Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ३१ :
हवे शिष्य प्रश्न पूछे छे:– [कोईक ज जीव तत्त्वना प्रश्नो पूछवा उभा रहे छे. जेने तरस लागी होय ते
पाणीना धोरिये उभा रहे तेम जेने आत्मानुं स्वरूप समजवानी तृषा लागी छे अने धगश थई छे तेवा कोईक
जीव सत्समागमे पूछे छे] के हे प्रभु! तमे कोने उपादान कहो छो अने कोने निमित्त कहो छो, तथा ते उपादान
अने निमित्त एक ठेकाणे कयारना भेगां थया छे,–बन्नेनो संयोग कयारनो छे?
आवा जिज्ञासु शिष्यना प्रश्ननो उत्तर हवे कहे छे:–
उपादान निजशक्ति है, जियको मूल स्वभाव;
है निमित्त परयोगतें, बन्यो अनादि बनाव. ३.
अर्थ:–उपादान पोतानी शक्ति छे. ते जीवनो मूळस्वभाव छे; अने परसंयोग ते निमित्त छे. तेमनो
संबंध अनादिथी बनी रह्यो छे. ३.
अहीं जीवनो मूळस्वभाव ते उपादान छे एम कह्युं छे, केमके अहीं जीवनी मुक्तिनी ज वात लेवी छे तेथी
जीवनी मुक्तिमां उपादान शुं अने निमित्त शुं ते बताव्युं छे. परमाणुनी वात लीधी नथी. जीवनो मूळस्वभाव ते
उपादान तरीके लीधो छे. अहीं बधा द्रव्योनी सामान्य वात नथी पण खास जीव द्रव्यनी मुक्तिनी ज वात छे.
जीवनी पूर्ण शक्ति ते उपादान छे तेनी ओळखाण करे तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप उपादानकारण
प्रगटे अने मुक्ति थाय. ज्ञान, दर्शन अने चारित्र प्रगट करवा ते आत्मानो मूळस्वभाव छे. स्वभाव कहो,
शक्ति कहो के उपादान कहो ते बधानो अर्थ एक ज छे.
जीवनो मूळस्वभाव ज मुक्ति करवानो छे, ते अंतरमां छे. अंतरनी शक्तिमांथी मुक्ति प्रगटे छे परंतु
कोई देव–गुरु–शास्त्र–वाणी के मनुष्य शरीर वगेरे परनी सहायथी जीवनी मुक्ति थती नथी.
प्रश्न:–साचा गुरु होय तो भूलेलाने रस्तो तो बतावे ने! एटली तो मदद सद्गुरुए करीने?
उत्तर:–जे भूल्यो छे ते पूछीने नक्की करे छे, ते कोना ज्ञाने नक्की करे छे? भूलेलाना ज्ञाने के गुरुना
ज्ञाने? गुरु कांई सामानां ज्ञानमां नक्की करावी देता नथी पण सामो जीव पोते पोताना ज्ञानमां नक्की करे छे;
माटे जे समजे छे ते पोतानी ज उपादान–शक्तिथी समजे छे.
जेम कोईने ‘सिद्धपुर’ जवुं छे. तेणे कोई जाणकारने पूछयुं के सिद्धपुर क्यां आव्युं? त्यारे सामाए
जवाब आप्यो के (१) अहींथी आठ गाउ दुर सिद्धपुर छे, (२) रस्तामां जतां वच्चे बे मोटा शीतळ
छांयावाळा वड आवशे पछी (३) आगळ जतां एक मीठा पाणीनुं अमृतसरोवर आवशे त्यारपछी तरत ज
सिद्धपुर आवशे. आ प्रमाणे जाणकारे कह्युं पण तेनो विश्वास लावी नक्की कोण करे? बतावनार के भूलेलो? जे
भूल्यो छे ते पोताना ज्ञानमां नक्की करे छे; तेम मुक्तिनी झंखनावाळो शिष्य मुक्तिनुं अंतरकारण अने बहारनुं
कारण शुं छे ते पूछे छे:–प्रभु! मारी सिद्धदशा केम प्रगटे, तेनो उपाय–रस्तो शुं छे? तेनो श्री गुरु उत्तर आपे छे.
(१) आत्मानी ओळखाणथी आठ कर्मोनो नाश करतां सिद्धदशा प्रगटे छे. (२) आत्मानी साची
ओळखाण अने श्रद्धा करतां स्वभावनी परम शांतिनो अनुभव थाय छे; आत्मानी श्रद्धा अने ज्ञानरूपी बे
वडनी शीतळता सिद्धदशाना मार्गमां आवे छे (३) त्यारपछी आगळ वधतां चारित्रदशा प्रगटे छे एटले के
स्वरूप रमणतारूप अमृतसरोवर आवे छे. आ रीते सम्यग्दर्शन ज्ञान अने चारित्ररूप मोक्षमार्ग पूरो थतां
केवळज्ञान अने सिद्धदशा प्रगटे छे. आमां उपादान निमित्त सिद्ध करवां छे. ज्यारे शिष्य तैयार थईने श्री गुरु
प्रत्ये पूछे छे के प्रभु! मुक्ति केम थाय? त्यारे श्री गुरु तेने मुक्तिनो उपाय बतावे छे, परंतु जे रीते उपाय
बताव्यो ते रीते विश्वास लावीने नक्की कोण करे? बतावनार के भूलेलो? जे पोताना ज्ञानमां भूल्यो छे ते ज
साची समजणथी भूल टाळीने पोताना ज्ञानमां नक्की करे छे.
आ तो मुक्तिनो उपाय छे, तेनो महिमा आववो जोईए. जेम हीरा–माणेकनी किंमत जाणे अने हीरानी
दुकाने बेसे तो झट लाखो रूपीआनी पेदाश थाय अने लुगडांंने मेल न चोंटे, पण कंदोईनी दुकाने बेसे तो झट
पेदाश न थाय अने लुगडांंने मेल चोंटे, तेम जो आत्माना चैतन्यस्वभावने ओळखीने तेनी किंमत करे तो
मोक्षरूपी आत्मलक्ष्मी झट मळे, स्वरूपनी शक्तिनु भान ते हीरानो वेपार छे तेमां मुक्तिलक्ष्मी झट मळे छे अने
आत्माने कर्ममळ चोंटतो नथी. आत्माना भान वगर कदी मुक्ति थती नथी अने कर्ममळ चोंटे छे.
आत्माना अंतरमांथी आत्माना गुणने ग्रही शकाय छे माटे आत्मा उपादान छे. जेमांथी गुणनुं ग्रहण
थाय ते उपादान छे. चिदानंद भगवान आत्मा पोतानी अनंतशक्तिथी देहमां बिराजे छे, तेने ओळखीने
तेमांथी