Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ३३ :
आत्मानो स्वभाव समजनारा ज्ञानीओने पोताना पक्षमां राखीने उपादान कहे छे के हे निमित्त! तुं
गूमान केम करे छे? तारूं गूमान मिथ्या छे. जगतना अज्ञानीनां टोळां तने जाणे तेमां तारी शुं किंमत? पण
मने बधा ज्ञानीओ जाणे छे. राख तो घरेघरे चूलामां होय तेथी कांई राख किंमती गणाय नहि अने हीराना
वेपारी थोडा होय तेथी कांई हीरानी किंमत घटी जाय नहि. तेम जगतना घणा जीवो परथी काम थाय एम माने
तेथी कांई परथी कार्य थई जाय नहि. उपादान स्वभावनी वात तो ज्ञानीओज जाणे, अज्ञानीओने तेना पत्ता
न खाय.
निमित्तथी कार्य थाय नहि छतां ज्यारे पोते समजे त्यारे साचा ज गुरुनुं निमित्त होय.... गुरुथी ज्ञान
नहि अने गुरुविना ज्ञान नहि. साचा गुरु विना त्रणकाळमां ज्ञान थाय ज नहि अने त्रणकाळमां गुरु कोईने
ज्ञान आपे नहि. ज्यारे जीव पोतानी शक्तिथी साची ओळखाण करे त्यारे सत्पुरुषनी ज वाणीनी हाजरी होय
परंतु सत्पुरुषनी वाणीथी जीव समजतो नथी. जीव पोताथी न समजे तो वाणीने निमित्त कहेवाय नहि.
प्रश्न:–निमित्त वगर थाय नहि अने निमित्तथी थाय नहि–एम बे वात आप करो छो, ते बेमांथी कई
वात राखवी?
उत्तर:–बंने राखवी, एटले के निमित्त हाजर होय छे खरूं, अने निमित्तथी कांई कार्य थतुं नथी एम बंने
पडखां समजवां. जेम बे आंखवाळो होय ते बधुं बराबर जाणे, एम आंख अंध होय तो बाडो, ते बराबर
जोई शके नहि, अने बंने आंख अंध होय तो आंधळो, ते कांई वस्तु ज न जोई शके. तेम उपादान निमित्त
बंनेने जेम छे तेम जाणे तो बराबर जाणनार [सम्यग्ज्ञानी] छे. निमित्त नथी एम माने अथवा तो निमित्तथी
कार्य थाय एम माने तो (द्रष्टांतना बाडानी जेम) तेना ज्ञानमां भूल छे. अने निमित्त–उपादान कांई छे ज
नहि–एम बंनेने न जाणे ते अंधनी जेम ज्ञान वगरनो छे.
प्रथम बे आंख वडे बधुं बराबर जाणीने पछी खास पदार्थ तरफनी एकाग्रता खातर बीजा पदार्थ तरफ
आंख मींचे–तो ते बराबर छे, तेम पहेलांं उपादान निमित्तने बराबर जाणीने पछी उपादानस्वरूपमां एकाग्रता
करवा माटे निमित्तनुं लक्ष छोडी देवुं ते बराबर छे. पण प्रथम उपादान–निमित्त बधुं जेम छे तेम जाणवुं जोईए.
ज्यारे आत्माना स्वभावनुं भान करे त्यारे निमित्त होय छे एम ज्ञान करवा माटे बंने छे, पण
आदरवा माटे बंने नथी, आदरवा माटे उपादान छे, निमित्त हेय छे. उपादाननी शक्तिथी कार्य थाय छे. जेओ
सम्यग्ज्ञानी छे एटले के आत्माना ओळखनारा छे तेओ ज उपादाननी शक्ति जाणे छे.
निमित्त कहे छे के:–
कहै जीव सब जगतके, जो निमित्त सोई होय;
उपादानकी बातको, पूछे नाहीं कोय. ६.
अर्थ:–जगतना सर्व जीव कहे छे के जेवुं निमित्त होय तेवुं कार्य थाय; उपादाननी वातनुं तो कोई कांई
पूछतुं नथी.
निमित्त पोतानुं बळवानपणुं बताववा दलील करे छे के–जो अनुकूळ सारूं निमित्त होय तो काम थाय,
रोटला वगेरे मळे तो जीवन रहे, मनुष्यदेह मळे तो मुक्ति थाय, काळ सारो होय तो धर्म थाय–आम आखी
दुनिया कहे छे, परंतु मनुष्य शरीर वगर मुक्ति थाय एम कोण कहे छे? माटे जुओ! शरीरना निमित्तथी ज
काम थाय छे ने? वळी जो निमित्तथी तमे कांई न मानता हो, तो भगवाननी प्रतिमाने केम मानो छो? माटे
निमित्तनुं ज जोर छे!
निमित्तनी दलील बराबर नथी. जैनो भगवाननी प्रतिमाना कारणे के ते तरफना रागना कारणे धर्म
मानता नथी. प्रतिमाजी तरफनो शुभराग ते अशुभ रागथी बचवा माटे छे. जैन एटले के सम्यग्द्रष्टि जीव कदी
पण रागथी के परथी धर्म मानता नथी, जैन तो आत्माना स्वभावथी धर्म माने छे.
सम्यग्द्रष्टि जीव पोताना स्वभावना भान पछी ज्यारे तद्न शुद्ध स्वभावना अनुभवमां ठरी न शके
त्यारे अशुभराग छोडीने शुभराग तेमने आवे छे अने ते रागमां सामे वीतराग प्रतिमा निमित्तरूप होय छे.
पोते अशुभभावथी बचे छे तेटलो पोताने लाभ छे; परंतु प्रतिमाथी के जे राग रह्यो तेनाथी आत्माने लाभ
माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. सम्यग्द्रष्टिने शुभराग आवे त्यां वच्चे प्रतिमा निमित्तरूप आवे आम न जाणे तोय
मिथ्याद्रष्टि छे. आमां निमित्तनुं ज्ञान करवानुं आव्युं पण निमित्तथी कांई कार्य थाय–एम आव्युं नहि.