक थयो छे ते जीव कोई पण संयोगोमां, भयथी, लज्जाथी,
लालचथी के कोईपण कारणथी असतने पोषण नहि ज आपे........ए माटे कदाच कोई वार देह छूटवा सुधीनी
प्रतिकूळता आवी पडे तो पण ते सतथी च्यूत् नहि थाय–असत्नो आदर कदी नहि करे...स्वरुपना साधको
निःशंक अने निडर होय छे. सत् स्वरूपनी श्रद्धाना जोरमां अने सत्ना माहात्म्य पासे तेने कोई प्रतिकूळता छे
ज नहि. जो सतथी जरापण च्यूत थाय तो तेने प्रतिकूळता आवी कहेवाय, पण जे क्षणेक्षणे सतमां विषेश
विषेश द्रढता करी रह्यो छे तेने तो पोताना बेहद पुरुषार्थ पासे जगतमां कांई पण प्रतिकूळ ज नथी. ए तो
परिपूर्ण सतस्वरूप साथे अभेद थई गयो–तेने डगाववा त्रण जगतमां कोण समर्थ? अहो! आवा स्वरूपना
साधकोने धन्य छे!!
द्रव्यत्वगुण
प्रश्न:–ज्ञानीओ कहे छे के ‘शरीर वगेरे परवस्तुना परिणमननो आत्मा कर्ता नथी, पण ते वस्तुओ
स्वतंत्रपणे परिणम्या करे छे.’ परंतु शरीर वगेरे पदार्थो तो जड छे, तेमां ज्ञान नथी, तो ज्ञान वगर तेओनुं
परिणमन केम थाय? माटे ज्ञानवाळो जीव तेनुं परिणमन करे छे.
उत्तर:–ज्ञान होय तो ज वस्तुनुं परिणमन थाय एम नथी, केमके परिणमन ते ज्ञानगुणनुं कार्य नथी
पण द्रव्यत्वगुणनुं कार्य छे. वस्तुमां अनंतगुणो छे, ज्ञानगुण अने द्रव्यत्वगुण ए बंने जुदा छे. ‘ज्ञान’ ते
जीवद्रव्यनो विशेष गुण छे अने ते जाणवानुं कार्य करे छे. ‘द्रव्यत्व’ ते सामान्यगुण छे अने ते जगतना बधा
द्रव्योमां रहेलो छे, द्रव्यत्व गुणनुं कार्य परिणमन छे. बधा द्रव्योनो द्रव्यत्वगुण जुदो होवाथी बधा द्रव्योनुं
परिणमन जुदुं छे.
ज्ञान अने द्रव्यत्व ए बंने गुण जुदा होवाथी बन्नेनुं कार्य स्वतंत्र छे, तेथी ज्यारे जीवना ज्ञाननी
अवस्था ऊंधी होय अर्थात अज्ञानरूप होय त्यारे पण द्रव्यत्वगुणने कारणे तेनुं परिणमन तो स्वतंत्रपणे ज
थाय छे. कोई पर वस्तु जीवने अज्ञानरूपे परिणमावती नथी; आ जीव द्रव्यनी वात करी. हवे पुद्गल द्रव्यमां
ज्ञान गुण नथी, परंतु तेमां द्रव्यत्व गुण तो छे. ते द्रव्यत्वगुणनी शक्तिथी जडवस्तुनुं परिणमन स्वतंत्रपणे
तेना पोताना कारणे समये समये थया ज करे छे, तेनो कर्ता कोई बीजो नथी.
जगतना दरेक द्रव्यमां द्रव्यत्वगुण होवाथी द्रव्यनुं परिणमन स्वतंत्र ज छे, कोई बीजुं द्रव्य तेने
परिणमावतुं नथी. एटले के एक वस्तु बीजी वस्तुनुं किचिंत पण करी शकती नथी. ‘एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई
करे छे’ एम जे माने छे ते वस्तुना द्रव्यत्वगुणने जाणता नथी अने जे गुणने जाणता नथी तेणे वस्तुनु स्वरूप
पण जाण्युं ज नथी, तेथी तेनी मान्यता खोटी छे. आथी नीचेना पांच महा सिद्धांतो सिद्ध थाय छे.
१–अनादिथी मांडीने आज सुधी कोई पर जीवने के जडने किचिंत मात्र लाभ के नुकशान कोई जीवे
कर्युं नथी.
२–अनादिथी आज सुधी कोई पर जीवे के जड वस्तुए कोई जीवने लाभ के नुकशान कर्युं नथी.
३–अनादिथी आज सुधी अज्ञानी जीवोए पोतामां सतत एकलो नुकशाननो धंधो कर्यो छे अने ज्यां
सुधी आत्मानी साची समजण नहि करे त्यां सुधी ते नुकशाननो धंधो चाल्या करशे.
४–जीवे अनादिथी जे नुकशान कर्युं छे ते नुकशान पोतानी क्षणिक अवस्थामां थयुं छे, त्रिकाळी वस्तुमां
नुकशान थयुं नथी.
५–आ प्रमाणे जाणीने जीव पोताना त्रिकाळी चैतन्य स्वरूप धु्रवस्वभाव तरफ लक्ष करे तो शुद्धता प्रगटे
अने अशुद्धता टळे–एटले के अनादिनुं नुकशान टळे अने अटळ लाभ थाय.