Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
नथी) कारण के ते अलिप्त रहेवाना स्वभाववाळुं छे, तेवी रीते ज्ञानी कर्मनी मध्ये रह्यो होय तो पण कर्मथी
लेपातो नथी कारण के सर्व परद्रव्य प्रत्ये करवामां आवतो जे राग तेना त्यागरूप स्वभावपणुं होवाथी ज्ञानी
अलिप्त रहेवाना स्वभाववाळो छे. जेमं लोखंड कादव मध्ये पड्युं थकुं कादवथी लेपाय छे (अर्थात् तेने काट
लागे छे) कारण के ते लेपावाना स्वभाववाळुं छे, तेवी रीते खरेखर अज्ञानी कर्म मध्ये रह्यो थको कर्मथी लेपाय
छे कारण के सर्व पर द्रव्य प्रत्ये करवामां आवतो जे राग तेना ग्रहणरूप स्वभावपणुं अज्ञानीने होवाथी
अज्ञानी लेपावाना स्वभाववाळो छे.
धर्मी जीव कोई प्रकारनो राग करवा जेवो मानतो नथी. देव–गुरु–शास्त्र पण सामग्रीमां जाय छे. अहो!
में श्री समयसारजीनी स्थापना करी अने तेमने पधराव्यां, हवे ते प्रत्येनो राग केम तोडाय? एम माने तो ते
ऊंधी द्रष्टिनो राग छे, केमके तेमां राग करवा जेवो मान्यो अने सामग्रीथी राग थाय एम मान्युं. ज्ञानीओ
अंशमात्र राग कोई पण प्रत्येनो करवा जेवो मानता नथी. कोई पण राग मारी शांतिनुं कारण नथी एवी द्रष्टि
जागृत होवाथी ज्ञानी रागथी लेपातो नथी, तेने रागनी भावना के होंश थती नथी.
जेम कोई संसार प्रत्येनो राग करवा जेवो माने छे तेम जो कोई देव–गुरु–शास्त्र उपरनो राग करवा
जेवो माने तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. देव–गुरु–शास्त्रनी भक्ति थोडी करी, परजीवनी दया थोडी पाळी माटे मोक्ष
अटक्यो छे एम नथी, तेमज माराथी घणा जीवो धर्म समजे तो हुं वहेलो मोक्ष जाउं–ए मान्यता पण भ्रम छे,
वळी में घणी हिंसा करी छे माटे ज्यां सुधी बधा प्राणीओ मने क्षमा न आपे त्यां सुधी माराथी विकल्प तोडीने
मुक्ति न थई शके–ए मान्यता पण भूल छे–ए बधामां संयोगथी अने परथी जीव पोतानो धर्म माने छे, तेथी
ते अज्ञान छे. सहु पोतावडे पोताना भावमां नुकशान करे छे अने पोतानो अज्ञानभाव पलटावीने ते नुकशान
पोते टाळी शके छे.
हुं मारी भूलथी विकाररूपे दुःखी थनार छुं अने भूलरहित स्वभावना भान वडे भूल टाळीने अविकारी
सुखरूपे थनार हुं ज छुं–आवो जेने निर्णय छे तेने पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी. पर जीव क्षमा आपे के न आपे
पण “हुं ज्ञान स्वरूप छुं” अने मारा ज्ञाननो स्वभाव रागने छोडवानो छे” एवा भान द्वारा स्थिरता करीने
पोते राग रहित वीतराग थई जाय छे. तीर्थंकर भगवान हाजर होय त्यां सुधी शुभराग न छूटे अथवा तो पर
जीव क्षमा न करे तो मोक्ष अटके एम जेणे मान्युं तेणे पोताने रागरूप थनार मान्यो छे एटले के ते रागने
पोतानुं स्वरूप माने छे. सर्व प्रकारनी विरोधरूप मान्यता टाळी हुं स्वयं वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान–स्थिरतारूपे
थनार छुं एम जेणे जाण्युं ते खरेखर कोई तरफना रागमां अटकनार नथी, ते रागरूपे थनार नथी पण ज्ञानरूपे
ज थनार छे. मारुं होवापणुं–थवापणुं नित्य स्व स्वभावपणे छे पण कोई परमांथी मेळववुं पडे के राग करुं तो
टके एवुं मारुं स्वरुप नथी–आवी निर्दोष द्रष्टि ते धर्म छे, अने धर्मीनो स्वभाव सर्व प्रकारना रागना त्यागरूपे
रहेवानो छे.
जुओ, भाई! आवुं परम सत्य मानवामां अने समजवामां अपूर्व धर्म छे. धर्मरूपे थनार धर्मात्मानो
अंतर अभिप्राय केवो होय ते समजवानी आ वात छे. धर्मी एटले सम्यग्द्रष्टि आत्मा पोते ज स्वभावथी
विकारना त्याग स्वरूपे अने ज्ञानपणे थनार स्वभाववाळो छे. पोताना स्वभावनी श्रद्धाना जोरे ते साक्षात्
निर्मळतानो उत्पादक [निर्मळतारूपे थनार] अने अशुद्धतानो नाशक छे, तेथी तेने निर्जरा ज छे अने ते
अल्पकाळमां पूर्ण स्वभावनी अबंधद्रष्टिना जोरे पूर्ण सुख स्वरूप थाय छे. जे पोते ज सुख स्वरूपे थाय छे तेने
सुख माटे कोई विकल्प, मन–वाणी–देह, देव–गुरु–शास्त्र के क्षेत्र–काळना संयोगनी जरूर नथी.
अहो! आ तो भगवान आत्मानी, बधानी स्वतंत्रतानी वात छे. सहुना घरनी सुखरूप वात छे. हुं
एकलो पूर्ण सुखस्वरूप छुं, मारे कोईनी जरूर नथी, हुं ज माराथी महिमावंत छुं, क्षणिक विकारथी मारो महिमा
नथी. आ वातने जीवे प्रीतिथी धारण करी तेनुं मनन करी अंतरमां महिमा लावी निःसंदेह निर्णय करवो
जोईए.
आजीवन ब्रह्मचर्य
सां–२००१ ना भादरवा सुद ५ ना रोज लींबडीवाळा भाई केशवलाल छोटालाल [उ. व. ४७] तथा
तेमना धर्मपत्नी मरघा बेन [उ. व.] तेओए सजोडे पू. श्री सद्गुरुदेवश्री समीपे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार
कर्युं छे.