Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : २५ :
अने जे रूपे पोते न थाय ते रूपे न थवानी श्रध्धा करवी ते धर्मीनुं लक्षण छे.
आ तो आठ वर्षना बाळकने पण समजाय तेवी वात छे. जेने रुचि थाय ते बधा समजे छे. कोई कहे के
मारे मोक्ष जोईए छे! तो शुं तारे बहारथी मोक्ष लाववो छे? शुं लोकाग्रे मुक्तिशीलाना पत्थर पर जवुं ते मोक्ष
छे? के पोते ओळखाण करी पूर्ण पवित्र दशास्वरूपे प्रगट थवुं ते मोक्ष छे? मोक्षदशारूपे थनार आत्मा छे.
पुण्य–पापना विकारभाव संयोगना लक्षे थाय छे–ते बंधभाव छे, ते बंधभावथी मुक्ति एटले के अशुद्धतानो
त्याग अने संपूर्ण शुद्धतानुं ग्रहण तो चिदानंद धु्रव आत्मस्वभावना लक्षे थाय छे.
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव अहीं सुवर्ण अने लोखंडनुं द्रष्टांत आपी स्वभावनी स्वतंत्रता बतावे छे के
कोई पर वडे कोईमां फेरफार थतो नथी. जे परमाणुओ स्वयं सुवर्णरूपे थया छे तेने कादव वडे काट लागी शकतो
नथी केमके सोनानो स्वभाव ज काट लागवानो नथी. तेम ज्ञानी धर्मात्मानी द्रष्टि नित्यनिरालंबी ज्ञानानंद
स्वभाव उपर छे तेथी ते स्वयं ज्ञानरूप परिणमे छे, कोई परथी लाभ–नुकशान मानवारूप अज्ञान के राग–द्वेष
ममतारूपे तेने करवा कोई समर्थ थतुं नथी.
जेना आधारे धर्म रहे अथवा जे धर्मरूप स्वयं थाय ते धर्मी. नित्य ज्ञान अने सुखरूप थनारो हुं ज छुं
एवी जेने स्वनी श्रद्धा छे ते पोताना सुख माटे पर सामग्री ईच्छतो नथी, पुण्य–पाप विकाररूपे थवानुं ईच्छतो
नथी माटे ते कोई काळे मलिन थतो नथी, पण स्वभाव द्रष्टिना जोरे तेने शुद्धिनी वृद्धि ज थाय छे. अल्प
अशुद्धता छे तेनी मुख्यता नथी. श्रध्धामां परिपूर्ण स्वाश्रयी ज्ञान स्वभावरूपे थयो तेनी मुख्यता वर्ते छे, पछी
नबळाईना कारणे राग रहे ते पोताना कारणे अस्थिरतानो राग छे, पर सामग्रीने लईने राग नथी. राग
रहित स्वभावरूपे थनार छुं एवी स्वरूपनी प्रतीतिमां रागपणे थवानुं जोतो नथी एटले परलक्षे अटकतो नथी.
एक तरफ राम अने एक तरफ गाम. एटले एक तरफ स्वाश्रीत स्वभावरूप धर्मद्रष्टि अने बीजी तरफ पराश्रीत
विकाररूप अधर्मद्रष्टि, तेने जुदा पाडे छे. जे धर्मी छे तेनी स्वाश्रीतद्रष्टि होवाथी तेने कोई पर द्रव्यो प्रत्ये
अभिप्रायथी राग नथी, एटले ते रागरहित स्वभावपणे ज थनार छे. सर्वत्र निरालंबी आत्मा उपर द्रष्टि छे
त्यां सर्व प्रत्ये रागनो नकार वर्ते छे. अने अज्ञानीनी पराश्रीत द्रष्टि होवाथी ते अभिप्रायथी सर्व प्रत्ये राग–
द्वेष करे छे.
धर्मात्मा गृहस्थदशामां होय तो पण निरंतर सर्व तरफथी निःशंक अने निर्भय छे के मने राग–द्वेष–
अज्ञानरूप करवा कोई समर्थ नथी, कारण के हुं परपणे थनारो नथी, नित्य स्वपणे थनारो छुं. वर्तमान
नबळाईना कारणे राग थई जाय ते रागनो राग धर्मीने नथी, अने शुभाशुभ रागना फेरफारथी मारा शाश्वत
एकरूप ज्ञायक स्वरूपमां कांई फेरफार थई जतो नथी. हुं त्रिकाळ एवो ने एवो ज छुं, विकारनो हुं नाशक छुं
पण रक्षक नथी. जेने रागनो राग छे तेने स्वभावनी द्रढता नथी पण रागनो आदर छे तेथी ते रागने छोडवा
मागतो नथी. साक्षात् भगवाननी हाजरी मने रागनुं कारण छे एम जेणे मान्युं तेणे परना कारणे राग मान्यो
छे–ते अज्ञान छे. केमके जो पोते रागरूप स्वयं न थाय तो कोई पर तेने रागरूप करवा समर्थ नथी. धर्मी जीव
जाणे छे के साक्षात् भगवाननी हाजरी मने रागनुं कारण नथी, अस्थिरतानी नबळाई छे ते तोडीने स्वरूपमां
हुं ठरी शक्तो नथी एटले के प्रयत्न ओछो छे माटे राग आवे छे. जो आ क्षणे ज प्रयत्न वडे राग तोडीने ठरी
जाउं तो मारे भगवान प्रत्येना रागमां रोकावुं नथी. भगवान भले बिराजे, तेना कारणे मने राग नथी. मने
कोई रागरूपे करवा समर्थ नथी. ते आ गाथामां कह्युं छे:–
छो सर्व द्रव्ये रागवर्जक, ज्ञानी कर्मनी मध्यमां;
पण रज थकी लेपाय नहि, ज्यम कनक कर्दम मध्यमां.–२१८
पण सर्वद्रव्ये रागशील, अज्ञानी कर्मनी मध्यमां;
ते कर्म रज लेपाय छे, ज्यम लोह कर्दम मध्यमां.–२१९
टीका:–जेम खरेखर सुवर्ण कादव मध्ये पड्युं होय तो पण कादवथी लेपातुं नथी (अर्थात तेने काट
लागतो
आजीवन ब्रह्मचर्य
सां–२००१ ना भादरवा सुद ५ ना रोज दामनगरना कामदार ललुभाई नागरदास [उ. व. ५०] तथा
तेमना धर्मपत्नी केसर बेन [उ. व. ४०] तेओए सजोडे पू. सद्गुरुदेवश्री समीपे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार
कर्युं छे.