कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : २७ :
धर्मनी वस्तुस्थिति तो त्रणेकाळ आम ज छे एम प्रथम ज्ञान–श्रद्धान वडे आत्मामां उत्कृष्टपणे बहुमान
लावी साचो निर्णय करे तो धर्मरूपे–सुखरूपे थनारने जे स्वरूपे कबुल्यो अने प्रतीतमां लीधो ते रूपे ते थाय ज
थाय. माटे वस्तुस्वरूप जे रीते छे ते रीते समजी ते रूपे थवुं ते ज बधाने माटे कल्याणनो सनातन मूळ मार्ग छे.
सर्वद्रव्यथी भिन्न मारा स्वरूपमां ज सुख छे, सर्व द्रव्यप्रत्ये राग करनार हुं नथी अर्थात् कोई प्रकारनो
राग ते मारुं कर्तव्य नथी एवी श्रद्धारूप प्रथम थवुं जोईए. साची समजण थया पछी तरत ज बधो राग न
टळी शके त्यां अशुभ भावोथी बचवा निर्दोष देव, गुरु, शास्त्रनी ओळखाण सहित भक्ति, पूजा, व्रत वगेरे
प्रकारना शुभराग आवे पण ज्ञानीने ते रागनी रुचि के भावना नथी. केमके ज्ञानीनो स्वभाव सर्व द्रव्य प्रत्येनो
राग छोडवानो छे, ज्ञानीने निरालंबी वीतराग स्वरूपे थवानी भावना छे. सर्वद्रव्यना आलंबन रहित स्वाधीन
मारूं स्वरूप छे एवी निरालंबन स्वरूपनी द्रष्टि अने स्थिरतारूपे थनार हुं छुं–एवो निःसंदेह निर्णय प्रथम
आत्मामां जे करे ते रागरहित वीतराग स्वरूपे परिणमे छे.
श्री समयसारजीनी छेल्ली गाथामां कह्युं छे के–
“आ समय प्राभृत पठन करीने, अर्थ–तत्त्वथी जाणीने;
ठरशे अरथमां आतमा जे, सौख्य उत्तम ते थशे. ४१५
सर्व शास्त्रोना नीचोडरूप आ समयसारजीमां सर्वज्ञ भगवाने कह्या अनुसार जे लायकजीव चैतन्य
प्रकाशरूप आत्माने अर्थ अने तत्त्वथी जाणीने–स्वभाव शुं अने अवस्था शुं ते जाणीने पोताना स्वभावमां
पुण्य–पापरहितनी श्रद्धा–ज्ञान स्थिरतापणे ठरशे ते आत्मा पोते ज उत्तम सुखरूप थशे. अहीं “ते आत्माने
सुख मळशे” एम नथी कह्युं परंतु “ते पोते ज सुखरूप थशे” एम कहीने सुख अने आत्मानुं अभेदपणुं
बताव्युं छे, एटले आत्माने क्यांय बहारथी सुख आवतुं नथी पण आत्मा पोते ज सुखमय छे एम बताव्युं
छे. सुखगुण आत्मानो छे तेने कोई बीजो लई गयो नथी के आत्माने पोताना सुख माटे बीजानी जरूर पडे!
स्वभावथी पोते सुखस्वरूप छे माटे कोई पासे रांकाई के ओशियाळ करवानी जरूर नथी. तेम ज सुख माटे कोई
संयोग मेळववा पडता नथी. मुक्ति एटले सर्व विभावथी छूटा थवुं ते, अथवा तो बधा दुःखथी छूटीने पूर्ण
सुखरूप थवुं ते. सुख स्वमां परिपूर्ण छे ते प्रगट थाय छे, कांई सिद्ध शिलामांथी सुख आवतुं नथी.
आत्माने कोई बहारना संयोगमांथी सुख आवतुं नथी. जो बहारथी सुख मळतुं होय तो सुख पण
संयोगी चीज छे एम ठरे, परंतु सुख तो आत्मानो स्वभाव छे, ए कोई संयोगथी उत्पन्न थतुं नथी. आत्मा
पोते ज सुखस्वरूपे छे तेथी पोताने सुखरूप थवा माटे कोई परचीजनी के परचीज तरफना वलणनी आत्माने
जरूर नथी. स्वाधीन स्वरूपे आत्मा सुखी छे. सोनुं जेम स्वभावथी–पोतानी शक्तिथी ज मलिनताना त्यागरूप
स्वभावे परिणमेलुं छे तेथी कादवना संगमां रहेवा छतां तेने काट लागतो नथी, तेम स्वभावथी ज ज्ञानरूपे
परिणमेला आत्मानो सर्व रागना त्यागरूप स्वभाव छे तेथी गमे तेवा संयोगमां होवा छतां ते ज्ञानरूप ज
परिणमे छे, अस्थिरतानो राग होवा छतां तेनो स्वभाव रागना त्यागरूप छे, परिपूर्ण स्वभावनी भावनामां
क्षणिक रागनी भावना नथी. माटे कह्युं के–ज्ञानरूपे थयेला आत्मानो स्वभाव सर्व परद्रव्योप्रत्ये करवामां
आवतो जे राग तेना त्यागरूप छे.
अज्ञानीने स्व–परनी जुदाईनुं भान नथी, ज्ञान अने रागनो विवेक नथी, पोतानो स्वाधीन
ज्ञानस्वभाव ज सुखमय छे एवी प्रतीत नथी तेथी तेने संयोग अने रागनी रुचि छे तथा तेनी भावना छे
तेथी सर्व परद्रव्य प्रत्ये करवामां आवतो जे राग तेना ग्रहणरूप ते अज्ञानीनो स्वभाव छे. [अहीं ज्ञानरूप
अवस्था अने अज्ञानरूप अवस्था ए बंने अवस्थानुं स्वरूप समजाव्युं छे.] अज्ञानी परद्रव्यथी सुख–दुःख
मानतो होवाथी सर्व परद्रव्यो प्रत्ये अमर्यादपणे राग–द्वेष करीने ते दुःखी ज थाय छे. जेम लोढारूप वर्तमान
अवस्थानो स्वभाव कादवना संयोगे काटरूप थवानो छे–[अहीं ए ध्यान राखवुं के कादव पोते लोढाने काटरूप
करतो नथी परंतु लोढारूप ते पर्यायनो स्वभाव ज काटरूप थवानो छे तेथी ते काट–
आजीवन ब्रह्मचर्य
सां. २००१ ना भादरवा सुद १४ [अनंत चतुर्दशी] ना रोज जामनगर ना भाई जयंतीलाल हीराचंद
भणशाळी [उ. व. ४२] तथा तेमना धर्मपत्नी बेनकुंवर बेन [उ. व. ३६] तेओए सजोडे पू. सद्गुरुदेवश्री
समीपे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे.