Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
मुक्तिनो माल काढवानो छे. आमां उपादाननुं स्वरूप बताव्युं हवे निमित्तनुं स्वरूप बतावे छे.
‘है निमित्त परयोगते’ एटले ज्यारे आत्मा पोताना स्वरूपनी ओळखाण करे त्यारे जे साचा देव–गुरु–
शास्त्र संयोगरूपे हाजर होय तेने निमित्त कहेवाय छे. उपादान निमित्तनो आ बनाव अनादिनो छे. सिद्धदशामां
पण आत्मानी शक्ति ते उपादान छे अने स्थितिमां अधर्मद्रव्य परिणमनमां काळ ए वगेरे निमित्त छे. उपादान
अने निमित्त ए बंने चीजो अनादिनी छे.
कोई एम कहे के “बधा थईने एक आत्मा ज छे एम कोई माने तथा अनंत आत्मा जुदा जुदा छे एम
कोई माने, परंतु बधानुं साध्य तो एक ज छे ने? ” तो आ वात तद्न खोटी छे. जेणे एक ज आत्मा मान्यो
तेणे उपादान–निमित्त ए बे वस्तुने न मानी, तेथी ते अज्ञानी छे. अने जेणे “अनंत आत्मा दरेक जुदा जुदा
छे, हुं स्वाधीन आत्मा छुं” एम मान्युं तेणे वस्तुनुं साचुं स्वरूप जाण्युं छे. बधानुं साध्य एक छे ए वात खोटी
छे, ज्ञानी अज्ञानी बंनेना साध्य जुदा ज छे.
ज्यारे आत्मा पोतानी उपादानशक्तिथी ऊंधो पडे त्यारे कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र वगेरे निमित्तरूप होय छे
अने ज्यारे पोतानी उपादानशक्तिथी सवळो पडे त्यारे साचां देव–गुरु–शास्त्र निमित्तरूप होय छे. निमित्त तो
पर चीजनी हाजरी छे ते कांई करावतुं नथी. पोतानी शक्तिथी उपादान पोते कार्य करे छे. उपादान अने निमित्त
आ चीज अनादि छे पण निमित्त उपादानने कांई आपतुं के लेतुं नथी.
–निमित्तनी दलील–
निमित्त कहै मोको सबैं, जानत है जग लोय;
तेरो नाव न जानहीं, उपादान को होय. ४.
अर्थ:– निमित्त कहे छे के–जगतना सर्व लोको मने जाणे छे; उपादान कोण छे तेनुं नाम पण जाणता नथी.
आखा जगतना लोको निमित्तनुं नाम जाणे छे. वाड होय तो वेलो चढे, रोटला वगेरेनी सगवडता होय
तो धर्म थाय, मनुष्यदेह होय तो मुक्ति थाय–आ रीते निमित्तथी कार्य थाय एम आखा संसारना जीवो माने छे
अने तेथी तेओ निमित्तने ओळखे छे परंतु उपादानने कोई जाणता नथी. बहारना निमित्तो सारां होय तो
आत्मा सुखी थाय एम आखी दुनिया माने छे, पण उपादाननुं तो नाम पण कोई जाणतुं नथी माटे हे
उपादान! तुं मफतनो बडाई शुं करे छे? शुं लंगडो लाकडी वगर चाली शके? लाकडीनुं निमित्त जोईए ज–माटे
निमित्तनुं ज जोर छे–एम निमित्त दलील करे छे, परंतु निमित्तनी ते दलीलो खोटी छे. लंगडो चाले छे ते
पोतानी योग्यताथी चाले छे. जो लाकडीने लीधे चालतो होय तो मडदां पण लाकडीथी चालवा जोईए! परंतु
मडदांमां चालवानी योग्यता नथी तेथी ते चालता नथी; माटे उपादाननी शक्तिथी ज कार्य थाय छे.
वळी निमित्त कहे छे के–जो तमे निमित्तनुं जोर न मानता हो तो भगवाननी प्रतिमाने तमे शा माटे पगे
लागो छो? ते पण निमित्त छे के नहि? तथा मुक्ति पामवा माटे मनुष्य शरीर तो जोईए ने? अने कान सारा
होय तो सांभळीने धर्म पामेने? माटे बधे निमित्तनुं जोर छे–आखी दुनियाने पूछो तो ते आम ज कहेशे.
निमित्त तरफनी आ सर्व दलीलो खोटी छे एम आ संवादथी सिद्ध थशे. निमित्ते जे कह्युं ते बधुं संसारमां
रखडनारा जगतना अज्ञानीओ मानी रह्या छे, तेमने उपादाननी ओळखाण नथी. आ संवादमां उपादान–
निमित्तना सिद्धांतनी वात छे. उपादान–निमित्त बंने अनादि अनंत छे, ते बंनेनुं यथार्थ ज्ञान करवा माटेनो
उपदेश छे.
अनादिथी जगतना अज्ञानी जीवो उपादान कोण छे ते जाणता नथी, तेओ निमित्तने ज जाणे छे. नानो
छोकरो पण कहे के–जो मास्तर होय तो एकडो आवडे, परंतु मास्तर न होय तो कोण शीखडावे? पण जे एकडो
शीखे छे ते एकडो शीखवानी पोतानी शक्तिथी शीखे छे, कांई पाडाने एकडो आवडे नहि.
आखुं जगत निमित्तने ओळखे छे एटले के बाळकथी मांडीने मांधाता अज्ञानी मुनिने पूछो के मुक्ति
केम थाय? तो कोई कहेशे बहारनी क्रियाथी अने कोई कहेशे पुण्यथी मुक्ति थाय! परंतु ते कोई आत्मानी मूळ
उपादानशक्तिने जाणता नथी. अज्ञानीओने पोताना पक्षमां राखीने निमित्ते आ दलील मूकी छे.
हवे ज्ञानीओने पोताना पक्षमां राखीने उपादान तेनो जवाब आपे छे:–
उपादान कहैं रे निमित्त, तुं कहा करैं गूमान;
मोकों जानै जीव वे जो है सम्यकवान. ५.
अर्थ:–उपादान कहे छे के अरे निमित्त! तुं अभिमान शा माटे करे छे? जे जीव सम्यग्ज्ञानी होय ते मने
जाणे छे.