Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : २९ :
टाणां मळे. अने–जे जीव आ सत्य
वातनो पोताना ज्ञानमां निर्णय करी,
साची समजण वडे पोताना हित–
अहितनो विवेक करे अने सत्यनुं
बहुमान तथा महिमा लावी विचारे
तेने तो अपूर्व कल्याणस्वरूप
सम्यग्दर्शन–आत्मभान थाय अने तेने
निर्जरा रूप धर्म थाय. सत्य समजवा
तरफ रुचि करी तेनुं बहुमान लावी
विचार करे तो जीव धर्म सन्मुख थाय
अने तेमां निर्जरा पण थाय छे.
सत्यनी रुचि, अने बहुमान क्यारे
थाय? के जो तेनी (सत्यतानी) किंमत
थाय तो.
आजे घणुं सुंदर व्याख्यान
आव्युं छे. ज्ञानी अने अज्ञानीना
स्वरूपनी ओळखाण आपी छे.
अज्ञानीने निमित्ताधीन सुखबुद्धि
छूटती नथी एटले ते बहारथी सुख
मेळवववा मागे छे. शरीरादि सारां रहे
अने श्रवण सारूं होय तो मने सुख
थाय एम ते मानतो होवाथी
परपदार्थनो संबंध अने राग करवानो
ते कामी छे, संग अने विकारथी ते
छूटवा मागतो नथी, माटे लोखंडनी
जेम अज्ञानी रागथी लेपावाना
स्वभाववाळो छे, तेथी ते रागना अने
परना संबंधवाळो–पराधीन दुःखी ज
रहे छे. अने ज्ञानीने शुद्ध स्वाधीन द्रष्टि
अने अंतरभान प्रगट होवाथी ते कोई
पण परद्रव्य प्रत्ये राग–द्वेष करवा जेवो
मानतो नथी. स्वद्रव्यमां परिपूर्ण
स्वाधीन सुख मानतो होवाथी ते
स्वमां ज ठरवा मागे छे, तेथी सुवर्णनी
जेम ते रागना त्यागरूप स्वभाववाळो
छे. अस्थिरतानी वृत्ति थई जाय तेनो
ते नाशक छे. आ रीते द्रष्टिना फेरथी
ज्ञानी अने अज्ञानीमां आकाश–पाताळ
जेवडो महान तफावत छे, ते अहीं
समजाव्युं छे.

वीर सां. २४७१ ना पर्युषण दरमियान पू. सद्गुरुदेव ।। ।।
श्री सद्गुरुदेवने अत्यंत
ः भक्तिए नमस्कारः
श्री कानजी स्वामीनां व्याख्यानो
भैया भगवतीदासजी कृत
उपादान – निमित्तनो संवाद
श्रावण वद १३ : ता. ५–९–४५
आ उपादान–निमित्तनो संवाद छे. उपादान अने निमित्त ए
बंनेनो झगडो अनादिथी छे. उपादान एम कहे छे के ज्ञान, दर्शन,
चारित्रादि गुणोनी संभाळ करवाथी आत्मानुं कल्याण रूपी कार्य थाय.
निमित्त एम कहे छे के शरीरादिनी क्रिया करवाथी के देव–गुरु–शास्त्रथी
अने शुभ भावथी आत्मानुं कल्याण थाय. आ प्रमाणे पोते पोतानी
वात सिद्ध करवा उपादान अने निमित्त बंने दलीलो रजु करे छे, अने ए
झघडानुं अहीं वीतराग शासनमां साचा ज्ञान वडे समाधान थाय छे.
अनादिथी जगतना अज्ञानी जीवोनी द्रष्टि पर उपर छे तेथी
‘मारा आत्मानुं कल्याण करवानी मारामां ताकात नथी, हुं पांगळो–
शक्ति वगरनो छुं, कोईक देव–गुरु–शास्त्र वगेरे पर मने समजावी दे
तो मारुं कल्याण थाय’ एम परनी ओथे आत्मानुं कल्याण अनादिथी
माने छे. ज्ञानीनी द्रष्टि पोताना आत्मा उपर छे तेथी ते एम माने छे
के आत्मा पोते पुरुषार्थ करे तो मुक्ति थाय. पोताना पुरुषार्थ सिवाय
कोईकना आशीर्वाद वगेरेथी कल्याण थशे एम मानवुं ते अज्ञान छे.
आ रीते उपादान कहे– आत्माथी कल्याण थाय, निमित्त कहे–पर
चीजनो साथ होय तो कल्याण थाय. एमां निमित्तनी वात तद्न
अज्ञान भरेली–खोटी छे एम आ संवादथी सिद्ध करशे.
उपादान एटले वस्तुनी सहज शक्ति. आत्मा परथी जुदो छे,
देहादि कोई पर वस्तुथी आत्मानुं कल्याण नथी–एम श्रद्धा–ज्ञान
करवां ते उपादान कारण छे.
निमित्त एटले अनुकुळ संयोगी बीजी चीज. ज्यारे आत्मा
साची श्रद्धा–ज्ञान करे त्यारे जे साचा देव–गुरु–शास्त्र हाजर होय तेने
निमित्त कहेवाय छे.
देव–गुरु–शास्त्र ते माराथी जुदा छे अने अने पुण्य–पापना
भावो ते पण हुं नथी, हुं ज्ञानादि अनंत गुणनो पिंड छुं–एम जीव
पोतानी शक्तिनी संभाळ करे ते उपादानकारण छे अने पोतानी
शक्ति ते उपादान छे. आमां उपादान अने उपादानकारणमां शुं फेर ते
समजाव्युं उपादान ते त्रिकाळी द्रव्य छे अने उपादानकारण ते पर्याय
छे. जे जीव उपादानशक्तिने संभाळीने उपादानकारण करे तेने
मुक्तिरूपी कार्य प्रगटे ज.